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लालू के ‘जंगल राज’ का दाग: शिल्पी-गौतम हत्याकांड और नई सियासी बहस

> शिल्पी और गौतम की कहानी, जो बिहार को झकझोर गई
> घटना का सच, जो आज भी रहस्य बना हुआ है
> सबूत और सवाल, जो न्याय पर शक पैदा करते हैं

पटना (The Bihar Now डेस्क)| शिल्पी जैन और गौतम सिंह (Shilpi Jain Gautam Singh Murder Case) का मामला, जिसे अक्सर शिल्पी-गौतम हत्याकांड (Shilpi-Gautam Murder Case) के रूप में जाना जाता है, बिहार के इतिहास के सबसे कुख्यात अनसुलझे अपराधों में से एक है. यह हत्याकांड बिहार में “जंगल राज” (Bihar’s Jungle Raj Story) के काले सच के रूप में आज भी कौंधता रहता है. इसी क्रम में जन सुराज के नेता प्रशांत किशोर ने सम्राट चौधरी का नाम इस कांड से जोड़कर फिर से इसे बिहार की राजनीति में उछाल दिया है. आइए जानते हैं क्या था शिल्पी-गौतम हत्याकांड.

1999 में बिहार में एक ऐसा मामला हुआ, जो आज भी लोगों के जहन में है. शिल्पी जैन, 23 साल की होनहार छात्रा और ‘मिस पटना’, अपनी खूबसूरती और हंसमुख स्वभाव के लिए जानी जाती थीं. वे पटना के मशहूर कपड़े की दुकान कमला स्टोर्स के मालिक उज्ज्वल कुमार जैन की बेटी थीं.

वहीं गौतम सिंह, 27 वर्षीय महत्त्वाकांक्षी राजनेता और व्यवसायी, जो लंदन स्थित डॉक्टर डॉ. बी.एन. सिंह के बेटे थे. गौतम अवसरों की तलाश में बिहार लौटे थे और आरजेडी की युवा शाखा से जुड़ गए थे. वह पटना के फ्रेज़र रोड पर सिल्वर ओक रेस्टोरेंट के सह-मालिक थे, जिसमें उनके साझीदार साधु यादव, एक आरजेडी विधायक और लालू प्रसाद यादव के साले थे.

शिल्पी जैन और गौतम सिंह की मुलाकात उनके दोस्तों के जरिए हुई और वे एक-दूसरे से प्यार करने लगे. इसी बीच एक पार्टी में, जिसकी मेजबानी गौतम ने की थी, शिल्पी को साधु यादव सहित कई प्रभावशाली लोगों से मिलवाया गया था. शिल्पी का इन प्रभावशाली लोगों से मिलना ही इस दुखद कहानी की शुरुआत बनी.

क्या था मामले का घटनाक्रम

शिल्पी को फुलवारी शरीफ के एक गेस्ट हाउस में 2 जुलाई 1999 को बुलाया गया. यह गेस्ट हाउस गौतम के नाम से था. दरअसल, शिल्पी को गौतम की ओर से झूठे बहाने से बुलाया गया था जिसकी जानकारी गौतम को नहीं थी. फिर शिल्पी और गौतम दोनों वहाँ से लापता हो जाते हैं. शिल्पी के पिता ने रात में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई.

फिर अगले दिन 2 जुलाई 1999 की शाम 9 बजे, पटना के फ्रेजर रोड पर साधु यादव के एमएलए क्वार्टर के गैरेज से शक की खबर मिली. पुलिस ने ताला तोड़कर देखा तो गौतम की मारुति जेन कार में दोनों के शव मिले. शिल्पी अधनंगी थीं, गौतम की शर्ट पहने हुए; गौतम पूरी तरह नंगे थे. जहर के निशान और लड़ाई के चिह्न थे. कार की खिड़कियां धुंधली थीं और शव सड़ चुके थे.

9 जुलाई 1999 को पुलिस ने इन दोनों की हत्या को शुरुआती सिद्धांत के तौर पर आत्महत्या बताया. लेकिन शिल्पी के परिवार ने सुसाइड की थ्योरी को खारिज करते हुए मर्डर का दावा किया. चूंकि घटनास्थल का साधु यादव से संबंध था और गौतम भी आरजेडी से जुड़ा था, इस कारण राजनीतिक हंगामा शुरू हो जाता है और पूरे पटना में विरोध प्रदर्शन और कैंडल मार्च शुरू हो गए.

