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“भारत” बनाम “इंडिया” : तब और अब

पटना (TBN – वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की खास रिपोर्ट)| समस्या जब स्पष्ट हो तब उसका समाधान निकल ही आता है. विवाद का समाधान नहीं निकलता. कश्मीर विवादित तभी तक रहा जबतक उसकी समस्या समझी नहीं गई. समस्या स्पष्ट हो गई (धारा 370 और 35 A) तो समाधान चार साल पहले निकल आया. ‘इंडिया’ शब्द पर विवाद कांग्रेस को पसंद आ सकता है, पर भाजपा ने उसका समाधान ढूंढ निकाला है. अपने बचे-खुचे वजूद के लिए कांग्रेस विवाद का सहारा ले तो यह उसका मसला है, यह देश का विवाद नहीं है.

रात्री भोज हेतु महामहिम राष्ट्रपति द्वारा G-20 के राष्ट्राध्यक्षों को भेजे गये निमंत्रण पत्र के एक शब्द पर कांग्रेस ने आपत्ति जताई है. इसे विवादित बनाये रखने की उसकी पूरी कोशिश है. क्योंकि वह समझ चुकी है कि एक शब्द का अंतर उसके सारे राजनीतिक प्रयासों पर पानी फेर देने के लिए काफी है.

कांग्रेस पर अचानक भारी दबाव

बीते मंगलवार से ही “प्रेसिडेंट आफ भारत” की जगह “प्रेसिडेंट आफ इंडिया” क्यों नहीं, को लेकर कोहराम मचा हुआ है. कांग्रेस पार्टी इसके राजनीतिक असर से अचानक भारी दबाव में आ गई है, तो इसी बीच एक मौंजू सवाल ने इसे और दिलचस्प बना दिया है. सवाल है कि जब नरेन्द्र मोदी अपनी सरकार के दस साल पूरे करने वाले हैं तब यह काम पहले करने के बजाय विपक्षी दलों के महागठबंधन का नाम जब इंडिया रखा गया तब क्यों किया ?

कांग्रेस का सांप-छछूंदर जैसा हाल

दूसरी तरफ यह चर्चा भी है कि केन्द्र सरकार पांच दिनो के आगामी विशेष सत्र में शब्द को बदलने/हटाने संबंधी संशोधन का विधेयक लायेगी और दोनों सदनो से पास करा लेगी. इस बिन्दू पर कांग्रेस के सामने कठिनाई का पहाड़ है. यदि वह बिल का समर्थन करे तो सरकार के इस निर्णय का समर्थन करेगी और यदि विरोध करे तो उसे नुकसान उठाना पडे़गा. क्योंकि देश का नाम भारत रखने का विरोध संबंधित पार्टी के लिए मंहगा सौदा साबित होगा. इस तरह उसके सामने सांप-छछूंदर जैसा हाल आन पड़ा है.

यह पहली बार नहीं है जब देश का नाम भारत रखने की बात उठी हो. पहली बार तो खुद संविधान सभा में ही यह मांग उठी. महीना भी सितम्बर का ही था जब एच वी कामथ ने 18 सितम्बर 1949 को संविधान सभा के समक्ष देश का नाम भारत रखने की मांग उठाई थी. हालांकि मतदान में उनकी मांग का प्रस्ताव गिर गया और अंतिम तौर पर ‘इंडिया दैट इज भारत’ स्वीकृत हुआ. लेकिन नेहरू के शासनकाल में वामपंथी विचारधारा के चंगुल में आ जाने के कारण इंडिया की महिमा बढ़ती गई, भारत की भारतीयता घटती रही. इसी बीच 2014 कालचक्र बनकर आया और तब से सब चक्कर में पडे़ हुए हैं.

