वायरल ट्रांसमिशन की श्रृंखला को तोड़ेगा टीकाकरण – एम्स निदेशक
पटना (TBN – The Bihar Now डेस्क)| एम्स, पटना के निदेशक डॉ पी के सिंह (Dr P K Singh, Director-AIIMS, Patna) ने बताया हैं कि कोविड टीकाकरण और कोविड अनुरूप व्यवहार ((Covid Appropriate Behaviour) का पालन करना संक्रमण की चेन ही नहीं रोकेगा बल्कि यह सरकार को टीकाकरण की वजह से पूरी आबादी पर पड़ने वाले सरकार के आर्थिक बोझ को भी कम कर सकता है.
कोविड -19 की दूसरी लहर ने बिहार को कैसे प्रभावित किया है? अभी बिहार की स्थिति कैसी है?
डॉ सिंह ने कहा कि कोविड -19 की दूसरी लहर गंभीर थी. पहली लहर के दौरान हमारे पास ज्यादातर मरीज शहरी इलाकों से आए थे, लेकिन इस बार हमारे पास ग्रामीण इलाकों के भी मरीज थे.
यह लहर दूर-दराज के गांवों में प्रवेश कर गई जो पहले प्रभावित नहीं थे. उदाहरण के लिए, पिछले साल कटिहार, या रक्सोल, पूर्णिया से शायद ही कोई मामला आया हो, जो नेपाल की सीमा पर हैं, लेकिन इस बार हमें इन्हीं जगहों से बहुत सारे मरीज मिले. हालांकि भोजपुर, भागलपुर, पटना, गया, नवादा, बेगूसराय, शेखपुरा जैसे स्थान पिछली लहर के साथ-साथ इस लहर में भी प्रभावित हुए.
लेकिन शुक्र है कि अब हमारे पास प्रतिदिन 90 से कम सकारात्मक मामले हैं. ठीक होने की दर भी सुधर कर 96.4 प्रतिशत हो गई है.
उनसे पूछा गया – क्या आपको लगता है कि लोगों के बीच कोविड-उपयुक्त व्यवहार (Covid Appropriate Behaviour) का पालन न करना इस अचानक उछाल का प्रमुख कारण था? आपको क्या लगता है कि हम समुदाय को इस बदलाव के अनुकूल बनाने में मदद कर सकते हैं?
इस सवाल के उत्तर में डॉ सिंह ने बताया कि मैं मानता हूं कि कोविड अनुरूप व्यवहार का पालन करने के मामले में लोग अधिक गंभीर नहीं हैं. दुर्भाग्य से, अधिकांश लोग, विशेषकर गांवों में, अभी भी इनकार की मुद्रा में हैं; उन्हें लगता है कि कोविड -19 कुछ भी नहीं है और वे प्रभावित नहीं होंगे. लोगों के इस व्यवहार के महत्व को समझना होगा, कोविड की अगली किसी भी लहर से हम तब ही बच सकते हैं जबकि व्यापक स्तर पर कोविड का वैक्सीन लगवाया जाए और वैक्सीन लगने के बाद भी कोविड अनुरूप व्यवहार का पालन किया जाए.
तो, क्या आप एम्स में आने वाले मरीजों को कोविड उपयुक्त व्यवहार (Covid Appropriate Behaviour) के महत्व के बारे में सलाह देते हैं?
हां, हम सीएबी पर मरीजों की काउंसलिंग करते हैं. हम उन्हें उन सावधानियों के बारे में बताते हैं जो उन्हें कोविड -19 संक्रमण के बाद लेनी चाहिए. हम उन्हें इस बारे में भी शिक्षित करते हैं कि बीमारी कैसे फैलती है और अगर वे कोविड के उपयुक्त प्रोटोकॉल का पालन नहीं करते हैं तो वे उन्हें और उनके प्रियजनों को प्रभावित कर सकते हैं.
कोविड की दूसरी लहर में इतना नुकसान देखने के बाद अब लोगों को समझ जाना चाहिए कि संक्रमण कितना गंभीर है और इससे बचने के लिए हमें हर संभव कोशिश करनी चाहिए. संक्रमण बढ़ने या घटने की संभावना के बीच हमें कोविड अनुरूप व्यवहार पर ही विश्वास करना चाहिए.
कोविड -19 की दूसरी लहर के दौरान आपके सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या थी? आपके संस्थान एम्स ने इसका कैसे सामना किया?
