वक्फ कानून पर ‘सुप्रीम’ सुनवाई के बीच ऐतिहासिक इमारतों पर स्वामित्व का बड़ा विवाद
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को जवाब के लिए दिए 7 दिन, कानून पर फिलहाल नहीं लगा स्टे
NDTV की ग्राउंड रिपोर्ट में खुलासा: दिल्ली से महाराष्ट्र तक 256 स्मारकों पर वक्फ बोर्ड और ASI के बीच दशकों से चल रहा है विवाद
नया संशोधित कानून लागू होने पर ASI को मिल सकता है पूरा नियंत्रण, दस्तावेज न होने पर खत्म हो जाएगा वक्फ बोर्ड का दावा
नई दिल्ली (The Bihar Now डेस्क)| देश में वक्फ कानून को लेकर सियासी हलचल और कानूनी बहस तेज होती जा रही है. सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर सुनवाई जारी है, जहां केंद्र सरकार को अपना जवाब दाखिल करने के लिए 7 दिन का समय दिया गया है. हालांकि, अदालत ने फिलहाल कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. लेकिन इस पूरे मामले का एक अहम पहलू ऐसा भी है, जिस पर अभी तक खास ध्यान नहीं दिया गया और वह है ऐतिहासिक स्मारकों पर वक्फ बोर्ड का दावा.
इनपर पर वक्फ का दावा खत्म होने की कगार पर
नए वक्फ संशोधन कानून के लागू होने के बाद यह दावा समाप्त होता नजर आ रहा है. देशभर में ऐसी करीब 256 ऐतिहासिक इमारतें हैं जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में हैं, लेकिन जिन पर वक्फ बोर्डों ने स्वामित्व जताया हुआ है. अब नए कानून के तहत इन संपत्तियों को ASI को सौंपे जाने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है.
एक मीडिया हाउस की एक ग्राउंड रिपोर्ट में इस मामले की गहराई से पड़ताल की गई. रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि इन स्मारकों पर दशकों से वक्फ बोर्ड और ASI के बीच अधिकार को लेकर खींचतान चल रही है. अब, नया संशोधित कानून इस विवाद को खत्म करने की दिशा में अहम कदम साबित हो सकता है.
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इन स्मारकों में दिल्ली का पुराना किला, मोती मस्जिद, उग्रसेन की बावली, हुमायूं का मकबरा, जयपुर की आमेर जामा मस्जिद, महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र, प्रतापगढ़ किला और वाराणसी की धरहरा मस्जिद जैसी महत्वपूर्ण इमारतें शामिल हैं.
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि अगली सुनवाई तक संशोधित कानून के तहत कोई नई नियुक्ति नहीं की जाए. साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जो संपत्तियां पहले से वक्फ के रूप में घोषित हो चुकी हैं, उन्हें रद्द नहीं किया जाएगा. कोर्ट का जोर इस बात पर था कि किसी पक्ष को कोई नुकसान न हो और यथास्थिति बनी रहे.
उग्रसेन की बावली
दिल्ली के कनॉट प्लेस के नजदीक स्थित उग्रसेन की बावली इसका एक उदाहरण है. इस स्मारक के पश्चिमी हिस्से में एक मस्जिद होने के कारण वक्फ बोर्ड ने इस पर दावा किया, जबकि इसका शेष हिस्सा ASI के अंतर्गत आता है. इसी तरह जयपुर की अकबरी मस्जिद को 1951 में संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था, लेकिन 1965 में इसे वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया गया.
नए वक्फ कानून का प्रभाव
नए कानून के तहत वक्फ बोर्डों को छह महीने के भीतर अपनी सभी संपत्तियों के दस्तावेज एक ऑनलाइन पोर्टल पर अपलोड करने होंगे. जिन संपत्तियों पर केवल मौखिक या ऐतिहासिक उपयोग के आधार पर दावा किया गया है लेकिन दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं, उन पर से वक्फ बोर्ड का अधिकार समाप्त हो जाएगा. यह प्रावधान इन 256 स्मारकों को ASI के पूर्ण नियंत्रण में लाने की दिशा में एक निर्णायक कदम माना जा रहा है.
सियासी और सामाजिक बयानबाजी
इस मुद्दे पर सियासी बयानबाजी भी तेज हो गई है. कुछ दल इसे राष्ट्रीय धरोहरों को बचाने की दिशा में जरूरी कदम बता रहे हैं, जबकि अन्य इसे धार्मिक भावनाओं से जोड़कर विरोध कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई इस पूरे मामले को और भी संवेदनशील और गंभीर बना रही है, क्योंकि इसका असर न केवल इन 256 स्मारकों तक सीमित रहेगा, बल्कि पूरे देश में ASI और वक्फ बोर्डों के बीच चल रहे स्वामित्व विवादों की दिशा को भी तय करेगा.
मीडिया हाउस की रिपोर्ट न सिर्फ इन ऐतिहासिक स्थलों की वर्तमान स्थिति को सामने लाती है, बल्कि यह भी सवाल खड़ा करती है कि नया कानून क्या स्मारकों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, या फिर यह विवाद को और बढ़ाएगा?