सम्राट अशोक के 2300 साल पुराने शिलालेख को घेरकर बनाई मजार
सासाराम (TBN – The Bihar Now डेस्क)| देश के प्रतापी सम्राट अशोक (Country’s majestic emperor Ashoka) के शिलालेख के अस्तित्व को 23 साल में मिटा कर वहां मजार बना दिया गया है. आश्चर्य यह है कि पुरातत्व विभाग भी इसको रोकने में कुछ नहीं कर पाया है. बता दें, पूरे देश में अशोक के ऐसे 8 शिलालेखों में से यह बिहार में स्थित एकमात्र शिलालेख है.
बिहार के सासाराम में स्थित कैमूर पर्वत शृंखला की चंदन पहाड़ी की प्राकृतिक कंदरा में उत्कीर्ण 2300 साल पुराने सम्राट अशोक के लघु शिलालेख मजार के रूप में बदलने का प्रयास किया गया है. इस शिलालेख को चूने से पोतवा कर मजार बना दी गई है. इतना ही नहीं, मजार की घेराबंदी कर ताला भी जड़ दिया गया है.
विरासत को समझने की इच्छा रखने वाले पर्यटक व बौद्ध धर्मावलंबियों के आने पर यहां मनाही है. आप शिलालेख की चर्चा भी करेंगे तो यहां के केयरटेकर भड़क जाएंगे. जाने-अनजाने यहां हिदू-मुस्लिम दोनों धर्म के लोग मजार समझ टेकते हैं. साल में एक बार उर्स का भी आयोजन होता है.
शिलालेख का इतिहास
1917 में एएसआई (Archaeological Survey of India) के अधीक्षक गौतम भट्टाचार्य ने इस महत्वपूर्ण लघु शिलालेख को संरक्षित किया था. 2008 में पुरातत्व विभाग ने इस शिलालेख को संरक्षित स्मारक के रूप में अधिसूचित किया.
आपको बता दें कि यह लघु शिलालेख कैमूर पहाड़ी पर चंदन शहीद मजार से लगभग 20 फीट नीचे पश्चिम दिशा में 10 फीट लंबाई 49 फीट चौड़े गुफ्फे में स्थित है. स्थानीय लोगों के अनुसार, इस शिलालेख को मजार में बदलने की पूरी कोशिश की गई और और वह सफल भी हुए. उनके अनुसार, यहां पर एएसआई (ASI) के द्वारा एक बोर्ड भी लगाया गया था जिसका अब बोर्ड का नामोनिशान नहीं है.
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वही इसकी इतिहास के बारे में बताएं तो इतिहासकार डॉ श्याम सुंदर तिवारी बताते हैं कि ईसा पूर्व 256 ई में देश भर में 8 स्थानों पर तीसरे मौर्य सम्राट अशोक ने लघु शिलालेख लगवाए थे. इनमें से एक सासाराम की चंदन पहाड़ी पर है जिसे अब मजार बना दिया गया है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) की अधीक्षक गौतमी भट्टाचार्य के अनुसार देश में ब्राह्मी लिपि में बुद्ध के संदेश लिखे ऐसे शिलालेख मात्र आठ हैं.
उन्होंने आगे बताया कि कलिंग विजय युद्ध में हुए रक्तचाप से विचलित होकर बुद्ध की शरण में आए सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के संदेशों के प्रचार प्रसार के लिए जगह-जगह ऐसे शिलालेख खुदवाये थे.
अशोक के शिलालेख को मजार में बदल देने के मामले में सासाराम के रहने वाले कौशल सिन्हा ने बताया कि कैमूर पहाड़ी श्रृंखला पर्यटन के दृष्टिकोण से पूरे बिहार का केंद्र बन सकता है. लेकिन सरकार की अनदेखी के वजह से आज यह क्षेत्र वंचित है. उन्होंने कहा कि यदि सरकार इस क्षेत्र का विकास करती है तो स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगी. साथ ही, पूरे देश को यह देखने को मिलेगा कि बिहार के प्रकृति में खूबसूरती का भंडार है.
बता दें, अशोक का शिलालेख हमारे इतिहास को दर्शाती है, लेकिन सरकार की बेरुखी के कारण आज आने वाली पीढ़ी अपने इतिहास को देखने के लिए तरस रही है और भटक रही है. सरकार की लापरवाही के कारण ही आज एक विरासत मजार बन चुकी है.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुरोध पर 2008, 2012 और 2018 में अशोक शिलालेख के पास अतिक्रमण मुक्त करने के लिए तत्कालीन डीएम ने सासाराम के एसडीएम को निर्देश दिया था. स्थानीय प्रशासन के मुताबिक, एसडीएम ने मरकाजी मोहर्रम कमेटी से मजार की चाबी लौटाने की बात कही तो कमेटी ने एसडीएम की बातों को अनदेखी कर चाबी नहीं लौट आई.
शिलालेख पूरी तरह से गेट के अंदर कैद
इस संबंध में बीजेपी के वरिष्ठ नेता व पूर्व विधायक जवाहर प्रसाद बताते हैं कि आज शिलालेख पूरी तरह से गेट के अंदर कैद है. उन्होंने बताया कि उसकी चाबी कांग्रेस के कार्यकर्ता जी एम अंसारी उर्फ टुन्नु के पास है. इस शिलालेख पर तालाबंदी कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने ही किया है. बीजेपी नेता ने बताया कि हम चाहते हैं कि जीएम अंसारी से जाकर इस संबंध में बातचीत करके कोई हल निकाले लेकिन डर लगता है कि कहीं संप्रदायिक दंगा ना हो जाए. इसलिए अब हम कुछ बोलते नहीं है.
उन्होंने कहा कि उनके द्वारा कई बार इस शिलालेख से अतिक्रमण हटाने के लिए विधानसभा में आवाज उठाई गई लेकिन उनकी आवाज को अनदेखा किया गया.
आज शिलालेख के ऊपर एक बड़ी इमारत बना दी गई है. शिलालेख के प्रवेश द्वार पर भारी भरकम लोहे का गेट भी लगवा दिया गया है. अगर कोई पर्यटक स्थल पर शिलालेख देखना भी चाहता होगा तो उसकी इच्छा पूरी नहीं हो पाएगी.