Pitru Paksha 2024: 17 सितंबर से शुरू होगा पितृपक्ष, जानिए पूरी जानकारी
पटना (TBN – The Bihar Now डेस्क)| हिंदुओं द्वारा हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से 15 दिनों तक पितृपक्ष (Pitru Paksha) मनाया जाता है. इन 15 दिनों के दौरान हिन्दू अपने पितरों का तर्पण (offerings to ancestors) और पूजन करते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से पूरे कुल में सुख-शांति और बरकत आती है.
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से शुरू होनेवाल पितृपक्ष आश्विन मास की अमावस्या के दिन खत्म होता है. हिंदू पंचांग के मुताबिक इस साल पितृपक्ष 17 सितंबर से शुरू हो रहा है. पितृ पक्ष में हिन्दू अपने पितरों को खुश करने व उनके आशीर्वाद लेने की कोशिश करेंगे.
इस वर्ष 17 सितंबर को पूर्णिमा श्राद्ध या श्राद्धि पूर्णिमा या प्रोष्ठपदी पूर्णिमा मनाया जाएगा. किन्तु यह ध्यान देना आवश्यक है कि पूर्णिमा तिथि पर मृत्यु प्राप्त करने वालों के लिये महालय श्राद्ध भी अमावस्या श्राद्ध तिथि पर किया जाता है. हालाँकि, भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध पितृ पक्ष से एक दिन पहले पड़ता है, किन्तु यह पितृ पक्ष का भाग नहीं है. सामान्यतः पितृ पक्ष, भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध के अगले दिन से आरम्भ होता है.
पितृ पक्ष के बारे में (पौराणिक कथा)
प्राचीन भारतीय इतिहास के अनुसार, जब महाभारत के युद्ध के दौरान कर्ण की मृत्यु हो गई और उनकी आत्मा स्वर्ग पहुँच गई, तो उन्हें नियमित भोजन करने को नहीं मिला. इसके बदले उसे खाने के लिए सोना और जवाहरात दिए गए. उनकी आत्मा निराश हो गई और उन्होंने इस मुद्दे को इंद्र (स्वर्ग के भगवान) से संबोधित किया कि उन्हें वास्तविक भोजन क्यों नहीं दिया जा रहा है? तब भगवान इंद्र ने वास्तविक कारण बताया कि उन्होंने जीवन भर ये सभी चीजें दूसरों को तो दान कीं लेकिन अपने पूर्वजों को कभी नहीं दीं. तब कर्ण ने उत्तर दिया कि वह अपने पूर्वजों के बारे में नहीं जानता है और उसकी बात सुनने के बाद, भगवान इंद्र ने उसे 15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर वापस लौटने की अनुमति दी ताकि वह अपने पूर्वजों को भोजन दान कर सके. इस 15 दिन की अवधि को पितृ पक्ष के नाम से जाना जाता है.
पितृपक्ष 2024 की प्रमुख तिथियां
प्रतिपदा श्राद्ध – यह 18 सितंबर को मनाया जाएगा. प्रतिपदा श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की प्रतिपदा तिथि पर हुई हो. प्रतिपदा श्राद्ध तिथि को नाना-नानी का श्राद्ध करने के लिए भी उपयुक्त माना गया है. यदि मातृ पक्ष में श्राद्ध करने के लिए कोई व्यक्ति नहीं है, तो इस तिथि पर श्राद्ध करने से नाना-नानी की आत्मायें प्रसन्न होती हैं. यदि किसी को नाना-नानी की पुण्यतिथि ज्ञात नहीं है, तो भी इस तिथि पर उनका श्राद्ध किया जा सकता है. माना जाता है कि, इस श्राद्ध को करने से घर में सुख-समृद्धि आती है. प्रतिपदा श्राद्ध को “पड़वा श्राद्ध” के नाम से भी जाना जाता है.
द्वितीया श्राद्ध – परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की द्वितीया तिथि पर हुई हो. द्वितीया श्राद्ध को दूज श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है जो इस साल 19 सितंबर को मनाया जाएगा.
तृतीया श्राद्ध – इसे “तीज श्राद्ध” के नाम से भी जाना जाता है जो इस वर्ष 20 सितंबर को मनाया जाएगा. इस दिन परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की तृतीया तिथि पर हुई हो.
