कुछ यूं बयां किया नियोजित शिक्षकों का दर्द
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पटना (TBN डेस्क) | टीईटी एसटीईटी उतीर्ण नियोजित शिक्षक संघ (गोपगुट), बिहार के प्रदेश प्रवक्ता अश्विनी पाण्डेय ने एक प्रेस रिलीज में नियोजित शिक्षकों की हालत कुछ यूं बयां की है किया है.
लॉकडाउन के दौरान कोई भी किसी की मदद नही कर रहा है. यहाँ तक कि कोई किसी को उधार भी नही दे रहा. ऐसी हालत में नियोजित शिक्षकों के क्या हाल की कल्पना की जा सकती है.
नियोजित शिक्षक सरकार के वैसे कर्मी हैं जो कहने को तो सरकारी हैं, लेकिन वो अपना घर भी सही से नही चला सकते. वजह, उनके पास न तो राशन कार्ड है, न ही कोई सरकारी अनुदान और न ही पर्याप्त वेतनमान. इस कारण उनकी जिंदगी खुशहाली से दूर हो गई है.

78 दिनों के हड़ताल अवधि में लगभग 74 शिक्षक आर्थिक हालात के चलते ही तनाव वेदना के शिकार होकर आकस्मिक मृत्यु को प्राप्त हो गए थे. सरकार संवेदनहीनता दिखलाते हुए इनको मरने को छोड़ चुकी थी. इनका कोई सहारा भी नही था.
अब जबकि हड़ताल समाप्त हो चुका है और राज्य सरकार ने इन शिक्षकों को पेमेंट देने की बात की है. लेकिन 18 दिन बीतने के बाद भी अधिकारियों ने इस दिशा में शायद काम करना भुला दिया है.
पाण्डेय ने लिखा है, “रमजान का महीना चल रहा है हुजूर, इतना ख्याल रखते कि इसके घर पर बच्चे होंगे, बूढ़े माँ-बाप होंगे. सबके उम्मीदों का सहारा यही होगा, किस जिलालत में आपसे वो अपने किये गए कामों का मजदूरी की जानकारी मांग रहा होगा? इस्लाम मे तो कहा गया है कि मजदूर के पसीना सूखने के पहले उसका मजदूरी दे देना चाहिए। मजदूरी की जानकारी मांगने इतनी बड़ी खता?”
पाण्डेय ने आगे कहा है कि कैसे-कैसे अधिकारियों को शिक्षा विभाग ने रखा हुआ है. इस लॉकडाउन में हड़ताल से वापस आने के बाद शिक्षक आर्थिक संकट से गुजर रहे है. जब टेलीफोन पर वेतन की सूचना मांगी जाती है तो उनपर कार्यवाई की धमकी दी जाती है. पाण्डेय ने सरकार से अपील की है कि धमकी देने वाले अधिकारी पर अविलंब विभाग कार्यवाई करें.