फसल लगाने के पूर्व मिट्टी की जाँच कराना आवश्यक – कृषि मंत्री
पटना (TBN रिपोर्ट) | स्थाई खेती के लिए फसल लगाने के पूर्व मिट्टी की जाँच कराना आवश्यक है – ये बातें बिहार के कृषि मंत्री डॉ प्रेम कुमार ने रविवार को कही.
उन्होंने कहा कि मिट्टी की जाँच कराने से यह पता चल जाता है कि हमारी मिट्टी में किस पोषक तत्व की कितनी कमी है. मिट्टी जाँच कराने के बाद किसानों को मिले मृदा स्वास्थ्य कार्ड के अनुसार अनुशंसित मात्रा में उर्वरक एवं पोषक तत्व का खेतों में उपयोग करने से न केवल मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार होता है, बल्कि फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता में भी वृद्धि होती है.
उन्होंने कहा कि राज्य में मिट्टी जाँच के लिए सभी 38 जिलों में जिलास्तरीय मिट्टी जाँच प्रयोगशालाएँ कार्यरत हैं तथा प्रत्येक प्रमंडल में एक-एक अर्थात कुल 9 चलन्त मिट्टी जाँच प्रयोगशालाओं की स्थापना की गई है, जहाँ किसानों के खेत से संग्रहित नमूने निःशुल्क जाँच किए जाते हैं.
इनके अतिरिक्त इन प्रयोगशालाओं की गुणवत्ता नियंत्रण हेतु राज्य में तीन रेफरल प्रयोगशाला के रूप में केन्द्रीय मिट्टी जाँच प्रयोगशाला, मीठापुर, पटना, डॉ राजेन्द्र प्रसार केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर एवं बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर कार्यरत हैं, जिनसे राज्य की मिट्टी जाँच क्षमता में बढ़ोतरी हुई है.
मिट्टी का सैम्पल (नमूना) लेने में सॉफ्टवेयर आधारित नमूना लेने की प्रक्रिया अपनाई जाती है ताकि ये प्रक्रिया पारदर्शी (transparent) रहे. विभागकर्मी खेत पर जाकर आक्षांश एवं देशान्तर के साथ किसान का पूरा डिटेल्स भी प्राप्त करते हैं.
उन्होंने कहा कि वर्ष 2019-20 में 1,02,183 मिट्टी नमूनों की जाँच विभिन्न मिट्टी जाँच प्रयोगशालाओं में की गई. जाँच के उपरान्त अब तक 78,002 मृदा स्वास्थ्य कार्ड राज्य के किसानों के बीच वितरित किया गया है.
मंत्री ने कहा कि हमारे पूर्वज खेती करने के साथ साथ यह ख्याल भी रखते थे कि खेत की दशा कैसे सुधारी जाये, जिससे कि उसकी उर्वरा शक्ति बनी रहे.
उर्वरा शक्ति को बरकरार रखने के लिए गोबर की खाद का प्रयोग, फसल अवशेष को खेत में जोतना, खेतों में पशुओं को रखना, रबी फसल की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करना, फसल चक्र में दलहनी फसलों की खेती, खेत को एक फसल के बाद खाली छोड़ना आदि कार्य करते थे.
लेकिन आज हम लगातार मिट्टी का दोहन कर रहे हैं. एक तरफ सघन खेती के क्रम में रासायनिक खादों एवं अन्य कृषि रसायनों का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ मिट्टी के स्वास्थ्य की सुधार के लिए कोई उपाय नहीं कर रहे हैं.
रासायनिक उर्वरक का असंतुलित प्रयोग मिट्टी की उर्वरा शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है. इससे यह बात साफ नहीं हो पाती है कि मिट्टी में कौन-कौन से पोषक तत्व कितनी मात्रा में हैं और उनकी कितनी आवश्यकता मिट्टी को है. इस जानकारी के अभाव में जब हम रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते हैं, तो लाभ होने के बदले हानि होती है.
मंत्री ने कहा कि जनसंख्या वृद्धि, औद्योगीकरण, शहरीकरण आदि के कारण एक तरफ जहाँ कृषि योग्य भूमि की उपलब्धता में कमी हो रही है, वहीं विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों से मिट्टी प्रदूषित हो रही है.
उन्होंने कहा कि आज हमें यह देखना है कि न्यूनतम लागत में ज्यादा से ज्यादा गुणवत्तायुक्त पैदावार हो जिससे किसानों की आय ज्यादा हो सके. इसके साथ ही, पौधों के पोषण हेतु मृदा का स्वास्थ्य तथा पर्यावरण का संतुलन बना रहे.
उन्होंने बताया कि देश की बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए उपयुक्त मात्रा में खाद्यान्न उपलब्ध कराने के दृष्टिकोण से अधिक-से-अधिक उपज प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा है. इसके लिए सघन खेती के कारण उर्वरक एवं कृषि रसायनों के उपयोग में काफी वृद्धि हुई है. इसका खेत की मिट्टी के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. उन्होंने किसान भाइयों एवं बहनो से अपील किया कि अभी रबी फसल की कटनी हो जाने से खेत खाली पड़ा है. यही समय है कि अपने खेतों के मिट्टी की जाँच करा लें, जिससे आपके फसल का गुणवत्तापूर्ण उत्पादन हो सके.