बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं का दर्दनाक सच
पटना (The Bihar Now डेस्क)| पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (PMCH) में एक 10 वर्षीय बच्ची की दुखद मृत्यु ने राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को फिर से उजागर कर दिया है. मुजफ्फरपुर के एक अस्पताल में कई दिनों तक इलाज के बाद पटना लाई गई इस बच्ची के साथ हुए यौन उत्पीड़न और गले पर चाकू से हमले के बाद उसे तत्काल चिकित्सा की जरूरत थी. लेकिन PMCH में घंटों इंतजार के बाद भी उसे समय पर भर्ती नहीं किया गया था.
हालांकि, बच्ची की मौत के बाद उपजे जनाक्रोश और चौतरफा निंदा के बीच बिहार सरकार ने कड़ा रुख अपनाया है. स्वास्थ्य विभाग ने त्वरित कार्रवाई करते हुए दो वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारियों पर सख्त कदम उठाए हैं. मुजफ्फरपुर के SKMCH की अधीक्षक डॉ. कुमारी बिभा को निलंबित कर दिया गया है, जबकि PMCH के प्रभारी उपाधीक्षक डॉ. अभिजीत सिंह को उनके पद से हटा दिया गया है.
सरकार के अनुसार, प्रथमदृष्टया पाया गया कि उपाधीक्षक ने अपने प्रशासनिक कर्तव्यों का पालन नहीं किया, जिसके चलते एक मासूम की जान को बचाने में विफलता हाथ लगी. अस्पताल के प्रभारी उपाधीक्षक की ओर से घोर लापरवाही की गई थी. यह घटना बिहार की स्वास्थ्य सेवाओं में व्याप्त गंभीर खामियों का जीता-जागता सबूत है.
अस्पताल का बहाना, नैतिकता का पतन
घटना को लेकर पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल प्रशासन का कहना है कि बच्ची को गायनोकोलॉजी विभाग में भर्ती किया गया क्योंकि ENT विभाग में ICU उपलब्ध नहीं था. क्या एक बच्ची, जिसे स्पष्ट रूप से आपातकालीन इलाज की जरूरत थी, को इस तरह के विभागीय उलझनों में फंसाना उचित था? क्या डॉक्टरों ने इस आपात स्थिति को नहीं पहचाना? यह लापरवाही बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की गंभीर बीमारी को दर्शाती है.
CAG की रिपोर्ट ने खोली बिहार की स्वास्थ्य सेवाओं की पोल
गत नवंबर में बिहार विधानसभा में पेश CAG की रिपोर्ट ने राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की भयावह स्थिति को उजागर किया. पटना सहित किसी भी उप-मंडलीय अस्पताल में आपातकालीन ऑपरेशन थिएटर नहीं है. केवल 50% वेंटिलेटर ही कार्यरत हैं, बाकी कर्मचारियों की कमी या ICU की खराब स्थिति के कारण बेकार पड़े हैं. पटना में प्रति 11,500 लोगों पर केवल एक सरकारी डॉक्टर है, जबकि अररिया जिले में यह अनुपात 56,000 लोगों पर एक डॉक्टर का है. नर्सों और पैरामेडिक्स की कमी भी भयावह है—पटना में 18% और पूर्णिया में 72% नर्सों की कमी, जबकि जमुई में 45% और पूर्वी चंपारण में 90% पैरामेडिक्स की कमी है.
PMCH की जर्जर हालत, 100 साल पुराना गौरव धूल में
100 साल पुराना PMCH, जो कभी एक प्रतिष्ठित संस्थान हो सकता था, आज जर्जर हालत में है. CAG की रिपोर्ट के अनुसार, PMCH के विभिन्न विभागों में 33% से 94% तक उपकरणों की कमी है. पटना के इस “सर्वश्रेष्ठ अस्पताल” में 36% स्टाफ की कमी है. यहां तक कि मरीजों का पंजीकरण भी निजी कंपनियों को सौंप दिया गया है. अगर यह हाल तृतीयक अस्पताल (tertiary care hospital) का है, तो उप-मंडलीय, जिला और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है.
नीतीश सरकार का “विश्वस्तरीय” दावा, एक क्रूर मजाक
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो लगभग दो दशकों से सत्ता में हैं, PMCH को “विश्वस्तरीय” बनाने और 5,462 बेड के साथ “दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा अस्पताल” बनाने का दावा कर रहे हैं. लेकिन इस 10 वर्षीय बच्ची की मौत ने इन दावों की हकीकत को बेनकाब कर दिया. क्या ये योजनाएं उस मासूम के लिए कोई मायने रखती थीं? बिहार की जनता के लिए यह “विकास” एक क्रूर मजाक बनकर रह गया है.