लोक आस्था का शक्तिपीठ केसपा जहां है मां तारा की प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर
गया (The Bihar Now डेस्क)| बिहार के गया जिले के टिकारी प्रखंड में स्थित केसपा गाँव एक धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है. इसी गाँव में माँ तारा देवी का एक प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है, जिसे लोगों की आस्था का केंद्र और शक्तिपीठ माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि यह स्थान महान ऋषि कश्यप मुनि की तपोभूमि रही है और वे माता तारा के उपासक थे. कहते हैं कि उन्हीं के द्वारा इस मंदिर की स्थापना की गई थी.
आज भी वह पुराना मंदिर मौजूद है, जहाँ माँ तारा देवी उसी स्वरूप में विराजमान हैं. इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व भी है और धार्मिक श्रद्धा से जुड़ी अनेक कथाएं भी इससे संबंधित हैं.
केसपा गाँव का नाम कैसे पड़ा:
इस गाँव का नाम भी ऋषि कश्यप से जुड़ा हुआ है. पहले इसे कश्यपपुरी कहा जाता था, फिर समय के साथ इसका नाम बदलकर कश्यपा, किस्पा और अंत में केसपा हो गया.
मंदिर की दूरी और प्रसिद्धि:
यह मंदिर गया शहर से लगभग 37 किलोमीटर और टिकारी से लगभग 12 किलोमीटर उत्तर में स्थित है. वर्ष भर यहाँ श्रद्धालु पूजा करने और माता के दर्शन हेतु आते रहते हैं.
माँ तारा की पौराणिक कथा:
पुराणों के अनुसार, जब समुद्र मंथन हुआ था, तब सबसे पहले हलाहल विष निकला. उस विष से देवता और राक्षस दोनों पीड़ित हो उठे. सभी ने भगवान शिव से सहायता की प्रार्थना की. शिवजी ने वह विष पी तो लिया, लेकिन उसे अपने गले से नीचे नहीं उतरने दिया. इसके कारण उनका कंठ नीला हो गया और वे अर्धनिद्रा में चले गए. तभी माँ तारा प्रकट हुईं और उन्होंने शिवजी को अपनी गोद में लेकर अपने दूध से उन्हें पुनः चेतन कर दिया. इस प्रकार माँ तारा को शिवजी की माता माना जाने लगा.
माँ तारा की प्रतिमा और मंदिर की विशेषताएँ:
माँ तारा की प्रतिमा लगभग आठ फीट ऊँची है और काले पत्थर से बनी हुई है. माँ की मूर्ति वरद मुद्रा में है, यानी आशीर्वाद देने वाली मुद्रा में. प्रतिमा के दोनों ओर दो योगिनियाँ भी हैं. मंदिर का गर्भगृह कच्ची मिट्टी और खास किस्म की ईंटों से बना है, जिसकी दीवारें 4 से 5 फीट मोटी हैं. मंदिर की नक्काशी बेहद आकर्षक है, जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती है.
मंदिर के चारों ओर बना विशाल चबूतरा भी यहाँ के वास्तुशिल्प का अद्भुत उदाहरण है. माँ तारा की मूर्ति पर कुछ लेख अंकित हैं, जिन्हें अब तक पढ़ा नहीं जा सका है. मंदिर की दीवारें भी अनेक ऐतिहासिक राज खोल सकती हैं.
विदेशी पुरातत्ववेत्ताओं की यात्रा:
> 1812 में फ्रांसिस बुकानन (Francis Buchanan) नामक स्कॉटिश वैज्ञानिक (Scottish scientist) इस मंदिर में आए थे. उन्होंने मंदिर की स्थिति का वर्णन करते हुए लिखा कि यह मिट्टी, ईंट और पत्थर से बना था. उस समय मंदिर में तीन पुजारी पूजा कर रहे थे. जब उन्होंने मंदिर के निर्माण काल के बारे में पूछा तो एक पुजारी ने कहा कि यह मंदिर सतयुग में बना है.
> 1872 में अमेरिकन-भारतीय पुरातत्ववेत्ता जोसेफ डेविड बेगलर (Joseph David Begler) ने मंदिर का अध्ययन किया और कहा कि यह मंदिर संभवतः 9वीं या 10वीं शताब्दी में बना है. उन्होंने यह भी बताया कि गाँव में कई अन्य प्राचीन मंदिर और भगवान बुद्ध की मूर्तियाँ मौजूद हैं.
> 1902 में डेनमार्क के पुरातत्वविद् थिओडोर बलोच (Theodore Bloch) भी यहाँ आए और उन्होंने इस स्थान को गहरी धार्मिक आस्था का केंद्र माना.
मां की कृपा और मान्यताएं:
कहा जाता है कि टिकारी राज (Tikari Raj) के दरबारी देवन मिश्र को माता ने इसी मंदिर में दर्शन दिए थे और उन्हें एक श्राप भी दिया था.
नवरात्रि का विशेष महत्व:
हर साल आश्विन (Ashwin Navratri) और चैत्र नवरात्र (Chaitra Navratri) में यहाँ श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. लोग नौ दिन तक मंदिर परिसर में रहकर व्रत रखते हैं, पाठ करते हैं और अखंड दीप जलाते हैं. मंदिर के अंदर एक विशाल त्रिकोणीय हवन कुंड है जिसमें साल भर आहुति दी जाती है. यह हवनकुंड कभी राख से भरता नहीं और ना ही इसकी राख निकाली जाती है. यह आस्था का एक अनोखा प्रतीक है.
प्रसिद्ध लोग भी हुए हैं भक्त:
1992 में देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी यहाँ माँ तारा के दर्शन के लिए आए थे और उन्होंने माँ के चरणों में शीश नवाया था.
बली प्रथा और उसका अंत:
करीब एक सदी पहले इस मंदिर में बली प्रथा प्रचलित थी. लेकिन आज़मगढ़ (उत्तर प्रदेश) के प्रसिद्ध लेखक और विद्वान पंडित राहुल सांकृत्यायन (Rahul Sankrityayan) ने बौद्ध धर्म पर शोध के दौरान यहाँ आकर इस प्रथा को बंद कराने का सफल प्रयास किया था.
वर्षभर चलता है आस्था का मेला:
नवरात्र के समय मंदिर एक धार्मिक मेले में बदल जाता है. दूर-दूर से साधु-संत और आम भक्त पूजा, हवन और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के लिए यहाँ आते हैं. ऐसा माना जाता है कि माँ तारा किसी को निराश नहीं करतीं. जो भी सच्चे मन से प्रार्थना करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है. मनोकामना पूर्ण होने पर लोग दोबारा आकर माँ का धन्यवाद करते हैं.