चतुर्थी श्राद्ध या चौथ श्राद्ध – 21 सितंबर को मनाया जाएगा जिसमें परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की चतुर्थी तिथि पर हुई हो.
पंचमी श्राद्ध – इसे “कुँवारा पञ्चमी” के नाम से भी जाना जाता है जो इस साल 22 सितंबर को है. इस दिन परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की पंचमी तिथि पर हुई हो.
षष्ठी श्राद्ध – यह 23 सितंबर को मनाया जाएगा. “छठ श्राद्ध” ने नाम से भी जाना जाने वाला श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की षष्ठी तिथि पर हुई हो.
सप्तमी श्राद्ध – “सप्तमी श्राद्ध”, जो 24 सितम्बर को किया जाएगा, परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की सप्तमी तिथि पर हुई हो.
अष्टमी श्राद्ध – 25 सितंबर को अष्टमी श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाएगा, जिनकी मृत्यु अष्टमी तिथि पर हुई हो. इस दिन शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की अष्टमी तिथि का श्राद्ध किया जा सकता है.
नवमी श्राद्ध – इसे “मातृनवमी”, “नौमी श्राद्ध” तथा “अविधवा श्राद्ध” के नाम से भी जाना जाता है जो इस साल 26 सितंबर को है. माता का श्राद्ध करने के लिये यह सबसे उपयुक्त दिन होता है क्योंकि इस तिथि पर श्राद्ध करने से परिवार की सभी मृतक महिला सदस्यों की आत्मा प्रसन्न होती है.
दशमी श्राद्ध – यह श्राद्ध 27 सितंबर को है जिस दिन परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की दशमी तिथि पर हुई हो.
एकादशी श्राद्ध – एकादशी श्राद्ध को ग्यारस श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है जो इस वर्ष 28 सितंबर को है.
द्वादशी श्राद्ध – इस साल 29 सितंबर को है जिस दिन परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की द्वादशी तिथि पर हुई हो. जो लोग मृत्यु से पूर्व सन्यास ग्रहण कर लेते हैं, उनके श्राद्ध के लिये भी द्वादशी तिथि उपयुक्त मानी जाती है. द्वादशी श्राद्ध को “बारस श्राद्ध ” के नाम से भी जाना जाता है.
मघा श्राद्ध – पितृ पक्ष के समय अपराह्न काल में मघा नक्षत्र होने पर मघा श्राद्ध किया जाता है. यदि मघा नक्षत्र अपराह्न काल में आंशिक रूप से दो दिनों तक रहता है, तो इस स्थिति में जिस दिन अधिकतम समयावधि तक मघा नक्षत्र रहेगा उसे ही मघा श्राद्ध के लिये उपयुक्त माना जाता है. इस वर्ष 29 सितम्बर की सुबह 03:38 बजे से मघा नक्षत्र शुरू होगी जो 30 सितम्बर को सुबह 06:19 बजे तक रहेगी. इसलिए मघा श्राद्ध 29 सितंबर को ही मनाया जाएगा.
त्रयोदशी श्राद्ध – यह 30 सितंबर को है तथा इसे तेरस श्राद्ध भी कहते हैं. त्रयोदशी श्राद्ध तिथि मृत बच्चों के श्राद्ध के लिये सबसे उपयुक्त होता है. साथ ही, परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु त्रयोदशी तिथि पर हुई हो. इस दिन शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की त्रयोदशी तिथि का श्राद्ध किया जा सकता है.
चतुर्दशी श्राद्ध – इसे “घट चतुर्दशी श्राद्ध“, “घायल चतुर्दशी श्राद्ध” तथा “चौदस श्राद्ध” के नाम से भी जाना जाता है. इस साल यह 1अक्टूबर को है. यह दिन सिर्फ उनके श्राद्ध के लिए होता है जिनकी मृत्यु किन्हीं विशेष परिस्थितियों में हुई हो, जैसे किसी हथियार द्वारा मृत्यु, दुर्घटना में मृत्यु, आत्महत्या अथवा किसी अन्य द्वारा हत्या. इनके अतिरिक्त चतुर्दशी तिथि पर किसी अन्य का श्राद्ध नहीं किया जाता है. इनके अतिरिक्त चतुर्दशी पर होने वाले अन्य श्राद्ध अमावस्या तिथि पर किये जाते हैं.
