नागरिकों के स्वास्थ्य और जीवन से खिलवाड़ नहीं कर सकती बिहार सरकार – SC
नई दिल्ली / पटना (TBN – The Bihar Now डेस्क)| सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) ने पटना उच्च न्यायालय (Patna High Court) को बिहार में फर्जी फार्मासिस्टों (fake pharmacists) के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका (PIL) मामले में जमकर फटकार लगाई है. साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने पटना हाईकोर्ट को पुनर्विचार करते हुए नए सिरे से फैसला करने का निर्देश दिया.
“मुकेश कुमार बनाम बिहार राज्य और अन्य” मामले में जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एमएम सुंदरेश की खंडपीठ (Bench of justice MR Shah and MM Sundresh) ने कहा कि उच्च न्यायालय को जनहित और नागरिकों के स्वास्थ्य पर विचार करना चाहिए और चार सप्ताह के भीतर याचिका पर सुनवाई करनी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “किसी भी पंजीकृत फार्मासिस्ट की अनुपस्थिति में अस्पताल/डिस्पेंसरी चलाने और फर्जी फार्मासिस्ट द्वारा ऐसे अस्पताल चलाने और यहां तक कि फर्जी फार्मासिस्ट और यहां तक कि बिना किसी फार्मासिस्ट के मेडिकल स्टोर चलाने से अंततः नागरिक के स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा. राज्य सरकार और बिहार राज्य फार्मेसी परिषद को नागरिकों के स्वास्थ्य और जीवन के साथ खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.”
कोर्ट ने पटना हाई कोर्ट से कहा कि ये मामला लोगों के स्वास्थ्य और जिंदगी से जुड़ा हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को निर्देश दिया कि वो बिहार सरकार और बिहार स्टेट फार्मेसी काउंसिल (Bihar State Pharmacy Council) से विस्तृत रिपोर्ट और जवाब तलब करे. वो राज्य सरकार को फार्मेसी काउंसिल से पूछे कि कितने सरकारी और निजी अस्पताल फर्जी या बिना रजिस्ट्रेशन वाले फार्मासिस्टों से काम करा रहे हैं. क्या राज्य सरकार ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई की है. हाई कोर्ट ये भी पूछे कि क्या फार्मेसी प्रैक्टिस रेगुलेशन का पालन किया जा रहा है.
इससे पहले, 21 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दवा वितरण का काम अप्रशिक्षित कर्मियों को देना खतरनाक है. कोर्ट ने बिहार सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि पूरे राज्य में एक भी अस्पताल रजिस्टर्ड फार्मासिस्टों की मदद के बिना किसी भी दवा का वितरण नहीं करे. कोर्ट ने कहा था कि अगर कोई अप्रशिक्षित व्यक्ति गलत दवा या दवा की गलत खुराक देता है और इसका परिणाम कुछ गंभीर होता है तो इसका जिम्मेदार कौन होगा. कोर्ट ने कहा था कि हम बिहार सरकार को अपने नागरिकों के जीवन के साथ खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दे सकते (The State Government and the Bihar State Pharmacy Council cannot be permitted to play with the health and life of the citizens).
सुनवाई के दौरान बिहार सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा था कि राज्य सरकार दोषी कर्मचारियों के खिलाफ मिली शिकायतों के आधार पर कार्रवाई करेगा. इस दलील को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए कहा था कि जहां गरीबी और शिक्षा की कमी है, आप शिकायत दर्ज होने तक इंतजार नहीं कर सकते, वह भी बिहार जैसे राज्य में. आप इस मामले की गंभीरता को नहीं समझते. यह सिर्फ एक मामला नहीं है. सवाल फर्जी फार्मासिस्ट का भी है और फर्जी डॉक्टर का भी.
कोर्ट ने बिहार सरकार के वकील से कहा था कि प्रदेश में आपको फर्जी डॉक्टर और फर्जी कंपाउंडर की भरमार मिल जाएगी. गरीब और अनपढ़ लोगों को उनके पास जाना पड़ता है. बिहार के अस्पतालों की हालत सबसे खराब है और आप कह रहे हैं कि आप शिकायत दर्ज होने तक इंतजार करेंगे. तब राज्य सरकार ने कहा था कि इस मामले में बिहार राज्य फार्मेसी परिषद निष्क्रिय है.
क्या है मामला
अपीलकर्ता ने पटना उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ के दिसंबर 2019 के आदेश को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष वर्तमान अपील दायर की थी, जिसमें उसकी जनहित याचिका खारिज कर दी गई थी. उच्च न्यायालय के समक्ष दायर याचिका में कहा गया था कि बिहार के कई सरकारी अस्पतालों में गैर-पंजीकृत फार्मासिस्ट दवाइयां बेच रहे हैं. जनहित याचिका में मांग की गई थी कि राज्य सरकार को निर्देशित किया जाए कि वह ऐसी प्रथाओं की अनुमति न दे जो फार्मेसी अधिनियम का उल्लंघन करती हैं. इसने समर्पित फार्मासिस्ट पदों के निर्माण के लिए, फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा बनाए गए फार्मेसी प्रैक्टिस विनियमों का पालन करने के लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश देने की भी मांग की गई थी.
इसके अलावा, याचिका में बिहार राज्य फार्मेसी परिषद के कामकाज की जांच के लिए फार्मेसी अधिनियम की धारा 45 (5) के तहत एक जांच समिति के गठन की मांग की गई थी, क्योंकि यह कथित रूप से फर्जी फार्मासिस्टों को लाइसेंस दे रही थी.