नेताजी सुभाषचंद्र बोस – मृत्यु या गुमनामी का अदभुत रहस्य
पटना (TBN रिपोर्टर) | भारत की आज़ादी की लड़ाई में अपना अहम योगदान देने वाले, “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा” और “जय हिन्द” जैसे नारों से क्रांति की ज्वाला भड़काने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु आज भी एक रहस्य बनकर रह गई है.
नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु हमेशा से बहस का मुद्दा रहा है क्यूंकि नेताजी की मृत्यु के कोई भी प्रमाण या उनकी मृत्यु से संबंधित कोई भी दस्तावेज सार्वजनिक नहीं किए गए थे. इसलिए आज भी उनके परिवारजनों का मानना है कि उनकी मृत्यु सन् 1945 को नहीं हुई थी.
अब सबसे बड़ा सवाल आता है कि क्या 1945 के बाद भी नेताजी सुभाषचंद्र बोस जीवित थे. एक दावे के अनुसार फैजाबाद जिले में रहने वाले साधु जिनको लोग भगवनजी और बाद में गुमनामी बाबा के नाम से जानते थे. गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस थे जोकि अपनी पहचान छुपाकर रह रहे थे.
इस दावे में कितनी सच्चाई थी इसका पता लगाने के लिए जब बारीकी से जांच की गई तो बहुत सारे अनजाने रहस्य सामने आए. अमेरिका के एक अनुभवी हैंडराइटिंग एक्सपर्ट कार्ल बैग्गेट जिनको दस्तावेज जांचने के लगभग 5000 मामलों का वर्षों का अनुभव था कार्ल बैग्गेट ने सुभाषचंद्र बोस और गुमनामी बाबा की हैंडराइटिंग की जांच की और जांच में पाया कि दोनों एक ही शख्स की हैंडराइटिंग है.
इसके अलावा भी गुमनामी बाबा और नेताजी सुभाषचंद्र बोस में काफी समानताएं थीं. जब गुमनामी बाबा का फैजाबाद रामभवन में प्रवास के दौरान 16 सितंबर, 1985 को निधन हुआ तो बाबा के सामान की जांच पड़ताल की तो नेताजी के जैसा गोल फ्रेम का एक चश्मा, नेताजी जेब में जो रोलेक्स घड़ी रखते थे बिलकुल उसी तरह की एक रोलेक्स घड़ी और नेता जी के परिवार के लोगों के लिखे हुए कुछ खत मिले. बांग्ला और अंग्रेजी में लिखी 8-10 साहित्यिक किताबें मिलीं. एक और बक्से से 3 घड़ियां- रोलेक्स, ओमेगा और क्रोनो मीटर के अलावा तीन सिगारदान मिले और सबसे बड़ा सबूत एक फोटो मिला जिसमें नेताजी के पिता जानकीनाथ, मां प्रभावती देवी, भाई-बहन और पोते-पोती नजर आ रहे हैं जिससे ये साबित होता है कि गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस थे.