जुलाई 1999 के अंत में पुलिस द्वारा गड़बड़ी के आरोपों (जैसे परिवार की सहमति के बिना गौतम के शव का जल्दबाजी में अंतिम संस्कार) के बीच, मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सौंप दिया गया.

सीबीआई द्वारा इस केस की जांच 2000 से 2003 तक की जाती है. सीबीआई जांच में बलात्कार और जहर के फोरेंसिक सबूत सामने आते हैं, लेकिन 2003 में सीबीआई द्वारा इसे ‘डबल सुसाइड’ (Bihar 1999 Double Murder Case) कहकर बंद कर दिया और हत्या का कोई आरोप दर्ज नहीं किया गया.

उसके बाद 5 जनवरी 2006 को शिल्पी के भाई, प्रशांत जैन द्वारा मामले को फिर से खोलने के लिए याचिका दायर किया गया. इसके बाद उन्हें पटना में उनके घर के बाहर से अपहरण कर लिया गया, लेकिन सार्वजनिक दबाव के बाद उन्हें अपहरणकर्ताओं द्वारा छोड़ दिया गया. परिवार नई जाँच की मांग जारी रखता है.

इस तरह 2013 से अब तक यह मामला मीडिया और राजनीति में फिर से उभरता है, जिसमें तेजस्वी यादव (लालू के बेटे) की 2022 की शादी के दौरान परिवार के झगड़े के कारण नए आरोप लगाए जाते हैं. 2025 तक, यह आधिकारिक तौर पर बंद है, लेकिन सार्वजनिक धारणा में अनसुलझा है और इसे फिर से जाँचने की मांगें जारी हैं.

क्या था पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में ?

पटना मेडिकल कॉलेज में शवों के पोस्टमार्टम में पता चला कि शिल्पी और गौतम दोनों को एल्यूमिनियम फॉस्फाइड जहर (Aluminum phosphide poisoning) दिया गया था. सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह पता चला कि शिल्पी के योनि स्वाब और कपड़ों पर डीएनए परीक्षण (हैदराबाद के सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स में किया गया) में गौतम के अलावा कई व्यक्तियों के वीर्य (semen) के निशान पाए गए. यह मृत्यु से पहले सामूहिक बलात्कार (gang rape) की ओर इशारा करता है. पटना मेडिकल कॉलेज, सफदरजंग अस्पताल और एम्स के डॉक्टरों की राय ने ज़हर की पुष्टि की लेकिन आत्महत्या बनाम हत्या पर मतभेद था.

घटनास्थल का साधु यादव (Sadhu Yadav Shilpi Jain Accusation) के क्वार्टर से संबंध होने से संदेह गहराया. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के बाद सीबीआई द्वारा साधु यादव से डीएनए सैंपल देने को कहा गया. इस पर गोपालगंज के आरजेडी विधायक (1997–2004) साधु यादव ने गोपनीयता का हवाला देते हुए सैंपल देने से इनकार कर दिया था. उन्होंने संलिप्तता से इनकार करते हुए दावा किया कि शवों के बारे में पता चलने पर उन्होंने ही पुलिस को अलर्ट किया था.

हाल ही में, लालू के बेटे तेज प्रताप यादव ने 2022 के एक वीडियो में पारिवारिक विवादों के बीच साधु पर सार्वजनिक रूप से बलात्कार और हत्या का आरोप लगाया. राबड़ी देवी के भाई साधु शासनकाल के दौरान लालू के करीबी सहयोगी थे, जिससे मामले को दबाने (cover-up) के आरोप और बढ़ गए.

इस कांड के अनुसंधान के दौरान कई विसंगतियाँ सामने आईं, जिसमें से प्रमुख ये थीं –

  • गैराज अंदर से बंद था, जिससे यह सवाल उठा कि पुलिस को कैसे alerted किया गया.
  • कई वीर्य नमूनों या शिल्पी द्वारा गौतम की शर्ट पहनने का कोई स्पष्टीकरण नहीं मिला.
  • गौतम के शव का समय से पहले अंतिम संस्कार कर दिया गया, जिससे आगे की जांच रुक गई.
  • सीबीआई परिवार के विरोध के बावजूद मामले को बंद करते हुए, आक्रामक रूप से सुरागों का पीछा करने में विफल रही.

