ऐतिहासिक भूलों को सुधारने का समय, सर्जिकल स्ट्राइक से पाकिस्तान सुधरनेवाला नहीं
दिल्ली के अंतिम भारतीय सम्राट,परम प्रतापी और अदम्य वीर, राजा पृथ्वीराज चौहान की रणनीतिक भूल की सजा देश आज तक भुगत रहा है. सदियां बीत गई लेकिन हम उनकी भूल से कोई सबक नहीं सिख पाए. दुश्मन के साथ अतिशय उदारता की उनकी भूल हम लगातार दुहराते जा रहे हैं. मोहम्मद गोरी नामक एक विदेशी आक्रांता ने एक -दो बार नहीं, कुल 17 बार दिल्ली पर आक्रमण किया था. सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने हर बार उसे पराजित किया. लेकिन बंदी बना कर काल कोठरी में रखने या मौत के घाट उतरने के बजाये उसे जीवित छोड़ते रहे.
अंततः 18 वीं बार उसने पृथ्वीराज को पराजित कर दिया और बंदी बनाकर अपने देश ले गया. वहां उनकी आंखे फोड़ दी गईं थी फिर भी उस अदम्य वीर ने अपने मित्र कवि चंद बरदाई के इशारे पर शब्दभेदी वाण चलाकर मोहम्मद गोरी को मार डाला. फिर दोनों मित्रों ने अपनी जान दे दी. इस देश की माटी वीरों को जन्म देती है लेकिन कूटनीतिक मोर्चे पर हम पिट जाते हैं. चाणक्य की नीति भूल जाते हैं. दुश्मन के प्रति दया दिखाने की चौहान की नीति हमारी रगों में दौड़ रहा है. और देश इसकी सजा भुगत रहा है.
इसके बाद 1947 में देश के विभाजन की दूसरी बड़ी भूल हुई. हमने पड़ोस में एक स्थायी दुश्मन बैठा लिया और उसे पालते -पोषते रहे. उसे अपनी पीठ में छुरा घोंपने की इजाजत देते रहे.
तीसरी भूल 1948 में हुई जब पाकिस्तानी कबाईली कश्मीर में घुस आए और बलात्कार, नरसंहार के तांडव के बाद जब भारतीय सेना उन्हें खदेड़ने लगी तब बीच में ही युद्ध विराम स्वीकार कर लिया गया. नतीजतन कश्मीर का एक हिस्सा आज भी पाकिस्तान के कब्जे में है.

चौथी गलती 1965 के युद्ध में हुई. हमने पाकिस्तान को पराजित किया. उसके बड़े भूभाग पर भारतीय सेना का कब्ज़ा भी हुआ लेकिन उसे यूँ ही वापस लौटा दिया. बिना कोई हर्जाना वसूले. बिना कोई प्रतिबन्ध लगाए. यह कैसी रणनीति या राजनीति है ? सवाल तो उठेंगे. सैनिकों की कुर्बानी कब तक देश व्यर्थ होता देखता रहेगा ?
पांचवी गलती 1971 में हुई. 71 के वार में पाकिस्तान के साथ युद्ध में हमने ‘न भूतो न भविष्यति’ वाली जीत हासिल की थी. करीब एक लाख पाक सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने समर्पण किया था. उन्हें बंदी बनाकर रखा गया. पाकिस्तान को तोड़कर बांग्लादेश बनाने में भारतीय सेना ने अपना खून बहाया. लेकिन शिमला समझौते में हमने सब कुछ गंवा दिया. जीता गया भूभाग पाकिस्तान को वापस लौटा दिया गया . बंदी बनाये गए एक लाख सैनिक भी रिहा कर दिए गए. उस समय हम चाहते तो पाक अधिकृत कश्मीर वापस ले सकते थे. युद्ध का खर्च वसूला जा सकता था. लेकिन हमारे नेताओं ने सैनिकों की शहादत से हासिल जीत को समझौते की मेज पर गंवा दिया. पाकिस्तान हार कर भी जीत गया.
1999 के कारगिल युद्ध में भी हमने अतिशय उदारता दिखाते हुए चारो तरफ से घेर लिए गए पाक सैनिकों को वापस लौटने के लिए सुरक्षित रास्ता मुहैय्या कराया. नतीजा क्या निकला ? पाकिस्तान हमारे देश में आतंकी हमला कराता रहा. अभी ताजी घटना कश्मीर के पहलगाम में हुई. उधर बांग्लादेश भी हमारा दुश्मन बन पाकिस्तान की गोद में जा बैठा है और हमें आंखे दिखा रहा है. हम क्षमा, दया और त्याग की मूरत बन अपने जन -धन की कुर्बानी दे रहे हैं.
अभी फिर मौका मिला है. पूरी दुनिया भारत के साथ और पाकिस्तान के विरोध में खड़ी है. भारत के पक्ष में माहौल है.
बेशक यह माहौल बनाने में हमारी सरकार की कूटनीति का बड़ा योगदान है. इस माहौल का फायदा उठाने का यह उचित समय है. सिर्फ कुछेक ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक से पाकिस्तान सुधरनेवाला नहीं है. यह समय ‘मत चूको चौहान’ की तर्ज पर पाकिस्तान को मटियामेट करने का है. यह समय ऐतिहासिक भूलों को सुधारने का है. अगर अभी हम फिर चुके तो सदियों तक इसकी सजा देश को भुगतनी होगी.
(उपरोक्त लेखक के अपने विचार हैं. उनके फेसबुक वॉल से उद्धृत)