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कोविड प्लाज्मा डोनेशन से पहले जान लें ये जरूरी बातें…

Patna (TBN – The Bihar Now डेस्क) | कोरोना वायरस की चपेट में आए मरीजों को ठीक करने के लिए भारत में प्लाज्मा थेरेपी पर काम किया जा रहा है. इतना ही नहीं कई कोरोना के मरीजों को प्लाज्मा थेरेपी दी जा चुकी है. कुछ मामलों में इसके परिणाम भी सकारात्मक मिले हैं. यही वजह है कि भारत में कोरोना मरीजों के परिजन प्लाज़्मा डोनर की तलाश करते दिखाई दे रहे हैं. जबकि प्लाज्मा दान करने के लिए लोग आगे नहीं आ रहे हैं. प्लाज्मा डोनर न मिलने के पीछे प्लाज्मा दान के खतरों का अनुमान और डर बताया जा रहा है.

हालांकि सबसे बड़ा सवाल यहां यह भी है कि क्या वास्तव में प्लाज्मा थेरेपी कोरोना का इलाज है?

सबसे पहले तो यह जान लें की प्लाज्मा थेरेपी क्या है?

हमारे खून में चार प्रमुख चीजें होती हैं. डब्ल्यूबीसी, आरबीसी, प्लेटलेट्स और प्लाज्मा. आजकल किसी को भी होल ब्लड (चारों सहित) नहीं चढ़ाया जाता. बल्कि इन्हें अलग-अलग करके जिसे जिस चीज की ज़रूरत हो वो चढ़ाया जाता है. प्लाज्मा, खून में मौजूद 55 फीसदी से ज्यादा हल्के पीले रंग का पदार्थ होता है, जिसमें पानी, नमक और अन्य एंजाइम्स होते हैं. ऐसे में किसी भी स्वस्थ मरीज जिसमें एंटीबॉडीज़ विकसित हो चुकी हैं उसका प्लाज़्मा निकालकर दूसरे व्यक्ति को चढ़ाना ही प्लाज्मा थेरेपी है.

क्या सभी लोग प्लाज्मा दान कर सकते हैं?

नहीं! जो लोग कोरोना होने के बाद ठीक हो चुके हैं. उनके अंदर एंटीबॉडीज विकसित हो चुकी हैं. सिर्फ वे ही लोग ठीक होने के 28 दिन बाद प्लाज्मा दान कर सकते हैं.

प्लाज्मा देने वाले को क्या खतरे हो सकते हैं?

प्लाज्मा देने वाले को कोई खतरा नहीं है. बल्कि यह रक्तदान से भी ज्यादा सरल और सुरक्षित है. प्लाज्मा दान करने में डर की कोई बात नहीं है. हीमोग्लोबिन भी नहीं गिरता. प्लाज्मा दान करने के बाद सिर्फ एक-दो गिलास पानी पीकर ही वापस पहली स्थिति में आ सकते हैं.

रक्तदान और प्लाज्मा दान में क्या अंतर है?

रक्तदान में आपके शरीर से पूरा खून लिया जाता है. जबकि प्लाज्मा में आपके खून से सिर्फ प्लाज्मा लिया जाता है और रेड ब्लड सेल्स, व्हाइट ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स वापस आपके शरीर में पहुंचाए जाते हैं. ऐसे में प्लाज्मा दान से शरीर पर कोई बहुत फर्क नहीं पड़ता.

प्लाज्मा दान में कितना वक्त लगता है?

500 ml. प्लाज़्मा लेने में सिर्फ आधे से पौन घण्टा लगता है.

इससे पहले किसी बीमारी में प्लाज्मा का इस्तेमाल हुआ है?

हां, सार्स (SARS) और मर्स (middle east respiratory syndrome) में कुछ मरीजों को प्लाज़्मा से फायदा हुआ था. बहुत बड़ा नहीं लेकिन 20-20 मरीजों पर अध्ययन प्रकाशित हुए थे. इसी वजह से कोरोना मरीजों को भी प्लाज़्मा दिया जा रहा है.

कोरोना के मरीजों में प्लाज्मा थेरेपी कितनी कारगर है?

एक बात यहां स्पष्ट करना बेहद ज़रूरी है कि कोरोना में प्लाज्मा थेरेपी को लेकर अभी तक कोई भी अध्ययन नहीं आया है, जिसमें कहा गया हो कि प्लाज्मा से फायदा होता है. न ही अभी तक देश भर में चल रहे 80 से ज्यादा ट्रायल में से किसी के परिणाम आए हैं. ऐसा माना जा रहा है कि इसमें एंटीबॉडीज़ होती हैं तो ये फायदा पहुंचा सकता है. कोरोना के कुछ मरीजों के ठीक होने के आधार पर ही प्लाज्मा थेरेपी को अनुमति दे दी गई है. हालांकि मोडरेट मरीज इस थेरेपी से ही नहीं वैसे भी ठीक हो रहे हैं.

कोरोना वायरस के संक्रमण की पहचान होने के 28 दिन बाद प्लाज्मा डोनेट किया जा सकता है

  1. उम्र -18 साल से 65 साल (पुरुष और महिला) अपना प्लाज्मा डोनेट कर सकते हैं.
  2. जिन महिलायों ने बच्चे को जन्म दिया है वो डोनेट नही कर सकती है.
  3. कोविड 19 के RTPCR Positive और फिर RTPCR Negative रिपोर्ट आने के 14 दिनों के बाद IGG टेस्ट ICMR और सरकारी मान्यता प्राप्त
    जांचघर से होने के बाद ही प्लाज्मा डोनेशन की प्रक्रिया शुरू होती है.
  4. प्लाज्मा डोनेट करने वाले का वजन 50 किलोग्राम से अधिक होना चाहिए.
  5. जिन लोगों को कोई बीमारी है वे प्लाजमा डोनेट नहीं कर सकते हैं. जैसे-डायबिटीज(जिनको इन्सुलिन चढ़ रहा हो),कैंसर ,हार्ट से संबंधित समस्याएं ,लीवर
    प्रॉब्लम ,कीडनी से संबंधित बीमारियां,ब्लड प्रेशर की समस्या.
  6. दो सप्ताह बाद स्वस्थ व्यक्ति दुबारे भी प्लाज्मा डोनेशन कर सकता है.

ICMR ने पटना में जिन तीन जगहों को कोविड प्लाज्मा डोनेशन के लिए अधिकृत किया है उनके नाम हैं-

  1. AIIMS पटना
  2. IGIMS पटना
  3. पारस हॉस्पिटल पटना