शिल्पी-गौतम हत्याकांड का यह मामला लालू-राबड़ी शासनकाल (1990–2005) के दौरान अराजकता (lawlessness) का प्रतीक बन गया, जिसमें सालाना 10,000 से अधिक अपहरण और बढ़ते अपराध दर्ज किए गए. इसने “महारानी 2” (2022) जैसे शो के एपिसोड को प्रेरित किया, जिसने बलात्कार और कवर-अप का काल्पनिक चित्रण किया.

इधर, शुरू से ही शिल्पी जैन के परिवार ने लगातार आत्महत्या के फैसले को शक्तिशाली लोगों को बचाने के लिए की गई लीपापोती (whitewash) मानते हुए खारिज किया है. प्रशांत जैन का 2006 में अपहरण को मामले को फिर से खोलने से रोकने की धमकी के रूप में देखा जाता है. इसके बावजूद, कोई नई जाँच का आदेश नहीं दिया गया है, जिससे यह मामला (Shilpi Gautam Case Unsolved Mystery) बिहार के अशांत अतीत की एक कठोर याद बना हुआ है.

सम्राट चौधरी की संलिप्तता

सम्राट चौधरी (जन्म के समय राकेश कुमार, जो अब 2024 से एनडीए सरकार में बिहार के उपमुख्यमंत्री हैं) का 1999 के इस मामले की मुख्य घटनाओं में कोई दस्तावेजी सीधा जुड़ाव नहीं है, ऐतिहासिक रिकॉर्ड के आधार पर. उनका नाम उस युग की सीबीआई रिपोर्टों, अदालती फ़ाइलों या समकालीन मीडिया में दिखाई नहीं देता है. हालाँकि, हालिया राजनीतिक आरोपों (Jan Suraj Party’s Political Attack) ने उन्हें आस-पास से जोड़ दिया है.

पिछले महीने 29 सितंबर को, जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर (Prashant Kishore Samrat Chaudhary Controversy) ने पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान आरोप लगाया कि चौधरी से शिल्पी-गौतम मामले में सीबीआई ने पूछताछ की थी. किशोर ने दावा किया कि चौधरी (तब राकेश कुमार के नाम से जाने जाते थे, जो आरजेडी नेता शकुनी चौधरी के बेटे थे) को लालू-राबड़ी सरकार ने पारिवारिक संबंधों के कारण बचाया था – शकुनी एक प्रमुख आरजेडी मंत्री थे. किशोर ने चौधरी को अपनी भूमिका पर “सच बताने” की चुनौती दी और सुझाव दिया कि उनकी भूमिका को भी साधु यादव की तरह दबाया गया था.

इस पर सम्राट चौधरी ने पीके के इन दावों को “बचकाना” और “आधारहीन” बताते हुए खारिज कर दिया और प्रशांत किशोर पर अपने ही मुद्दों से ध्यान भटकाने का आरोप लगाया. सीबीआई की 2003 की क्लोजर रिपोर्ट में चौधरी का कोई उल्लेख नहीं है और उन पर कोई आरोप नहीं लगाया गया था. उनके पिता का आरजेडी से जुड़ाव (शकुनी बाद में जदयू में शामिल हो गए) अप्रत्यक्ष राजनीतिक संदर्भ प्रदान करता है, लेकिन किशोर का आरोप बिहार के आगामी चुनावों से प्रेरित प्रतीत होता है, जो जन सुराज को भ्रष्टाचार विरोधी विकल्प के रूप में पेश करता है.

सम्राट चौधरी को किशोर से आज अलग, असंबंधित आरोपों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें 1995 के तारापुर नरसंहार (कुशवाहा समुदाय के सात लोगों की हत्या) में ट्रायल से बचने के लिए अपनी उम्र के बारे में झूठ बोलना और एक फर्जी डी.लिट. की डिग्री प्राप्त करना शामिल है. इनका शिल्पी मामले से कोई लेना-देना नहीं है लेकिन ये राजनीतिक कीचड़ उछालने (political mudslinging) को बढ़ावा देते हैं.

अंत में, साधु यादव का नाम इस मामले में अहम है. फोरेंसिक सबूत और परिवार के आरोपों से उनकी भूमिका की पुष्टि होती है. दूसरी ओर, सम्राट चौधरी पर “शामिल होने” का आरोप एक नया और बिना सबूत का राजनीतिक दावा प्रतीत होता है.