क्या बिहार के युवा भविष्य में शिक्षक बनने का सपना देखना छोड़ दें?
पटना (TBN मैनिजिंग एडिटर) | बिहार में नियोजित शिक्षकों की हड़ताल पिछले 65 से भी ज्यादा दिनों से चली आ रही है. लेकिन अभी तक सरकार और हड़ताली शिक्षकों में कोई समझौता नहीं हो पाया है. बिहार (Bihar) के नियोजित शिक्षक “समान काम के लिए समान वेतन की मांग” को लेकर पर अड़ें हैं. इन शिक्षकों का वेतन पिछले तीन महीनों से बंद है.
वेतन बंद होने के कारण हड़ताल कर रहे शिक्षकों की स्थिति दयनीय हो गई है. ऊपर से लॉकडाउन ने लगभग इन्हें तोड़-सा दिया है. सरकार द्वारा शिक्षकों की हड़ताल खत्म कराने के कई प्रयास हुए हैं, लेकिन अभी तक सरकार से वार्ता नहीं हो सकी है. संघ ने भी कई पत्र लिखें, लेकिन इसके बावजूद भी सरकार और इनके बीच सुलह नहीं हो पायी है.
पिछले 22 और 23 अप्रैल को राज्य के अलग-अलग जिलों में चार (बगहा, पूर्णिया, शेखपुरा और मधुबनी से) नियोजित शिक्षकों ने दम तोड़ दिया. हड़ताल की अवधि में अभी तक 60 शिक्षकों का देहांत हो गया है. 3 माह से वेतन बंद होने के कारण कई शिक्षक तो अपनी बीमारी का इलाज तक नहीं करा पा रहे हैं. सच में देखें तो बिहार में कोरोनावायरस लॉकडाउन से मरने वालों की संख्या हड़ताली शिक्षकों की मौतों की संख्या के सामने लगभग नगण्य है.
आर्थिक तंगी का सामना करते हुए 56 हड़ताली शिक्षकों की 21 अप्रैल तक मौत हो गई. वे अपने परिवारों का प्रबंधन करने में विफल रहे और वे अपनी बीमारियों के लिए उचित उपचार की व्यवस्था करने में भी असमर्थ थे.
राज्य सरकार द्वारा लॉकडाउन को ध्यान में रखते हुए हड़ताल को स्थगित करने के लिए बातचीत की बात की जा रही है लेकिन इसके बावजूद इन शिक्षकों की उपेक्षा और अनदेखी की जा रही है. साथ ही, सरकार ने, हालांकि, उनकी मांगों को आज तक नजरअंदाज किया है.
कोरोना संक्रमण के फैलाव को रोकने हेतु लगाए गए लॉकडाउन में, लगता है सरकार नियोजित शिक्षकों से सही मायनों में द्विपक्षीय बात नहीं करना चाहती है. वहीं दूसरी तरफ, हड़ताली शिक्षकों की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है और वेतन के अभाव में उनकी मौत का सिलसिला लगातार जारी है.
बांका के एक नियोजित शिक्षक अभिनव चौधरी का कहना है कानून की अवहेलना सिर्फ बिहार में ही क्यों ? क्या बिहार के युवा, भविष्य में शिक्षक बनने का सपना देखना छोड़ दें ? क्या बिहार सरकार कानून से भी ऊपर है ? सहायक शिक्षक का पद क्यों समाप्त ? क्या बिहार में पढ़े-लिखे बेरोजगारों की मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा है ? जब TET पास करके सभी राज्य में नियमित शिक्षक के रूप में बहाली हो रही है तो बिहार में नियोजित क्यों ?
शिक्षकों को वेतन न मिलने से बढ़ते मानसिक तनाव का सामना करना पड़ रहा है, ऐसा कहना है बिहार राज्य शिक्षा संघर्ष समिति के संयोजक ब्रजनंदन शर्मा का. उन्होंने कहा कि सही इलाज के अभाव में 60 में से कुछ शिक्षकों की हार्ट अटैक, ब्रेन हैमरेज और अन्य पुरानी बीमारियों से मृत्यु हो गई है.
“हम अभी भी सरकार से प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहे हैं. परंतु यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार 60 हड़ताली शिक्षकों की मौत के बावजूद उदासीन है – सेवानिवृत्त 95 वर्षीय शिक्षक शर्मा ने कहा, जो 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जेल गए थे. उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में और शिक्षक मर सकते हैं, क्योंकि सरकार को इनके हड़ताल से कोई परेशानी नहीं होती दिख रही है.
उन्होंने कहा कि सरकार को हमें अपनी मांगों पर चर्चा के लिए बातचीत के लिए आमंत्रित करने का लिखित आश्वासन देना चाहिए. यदि सरकार यह चाहती है कि हम हड़ताल स्थगित करें और COVID-19 से लड़ने के लिए सरकार से हाथ मिलाएं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि हमारा हड़ताल खत्म हो चुका है. लगता है बिहार के शिक्षा मंत्री द्वारा महामारी से लड़ने के नाम पर मात्र अपील की गई है, वे इस बारे में सिरियस नहीं लगते.
जैसा कि मालूम है, बिहार के नियोजित शिक्षकों के ‘समान काम समान वेतन’ का मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा था, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने शिक्षकों के विरुद्ध फैसला दिया था. इसके बाद भी नियोजित शिक्षकों ने अपना हड़ताल जारी रखा है. लगभग तीन लाख नियोजित शिक्षकों ने इस साल जनवरी माह में 10 वीं और इंटर की परीक्षा के दौरान ही हड़ताल पर जाने का निर्णय किया था. आज 65 से भी ज्यादा दिन बीत जाने के बाद वे हड़ताल पर बने हुए हैं.
शिक्षा किसी भी समाज का एक अभिन्न यंग है. दुनिया में शिक्षक के पेशे को सबसे अच्छा और आदर्श माना जाता है. किसी भी देश के भविष्य और युवाओं के जीवन को सही दिशा और उसे आकार देने का काम शिक्षक करते है. शिक्षक ही बच्चों के वर्तमान और भविष्य को बनाता है. कहा जाता है कि एक शिक्षक ही अच्छे समाज का निर्माण करने जैसा महान कार्य करता है. लेकिन जहां शिक्षक ही ऐसी मुश्किलों में घिरा हो, एक अच्छे और सुसंकृत समाज का कैसे निर्माण होगा ? यह एक बड़ा प्रश्न है और सरकार को इसका समाधान जल्द से जल्द निकालना चाहिए. जहां शिक्षक खुश नहीं , वहां समाज कैसे खुश रह सकता है.