पिछले साल ही कोविड के मरीजों को देखते हुए हमने अपने चिकित्सक, पैरामेडिकल स्टाफ, नर्सिंग कैडर और अन्य तकनीकी स्टाफ को संक्रामक वायरस के लिए तैयार कर दिया था. संकट की विकट स्थिति से निपटने के लिए हमने अपनी तकनीकी और प्रशासनिक सुविधाओं को विकसित किया. हमने इसके लिए 80 से अधिक प्रशिक्षण शिविर के माध्यम से 200 स्टाफ को प्रशिक्षित किया. इसमें हमने स्टाफ को क्लीनिकल मैनेजमेंट, सुरक्षा और एहतियात के बारे में बताया.
आप यह भी पढ़ें – विद्यापति के नाम पर दरभंगा एयरपोर्ट का नामकरण शीघ्र
हमने अपनी कुल बेड की क्षमता को बढ़ाया, कोविड मरीजों को भर्ती करने के लिए लाने और ले जाने के लिए हमने एक्जिट या प्रवेश द्वार को दोबारा बदला, जिससे नियमित स्वास्थ्य सेवाएं बाधित न हों. हमारे पैरा मेडिकल स्टाफ को कोविड प्रबंधन की जानकारी देने के लिए हमने ऑन लाइन क्लासेस आयोजित की, हमने जांच और मरीजों की भर्ती करने की प्रक्रिया को भी सुधारा, इलाज के सभी प्रोटोकॉल फालो किए जाएं इसके लिए स्टॉफ को तैयार किया गया.
डॉ सिंह ने आगे बताया कि हमने परीक्षण और प्रवेश नीतियां, उपचार प्रोटोकॉल, डिस्चार्ज नीतियां तैयार की हैं जिन्हें हम नियमित रूप से अपडेट कर रहे हैं. हमने अस्पताल के उपभोग्य सामग्रियों के प्रबंधन के बारे में प्रशिक्षण दिया. इसके साथ ही कोविड मृतक व्यक्ति को किस तरह मैनेज करना है, इन सभी विषयों पर काम किया गया. ये सभी उपाय कर्मचारियों के मनोबल और आत्मविश्वास को बढ़ाते हैं और अस्पताल में देखभाल के मानकों को सुनिश्चित करते हैं.
देखभाल के मानकों और गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए हमने यह सुनिश्चित किया कि सभी वार्डों को हर समय इन-हाउस डॉक्टरों द्वारा कवर किया जाता रहे, वार्ड में पर्याप्त नर्सिंग स्टाफ हों और आईसीयू में रोगियों के उचित अनुपात में नर्स हों. साथ ही, स्वास्थ्य कर्मियों में थकान और थकावट से बचने के लिए, हमने अपना ड्यूटी रोस्टर इस तरह से डिजाइन किया है कि डॉक्टरों, नर्सों और सहायक कर्मचारियों को उनकी क्षमता के अनुसार समान भूमिकाएं मिलती रहें और उनके पास अपनी शिफ्ट कोविड कर्तव्यों के बीच फ्रेश होने के लिए पर्याप्त समय रहे.
हमने कोविड मरीजों को आईसोलेशन में रहने के दौरान होने वाली उस मानसिक पीड़ा का अनुमान लगाया, जिसकी संभावना थी. उसके बाद रोगियों, विशेष रूप से छोटे बच्चों के माता-पिता के लिए मनोवैज्ञानिक समर्थन सुनिश्चित किया. हमने सुनिश्चित किया कि वे ऑडियो या वीडियो कॉल के जरिए अपने परिवार से फोन पर बात कर सकें. हमने अखबार, टीवी और घर का बना खाना उपलब्ध कराकर उनके अस्पताल में ठहरने को यथासंभव प्राकृतिक बनाने की कोशिश की. पीड़ा के समय प्राकृतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए रोगियों और उनके परिवारों द्वारा इन छोटे लेकिन लक्षित कदमों की बहुत सराहना की गई.