अमावस्या श्राद्ध – यह 2 अक्टूबर को है. इस दिन का श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु अमावस्या तिथि, पूर्णिमा तिथि तथा चतुर्दशी तिथि को हुई हो. यदि कोई सम्पूर्ण तिथियों पर श्राद्ध करने में सक्षम न हो, तो वो मात्र अमावस्या तिथि पर श्राद्ध (सभी के लिये) कर सकता है. अमावस्या तिथि पर किया गया श्राद्ध, परिवार के सभी पूर्वजों की आत्माओं को प्रसन्न करने के लिये पर्याप्त है. जिन पूर्वजों की पुण्यतिथि ज्ञात नहीं है, उनका श्राद्ध भी अमावस्या तिथि पर किया जा सकता है. इसीलिये अमावस्या श्राद्ध को “सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या” के नाम से भी जाना जाता है.
जानकार ब्राह्मण से ही श्राद्ध कर्म
चूंकि पितृ पक्ष में पितरों को तर्पण दिया जाता है इसलिए इसे किसी जानकार ब्राह्मण से ही श्राद्ध कर्म (पिंडदान, तर्पण) करवाना चाहिए. श्राद्ध का मतलब श्रद्धा है, इसलिए पूरी श्रद्धा से किए गए श्राद्ध कर्म से बहुत पुण्य तथा पितरों का आशीर्वाद मिलता है.
पितृ पक्ष में पूरी श्रद्धा से ब्राह्मणों को दान तथा गरीब, जरूरतमंदों की सहायता करना चाहिए. साथ ही गाय, कुत्ते, कौवे आदि पशु-पक्षियों के लिए भी भोजन का एक अंश जरूर डालना चाहिए. इन्हें भोजन देते समय अपने पितरों का स्मरण करते हुए मन ही मन उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करना चाहिए.
यदि संभव हो तो गंगा नदी के किनारे पर अन्यथा घर पर श्राद्ध कर्म करवाना चाहिए. श्राद्ध पूजा दोपहर के समय शुरू करनी चाहिए. जिस दिन श्राद्ध हो उस दिन ब्राह्मणों को भोज करवाना चाहिए. भोजन के बाद दान दक्षिणा देकर उन्हें संतुष्ट करना चाहिए.
पितृ दोष निवारण पूजा – किसी भी जातक की कुंडली में पितृ दोष होने के कारण नकारात्मक प्रभावों का सामना करना पड़ता है. इस दोष को पितृ पक्ष में पितृ दोष निवारण पूजा द्वारा दूर किया जा सकता है.
पितृपक्ष में क्या नहीं करना चाहिए
- प्याज लहसुन – पितृ पक्ष के दौरान पिंडदान, तर्पण या श्राद्ध कर्म करते हैं. इसके अलावा अगर संभव हो सके तो इस दौरान लहसुन और प्याज का सेवन भी नहीं करना चाहिए.
- मांस – पितृपक्ष के दौरान मांसाहारी भोजन भूलकर भी नहीं करना चाहिए. माना जाता है कि ऐसा करने से पूर्वज नाराज होते हैं.
- शाकाहारी – कई चीजें शाकाहारी ऐसी हैं जिनको पितृ पक्ष के दौरान खाने की मनाही होती है. माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान खीरा, जीरा और सरसों के साग का सेवन नहीं करना चाहिए.
- पशु-पक्षियों की सेवा – मान्यता है कि इस दौरान पशु-पक्षियों को सताना नहीं चाहिए. क्योंकि ऐसा करने से पूर्वज नाराज हो जाते हैं. ऐसे में पितृ पक्ष के दौरान पशु-पक्षियों की सेवा करनी चाहिए.
- मांगलिक कार्य – मांगलिक कार्य पितृ पक्ष में निषेध माने गए हैं. कोई भी शुभ काम इन 15 दिनों तक नहीं किया जाता है. जैसे ही नवरात्रि की शुरूआत होती है वैसे ही सारे मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं.
- बाल कटाना – पितृपक्ष के दौरान बाल नहीं कटाना चाहिए. दाढ़ी-मूंछ भी बनाने से परहेज करना चाहिए.
(अस्वीकरण: उपरोक्त लेख केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. अधिक जानकारी के लिए किसी विशेषज्ञ या अपने ब्राह्मण से परामर्श करें. दी बिहार नाउ इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)