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पटना हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: केवल ब्रेथ एनालाइजर रिपोर्ट के आधार पर दर्ज केस अवैध

पटना (The Bihar Now डेस्क)| पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने शराबबंदी कानून (prohibition law) को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि सिर्फ ब्रेथ एनालाइजर रिपोर्ट (breathalyzer report) के आधार पर दर्ज की गई एफआईआर (FIR) को अवैध माना जाएगा.

हाईकोर्ट ने कहा कि ब्रेथ एनालाइजर मशीन की रिपोर्ट यह साबित नहीं करती कि किसी व्यक्ति ने वास्तव में शराब पी है. इसलिए, सिर्फ सांस की दुर्गंध के आधार पर दर्ज की गई प्राथमिकी को शराबबंदी कानून में वैध नहीं माना जाएगा.

कोर्ट का फैसला

न्यायमूर्ति विवेक चौधरी (Justice Vivek Chaudhary) की एकलपीठ ने नरेंद्र कुमार राम (Narendra Kumar Ram) द्वारा दायर क्रिमिनल रिट याचिका (criminal writ petition) पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया. कोर्ट ने किशनगंज एक्साइज थाने में दर्ज केस संख्या 559/2024 को इसी आधार पर खारिज कर दिया.

हाईकोर्ट ने अपने ऑर्डर में कहा – “याचिकाकर्ता और राज्य सरकार के विद्वान अधिवक्ताओं की दलीलें सुनने के बाद और रिकॉर्ड पर उपलब्ध सभी सामग्रियों पर विचार करने के उपरांत, इस न्यायालय के पास यह निष्कर्ष निकालने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचता कि अधिकारियों ने माननीय सुप्रीम कोर्ट के अवलोकनों पर विचार नहीं किया. सिर्फ ब्रेथ एनालाइजर रिपोर्ट के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई, जबकि यह शराब के सेवन का निर्णायक प्रमाण नहीं माना जा सकता. उपरोक्त कारणों को ध्यान में रखते हुए, बिहार मद्य निषेध एवं उत्पाद अधिनियम, 2016 की धारा 37 के तहत दर्ज उत्पाद थाना कांड संख्या 559/2024 (विशेष मामला संख्या 572/2024), दिनांक 02.05.2024, को रद्द किया जाता है.”

शराब पीने का सही प्रमाण क्या होगा?

कोर्ट ने साफ कहा कि ब्रेथ एनालाइजर की रिपोर्ट तभी वैध मानी जाएगी जब:

  1. आरोपी का व्यवहार असामान्य हो, जैसे- लड़खड़ाती जबान और आंखें चढ़ी हुई हो.
  2. आरोपी के खून या पेशाब की जांच की जाए और उसमें अल्कोहल की पुष्टि हो.
  3. एफआईआर में यह स्पष्ट रूप से दर्ज हो कि व्यक्ति नशे की हालत में था.

कोर्ट ने एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि सांस की दुर्गंध को पेट में शराब होने का ठोस प्रमाण नहीं माना जा सकता. जब तक खून-पेशाब जांच या असामान्य व्यवहार के पुख्ता सबूत न हों, तब तक ब्रेथ एनालाइजर की रिपोर्ट को पर्याप्त प्रमाण नहीं माना जाएगा.

याचिकाकर्ता ने होम्योपैथी दवा ली थी, फिर भी केस दर्ज कर दिया गया

याचिकाकर्ता के वकील शिवेश सिन्हा ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता पेट में संक्रमण के इलाज के लिए होम्योपैथी दवाओं का सेवन कर रहा था. होम्योपैथी दवाओं में थोड़ी मात्रा में अल्कोहल होती है, जिसे ब्रेथ एनालाइजर मशीन ने डिटेक्ट कर लिया और अधिकारियों ने खून-पेशाब की जांच किए बिना ही केस दर्ज कर दिया.

एफआईआर में यह भी कहीं नहीं लिखा गया था कि याचिकाकर्ता नशे की हालत में था, उसकी आंखें चढ़ी हुई थीं या उसका व्यवहार संदिग्ध था. ऐसे में उसे शराब पीने का दोषी मानना गलत होगा.

इस फैसले के बाद अब बिहार में सिर्फ ब्रेथ एनालाइजर रिपोर्ट के आधार पर किसी को शराब पीने का दोषी नहीं माना जा सकेगा. अगर किसी पर शराबबंदी कानून के तहत कार्रवाई करनी है, तो उसका व्यवहार, खून और पेशाब की जांच रिपोर्ट भी पेश करनी होगी.