यदि हम वायरस की महामारी विज्ञान को देखें, तो दूसरी लहर आम तौर पर पहले की तुलना में अधिक गंभीर होती है और अधिक लोगों को प्रभावित करती है. यह स्पैनिश फ्लू महामारी के दौरान भी हुआ था. लेकिन शुक्र है कि हम कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मरीजों को मैनेज कर पाए. हमें लगता है कि नैदानिक रूप से कोरोनावायरस ने दूसरी लहर के दौरान अलग तरह से व्यवहार किया. उदाहरण के लिए, इस बार रोग तेजी से बढ़ रहा था और इसलिए रोगी की स्थिति तेजी से बिगड़ रही थी. कभी-कभी केवल 1 या 2 दिनों के भीतर ही स्थिति काफी बिगड़ जा रही थी, जो पहली लहर के दौरान नहीं देखी नहीं गई थी. कोरोना की दूसरी लहर ने युवा वयस्कों को भी प्रभावित किया.
आप यह भी पढ़ें – लखनऊ में जीकेसी के “गो-ग्रीन अभियान” की शुरूआत
इस बार मरीजों के हमलोगों के पास आने में देरी भी एक बड़ी चुनौती थी क्योंकि कई मरीज घर पर तब तक इंतजार करते रहे जब तक उनकी स्थिति खराब नहीं हो गई. जो लोग गंभीर बीमारी में अस्पताल पहुंचे, उनमें से कई को हमारी तमाम कोशिशों के बावजूद नहीं बचाया जा सका.
फिर, ब्लड शुगर की उचित निगरानी के बिना स्टेरॉयड (steroids) के अविवेकपूर्ण उपयोग ने म्यूकोर्मिकोसिस (mucormycosis) जैसे दूसरे संक्रमणों के लिए मामले को बदतर बना दिया.
उनसे पूछा गया कि कोविड-19 के खिलाफ हमारी लड़ाई में वैक्सीन इतनी महत्वपूर्ण क्यों है?
इस प्रश्न के उत्तर में डॉ सिंह ने कहा कि कोविड के खिलाफ हमारी लड़ाई में वैक्सीन सबसे प्रभावी हथियार है लेकिन इसकी आपूर्ति सीमित है. इसलिए हमें इसका कुशलता से उपयोग करने की आवश्यकता है. वायरस में नए म्यूटेशन से महामारी की तीसरी लहर पैदा हो सकती है.
उन्होंने बताया कि उत्परिवर्तन (Mutations) तब होता है जब वायरस एक मरीज से दूसरे में जाता है. लेकिन प्रभावी टीकाकरण सुनिश्चित करके हम इस श्रृंखला को तोड़ सकते हैं. इससे हम न केवल मौजूदा वायरल जीनोटाइप से लोगों की रक्षा कर सकते हैं बल्कि आगे भी उत्परिवर्तन की जांच कर सकते हैं. कोरोना महामारी की और लहरों से बचने का सबसे विश्वसनीय तरीका है कि अधिक से अधिक लोगों को जल्दी से टीका लगाया जाए.
जो लोग पहले ही कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं, उनमें इसके खिलाफ एक निश्चित सीमा तक प्रतिरक्षा (immunity) विकसित कर ली है (इसको स्वाभाविक रूप से एक निश्चित सीमा तक टीकाकरण माना जा सकता है).
सेरोप्रेवलेंस अध्ययनों से, हम समझते हैं कि बड़ी संख्या में लोगों में पहले से ही कोरोना वायरस का एंटीबॉडी डिवेलप हो चुका हैं, हालांकि उनमें कभी भी कोरोना संक्रमण के लक्षण नहीं दिखें (asymptomatic infection). इसलिए हम उन लोगों को टीकाकरण में प्राथमिकता दे सकते हैं जिन्हें अभी तक कोरोना संक्रमण नहीं हुआ है.
यदि हम लोगों में एंटीबॉडी का पता लगाने के लिए तत्काल परिणामों के साथ एक लागत प्रभावी, आसान करने वाली किट-आधारित एंटीबॉडी परीक्षण विकसित कर सकते हैं, तो इसका प्रभावी ढंग से उपयोग उन लोगों के लिए टीकों को प्राथमिकता देने के लिए किया जा सकता है जिन्होंने अभी तक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया विकसित नहीं की है. सेरोप्रवलेंस अध्ययनों पर आधारित अनुमानों के अनुसार, हम 30-40 प्रतिशत से कम आबादी (जिनमें एंटीबॉडी पता नहीं होता हैं) को स्मार्ट तरीके से टीकाकरण करके 80 से 90 प्रतिशत लोगों के लिए हर्ड इम्यूनिटी (herd immunity) पा सकते हैं.