कांग्रेस के लिए राजनीति का बंटाधार का सबब

हालांकि, उपरोक्त सवाल का एक मतलब देश को अनर्गल विवाद से दूर रहने की सलाहियत भी है. जबकि, संविधान में ‘भारत’ और ‘इंडिया’ दोनों ही शब्द हैं. उनमें से ‘इंडिया’ को हटाकर ‘भारत’ रखने की कवायद को बदलाव बताया जा रहा है. भाजपा के लिए एक तरफ यह राष्ट्र की अस्मिता से जुडा़ है तो दूसरी तरफ कांग्रेस के लिए यह उसकी राजनीति का बंटाधार करने का सबब बन सकता है. कांग्रेस की बिलबिलाहट इस बात के ही कारण है.

इस विवाद को तूल देने वाले इंडिया की प्रासंगिकता बताते हुए इसे ऐतिहासिक बता रहे हैं लेकिन भारत की प्राचीनता पर कुछ नहीं कह पाते. यह छोटा-मोटा अंतर नहीं है. 1947 से 2014 तक और 2014 से अबतक इंडिया और भारत के जनतांत्रिक पद्धति में कार्यप्रणाली का अंतर साफ-साफ दिखाई देता है. दुनिया के सभी देशों का एक धर्म है, भाषा है, अस्मिता है लेकिन 2014 तक भारत को विविधताओं से भरा एक सेक्यूलर देश ही बताया गया जिसमें बहुसंख्यक हिन्दुओं के धर्म को कानून के दायरे में लाया गया जबकि अल्पसंख्यकों (इस्लाम और इसाईयत) को मनमाना अधिकार दे दिए गए. आज रक्षा और रेल मंत्रालय के बाद तीसरी और चौथी ज्यादा सम्पत्ति क्रमशः वक्फ बोर्ड और इसाई मिशनरियों के पास है. हिन्दू मंदिरों का चढ़ावा इन्ही के काम आता है.

यह सब सिर्फ इसलिए होता रहा क्योंकि केन्द्र में या तो कांग्रेस की सरकार थी या गैर कांग्रेसी सरकारें गठबंधन के कारण राष्ट्र निर्मार्ण जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को करने से बचती रहीं. लेकिन अब जो विकट स्थिति 2014 से कांग्रेस के सामने है उसमें उसकी विसंगतियां ज्यादा स्पष्टता से सामने आई हैं और देश को अंधेरे में रखने वाली पार्टी की उसकी छवि बन चुकी है. जबकि नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भाजपा नीत केन्द्र सरकार की छवि देश में गरिमा बढा़ने वाली एक मजबूत और भरोसेमंद सरकार की है.

2014 से देश के स्तर पर जो बदलाव हुए हैं वह जग जाहिर है. पर कांग्रेस और उसके महागठबंधन इंडिया (I.N.D.I.A.) की बेचैनी मोदी के प्रति देशवासियों की विश्वसनीयता है जो बढ़ती ही जा रही है. और इसलिए राज्यों में जहां-जहां कांग्रेस सहित विपक्षी इंडिया की सरकारें हैं, सभी अपनी सत्ता बचाने की गरज से हर लोकतांत्रिक मर्यादा को ध्वस्त कर रही हैं.

केन्द्र सरकार अपने रास्ते पर आगे बढ़ रही है. G-20 के राष्ट्राध्यक्षों को भेजे गये निमंत्रण पत्र पर प्रेसिडेंट आफ भारत के बाद 7 सितम्बर को पीएम मोदी की इंडोनेशिया यात्रा के कार्य विवरणी में प्राइम मिनिस्टर आफ भारत अंकित किया गया है. शुरूआत हो चुकी है और देश-विदेश के स्तर पर आदतन इंडिया लिखने की जगह भारत लिखने में कोई दिक्कत नहीं आयेगी क्योंकि नाम का यह बदलाव भी जग जाहिर हो चुका है.

बताते चलें, “भारत” की-वर्ड सोशल मीडिया पर अब ज्यादा से ज्यादा पोस्ट पर इस्तेमाल किया जा रहा है. सोशल मीडिया X (ट्वीटर) पर यह बुधवार को सबसे ज्यादा 4.74 लाख बार प्रयोग में लाकर रिकार्ड बन गया है.