कोरबा समूह की इस बेटी ने विलुप्त होती जनजातियों में दिखाई प्रकाश की एक किरण

रांची (TBN डेस्क) | मानवतावादियों के लिए एक सुकून की खबर झारखंड से सामने आई है. शोषण और सत्ता के खेल में पदलोलुप व्यवस्था अपने पाखंड का प्रयोग कुछ इस तरह से करती है कि उसकी कल्याणकारी छवि न सिर्फ बरकरार रहे बल्कि उसका सर्वाधिकार भी सुरक्षित रहे. शोषित समाज इसी तरह कठिन रास्तों से गुजरता हुआ अपनी अभिलाषाएं पूरी करता है.
ऐसी धारणा थी कि झारखंड एक आदिवासी बहुल राज्य है, लेकिन आंकड़े इसकी पुष्टि नहीं करते. आदिवासियों के विकास के नाम पर गठित झारखंड राज्य की कुल आबादी 26945829 (जनगणना 2011) है जिसमें अनुसूचित जनजाति की कुल संख्या 7087068 है. यह संख्या झारखंड की कुल आबादी का 26.3 प्रतिशत है.
यानि आदिवासियों के विकास के लिए बिहार से अलग किये गए झारखंड में आदिवासी महज 26.3 प्रतिशत ही हैं. दूसरी तरफ आदिवासी समाज के 32 जनजातीय समूहों को मान्यता मिली हुई है जिनमे 8 समूह प्रिमिटिव ट्राइब ग्रुप के हैं जिनकी कुल आबादी 292359 है जो आदिवासी समुदाय का महज 3.38 प्रतिशत है.
यह सुकून भरी खबर इसी प्रिमिटिव ट्राइब ग्रुप से है. आदिवासी समाज में विकास की दृष्टि से सबसे पीछे रहने वाले इन आठ समूहों में से एक कोरबा समूह भी है जिसका एक आंकड़ा यह बताता है कि आदिवासी समाज की साक्षरता दर जहां 47.44 प्रतिशत है, वहीं इस प्रिमिटिव ट्राइब ग्रुप की साक्षरता दर 30.94 प्रतिशत ही है.
बहरहाल, इस कोरबा आदिम समूह की एक बेटी ने झारखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास कर पहली अधिकारी बन गयी है. कोरबा जनजाति की युवती चंचला ने आदिम जनजाति की पहली अफसर बिटिया बनकर अपने लिए सफलता के स्वाद के साथ इस समुदाय से आने वाले युवक-युवतियों के लिए आदर्श बन गईं हैं.
झारखंड में जहां पहले सरकारी नौकरियों में इन आदिवासी समाज के लोग चतुर्थ श्रेणी के पदों से आगे नहीं बढ पाते थे, हाल ही निकले झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) के परिणाम के अनुसार कोरबा समूह की चंचला ने ऑफिसर बन इस हीच को तोड़ दिया है.
लेकिन यह कैसे हुआ यह जानना भी दिलचस्प है. फ़िल्वक्त केंद्रीय उपभोक्ता मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव पद का दायित्व सम्भाल रहीं वरिष्ठ आईएएस अधिकारी निधि खरे जब झारखंड में कार्मिक विभाग की सचिव थीं, उन्होंने एक रास्ता निकाला.
इसके तहत आदिवासियों के 26 प्रतिशत आरक्षण में दो प्रतिशत इन आदिम जनजातियों के लिए क्षैतिज रूप में आरक्षित किया. इसका मतलब यह था कि यदि आदिम समूह का कोई अभ्यर्थी प्रतियोगी परीक्षा उत्तीर्ण नही कर सके तो यह दो प्रतिशत आरक्षण आदिवासियों के 26 प्रतिशत में जोड़ दिया जाएगा. इसी व्यवस्था का लाभ कोरबा समूह की बेटी चंचला को मिला. अपने विवेक और परिश्रम के बल पर आज वह एक अधिकारी हैं.
लेकिन शर्मनाक पहलू यह है कि आदिवासियों में जिन्हें आदिम जनजाति के रूप आठ समूहों की पहचान मिली है, उन्हें विलुप्त होती जनजाति बताया जाता है. इनमे असुर, बिरहोर, विरजिया, कोरबा, सबर (हिल खड़िया सहित), माल पहाड़िया, परहैया और सौरिया पहाड़िया शामिल हैं. बिरहोर आदिम जनजाति पर बहुत कुछ कहा गया है.
लेकिन इन सबों के लिए कुछ करने के नाम पर झारखंड की सरकारें पता नहीं किस पल की प्रतीक्षा करती आई हैं. आज भी यह सभी आदिम जनजाति समूह सुदूर पहाड़ी इलाकों और वन क्षेत्रों में ही रहता है लेकिन कोरबा समूह की एक बेटी ने इनके अंधेरे जीवन मे प्रकाश की किरण जरूर दिखाई है.