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राजा संग्राम सिंह की अदावत और उनकी पांच पुत्रियों के बलिदान पर किया जा सकता है गर्व

मुंगेर (TBN – स्वतंत्रता दिवस पर विशेष)| ऐतिहासिक नगरी हवेली खड़गपुर का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है. यह शहर 14 राजाओं की राजधानी रहा है. हवेली खड़गपुर के अंतिम हिंदू राजा संग्राम सिंह के पराक्रम की कथा हो अथवा उनकी वीरांगना रानी ज्योतिर्मयी के संघर्ष की दास्तां और उनके पांच पुत्रियों को शहादत, इनकी कहानियों के हरेक शब्दों पर आप गर्व कर सकते है. अगर आप संग्रामपुर के निवासी है तो बात ही कुछ और है यह नगर अंतिम हिंदू राजा संग्राम सिंह के द्वारा ही बसाया गया था.

राजा संग्राम सिंह 16 वीं शताब्दी में खड़गपुर राज के शासक थे. वह अकबर के समकालीन थे. संग्राम सिंह शुरू में अकबर के प्रति वफादार थे, लेकिन जहांगीर के शासनकाल के दौरान, उन्होंने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया.

अकबर की मृत्यु के बाद राजा संग्राम सिंह ने मुगल शासन से स्वतंत्र होने का प्रयास किया. जहाँगीर के संस्मरण के अनुसार, उसने लगभग 4000 सैनिक और बड़ी संख्या में पैदल सैनिक एकत्र किये और मुगल सत्ता को चुनौती दी. बिहार के गवर्नर बाज बहादुर ने खड़गपुर पर हमला किया. युद्ध में राजा के एक सैनिकों द्वारा धोखे से ही राजा संग्राम सिंह की हत्या कर दी गई. उनकी रानी ज्योतिर्मयी ने उनके बाद सैनिकों का नेतृत्व किया और धर्म परिवर्तन कर इस्लाम स्वीकार कर मुगलों के अधीनस्थ नहीं रहना स्वीकार किया.

कुछ दिनों के संघर्ष के बाद उस समय के आतताइयों से खुद और अपनी पांचों बेटियों (राजलक्ष्मी, रत्न लक्ष्मी,ऐश्वर्य लक्ष्मी, मुक्तावती तथा नैनावती) की आबरू बचाने को जल समाधि ले ली. पहाड़ियों की गोद में बसे रामेश्वर कुंड और भौंरा कुंड जाने के रास्ते में ‘हा-हा पंचकुमारी’ आज भी चीख-चीख कर अपनी पीड़ा कह रही है. मुंगेर गजेटियर में भी जिक्र है. पांच दशक पहले तक हवेली खड़गपुर के अंतिम मुस्लिम राजा के वंशज टमटम (तांगा) चलाते दिखते थे.

पंचकुमारी और रामेश्वर कुंड के इलाकों में स्थानीय महिलाओं के द्वारा विशेष पूजन की परंपरा रही है, जो अब तक कायम है. मकर संक्रांति और उसके एक दिन बाद लोग इसी पूजन परंपराओं के उद्देश्य से ऐतिहासिक रामेश्वर कुंड की ओर कूच किया करते थे. जो अब भी कुछ स्थानीय लोगों के द्वारा किया जाता है.

जैसा कि ऊपर बताया गया है कि किनवार वंश के खड़गपुर के राजा संग्राम सिंह की हत्या के बाद उनकी पांचों अविवाहित कन्याओं राजलक्ष्मी, रत्न लक्ष्मी, ऐश्वर्य लक्ष्मी, मुक्तावती तथा नैनावती पर इस्लाम कुबूल करने का दबाव डाला जाने लगा. जिसके बाद इन पांचों कन्याओं ने शत्रुओं के हाथ पड़ने के बजाए भागकर जलसमाधि ले लेना ही बेहतर समझा. इन पांचों वीर क्षत्राणियों ने परंपरागत जौहर को प्राप्त किया. इन्हीं पांच कन्याओं के नाम पर आज भी अंग प्रदेश में घर-घर में प्रत्येक देवस्थलों पर यहां तक कि पत्थर पर भी सिंदूर की पांच खड़ी रेखाएं खींची जाने का परंपरा की शुरुआत की गई. अमूमन हर शादी-ब्याह, पारंपरिक त्योहार और सामाजिक, धार्मिक आयोजन के दौरान महिलाएं पांच खड़ी रेखाओं की परंपराओं को निभाती हैं.

लेखक

वहीं, स्टैटिस्टिकल अकाउंट ऑफ बंगाल में लेखक और ब्रिटिश अधिकारी केविलियम विल्सन हंटर ने लिखा है कि जब जहांगीर को खड़गपुर में विद्रोही गतिविधि के बारे में पता चला, तो उन्होंने संग्राम सिंह को दिल्ली की अदालत में पेश होने का आदेश दिया, लेकिन आदेश को नजरअंदाज कर दिया गया. अतः जहाँगीर ने बिहार के सूबेदार जहाँगीर कुली खाँ को विद्रोह दबाने का आदेश दिया.

बाज बहादुर नामक एक सेनापति को खड़गपुर भेजा गया. राजा संग्राम सिंह ने हवेली खड़गपुर के पास एक स्थान से पहले मार्कन में अपने सैनिकों को इकट्ठा किया. कई दिनों तक युद्ध चलता रहा. तब राजा संग्राम सिंह का एक पैदल सैनिक मुगल सेना के शिविर में गया और कीमत के बदले राजा संग्राम सिंह की हत्या करने की पेशकश की. मुगल सेना ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. हत्यारा संग्राम सिंह की हत्या करने में सफल हो गया.

राजा संग्राम सिंह की मृत्यु के बाद उसकी सेना भ्रमित हो गयी. वे युद्ध क्षेत्र से भाग रहे थे लेकिन राजा की पत्नी रानी चंद्रजोत ने सैनिकों को लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया. उसने अपने बेटे तोरल मल को नया राजा बनाया और कई महीनों तक लड़ाई जारी रखी. बाज बहादुर युद्ध समाप्त करने के लिए व्याकुल हो गये और उन्होंने समझौता कर लिया. उसने रानी से वादा किया कि अगर वह और उसका बेटा जहांगीर के दरबार में जाने के लिए सहमत हों तो वह उनकी ओर से हस्तक्षेप करेंगे. रानी ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और उनके साथ दिल्ली चली गईं.

लेकिन जब वे दिल्ली पहुंचे तो विश्वासघात करके तोरल मल को कैद कर लिया गया. लेकिन बाज बहादुर के अनुरोध पर उन्हें रिहा कर दिया गया और जहांगीर के सामने पेश किया गया. जहांगीर ने तोरल मल के आचरण और बातचीत से प्रभावित होकर उसे अपना धर्म बदलने की सलाह दी, जिस पर वह सहमत हो गया. उन्हें रोज़ अफज़ुन की उपाधि से सम्मानित किया गया और एक कुलीन की बेटी से शादी की गई. खड़गपुर का क्षेत्र एक वर्ष के लिए इस्लाम खान को और फिर बिहार के राज्यपाल अफजल केखा को सौंपा गया.

(कुणाल भगत की खास रिपोर्ट)