पितृ पक्ष 2021 के बारे में पूरी जानकारी

पटना (TBN – The Bihar Now डेस्क)| हिन्दु रीति के अनुसार, पितृ पक्ष में हिन्दु जन अपने पूर्वजों को भोजन अर्पण कर उन्हें श्रधांजलि देते हैं. पितृ पक्ष हर साल भाद्रपद पूर्णिमा के अगले दिन से आरम्भ होता है तथा अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक मनाए जाते हैं. यह कुल 16 दिनों तक मनाया जाता है.
इस वर्ष पितृ पक्ष सितंबर महीने में शुरू होगा जो अक्टूबर के पहले सप्ताह तक चलेगा. 20 सितंबर से शुरू होकर 6 अक्टूबर तक चलने वाले पितृ पक्ष में हिन्दु अपने पितरों को खुश करने व उनके आशीर्वाद लेने की कोशिश करेंगे.
हिन्दु धर्म में पितरों को देवतुल्य माना जाता है. कहा जाता है कि पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों का तर्पण कर लोग उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. यह भी मान्यता है कि यदि पितृपक्ष में पूर्वजों का तर्पण नहीं किया जाए, तो व्यक्ति को पितृ दोष लगता है.
पितृ पक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है. अगर किसी मृत व्यक्ति की तिथि ज्ञात न हो तो ऐसी स्थिति में अमावस्या तिथि पर श्राद्ध किया जाता है. इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है. रीति के मुताबिक, अपराह्न काल समाप्त होने तक श्राद्ध सम्बन्धी अनुष्ठान सम्पन्न कर लेने चाहिये. श्राद्ध के अन्त में तर्पण किया जाता है.
पितृ पक्ष 2021 की तिथियां
20 सितंबर को पूर्णिमा श्राद्ध या श्राद्धि पूर्णिमा या प्रोष्ठपदी पूर्णिमा मनाया जाएगा. किन्तु यह ध्यान देना आवश्यक है कि पूर्णिमा तिथि पर मृत्यु प्राप्त करने वालों के लिये महालय श्राद्ध भी अमावस्या श्राद्ध तिथि पर किया जाता है. हालाँकि, भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध पितृ पक्ष से एक दिन पहले पड़ता है, किन्तु यह पितृ पक्ष का भाग नहीं है. सामान्यतः पितृ पक्ष, भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध के अगले दिन से आरम्भ होता है.
प्रतिपदा श्राद्ध – यह 21 सितंबर को मनाया जाएगा. प्रतिपदा श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की प्रतिपदा तिथि पर हुई हो. प्रतिपदा श्राद्ध तिथि को नाना-नानी का श्राद्ध करने के लिए भी उपयुक्त माना गया है. यदि मातृ पक्ष में श्राद्ध करने के लिए कोई व्यक्ति नहीं है, तो इस तिथि पर श्राद्ध करने से नाना-नानी की आत्मायें प्रसन्न होती हैं. यदि किसी को नाना-नानी की पुण्यतिथि ज्ञात नहीं है, तो भी इस तिथि पर उनका श्राद्ध किया जा सकता है. माना जाता है कि, इस श्राद्ध को करने से घर में सुख-समृद्धि आती है. प्रतिपदा श्राद्ध को “पड़वा श्राद्ध” के नाम से भी जाना जाता है.
द्वितीया श्राद्ध – परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की द्वितीया तिथि पर हुई हो. द्वितीया श्राद्ध को दूज श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है जो इस साल 22 सितंबर को मनाया जाएगा.
तृतीया श्राद्ध – इसे “तीज श्राद्ध” के नाम से भी जाना जाता है जो इस वर्ष 23 सितंबर को मनाया जाएगा. इस दिन परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की तृतीया तिथि पर हुई हो.
चतुर्थी श्राद्ध या चौथ श्राद्ध – 24 सितंबर को मनाया जाएगा जिसमें परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की चतुर्थी तिथि पर हुई हो.
पंचमी श्राद्ध – इसे “कुँवारा पञ्चमी” के नाम से भी जाना जाता है जो इस साल 25 सितंबर को है. इस दिन परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की पंचमी तिथि पर हुई हो.
षष्ठी श्राद्ध – “छठ श्राद्ध” ने नाम से भी जाना जाने वाला यह श्राद्ध 27 सितंबर को है जिस दिन परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की षष्ठी तिथि पर हुई हो.
सप्तमी श्राद्ध – इस वर्ष 28 सितंबर को परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए श्राद्ध किया जाएगा, जिनकी मृत्यु शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की सप्तमी तिथि पर हुई हो.
अष्टमी श्राद्ध – 29 सितंबर को अष्टमी श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाएगा, जिनकी मृत्यु अष्टमी तिथि पर हुई हो. इस दिन शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की अष्टमी तिथि का श्राद्ध किया जा सकता है.
नवमी श्राद्ध – इसे “मातृनवमी”, “नौमी श्राद्ध” तथा “अविधवा श्राद्ध” के नाम से भी जाना जाता है जो इस साल 30 सितंबर को है. माता का श्राद्ध करने के लिये यह सबसे उपयुक्त दिन होता है क्योंकि इस तिथि पर श्राद्ध करने से परिवार की सभी मृतक महिला सदस्यों की आत्मा प्रसन्न होती है.
दशमी श्राद्ध – यह श्राद्ध 1 अक्तूबर को है जिस दिन परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की दशमी तिथि पर हुई हो.
एकादशी श्राद्ध – एकादशी श्राद्ध को ग्यारस श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है जो इस वर्ष 2 अक्टूबर को है.
द्वादशी श्राद्ध – या “बारस श्राद्ध” इस साल 3 अक्टूबर को है जिस दिन परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिए श्राद्ध किया जाता है, जिनकी मृत्यु शुक्ल पक्ष अथवा कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की द्वादशी तिथि पर हुई हो.
त्रयोदशी श्राद्ध – यह 4 अक्टूबर को है तथा इसे तेरस श्राद्ध भी कहते हैं. त्रयोदशी श्राद्ध तिथि मृत बच्चों के श्राद्ध के लिये सबसे उपयुक्त होता है.
चतुर्दशी श्राद्ध – यह 5 अक्टूबर को है. इसे “घट चतुर्दशी श्राद्ध”, “घायल चतुर्दशी श्राद्ध” तथा “चौदस श्राद्ध” के नाम से भी जाना जाता है. इस साल यह 5 अक्टूबर को है. यह दिन सिर्फ उनके श्राद्ध के लिए होता है जिनकी मृत्यु किन्हीं विशेष परिस्थितियों में हुई हो, जैसे किसी हथियार द्वारा मृत्यु, दुर्घटना में मृत्यु, आत्महत्या अथवा किसी अन्य द्वारा हत्या. इनके अतिरिक्त चतुर्दशी तिथि पर किसी अन्य का श्राद्ध नहीं किया जाता है. इनके अतिरिक्त चतुर्दशी पर होने वाले अन्य श्राद्ध अमावस्या तिथि पर किये जाते हैं.
अमावस्या श्राद्ध – यह 5 अक्टूबर को है. इस दिन का श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु अमावस्या तिथि, पूर्णिमा तिथि तथा चतुर्दशी तिथि को हुई हो. यदि कोई सम्पूर्ण तिथियों पर श्राद्ध करने में सक्षम न हो, तो वो मात्र अमावस्या तिथि पर श्राद्ध (सभी के लिये) कर सकता है. अमावस्या तिथि पर किया गया श्राद्ध, परिवार के सभी पूर्वजों की आत्माओं को प्रसन्न करने के लिये पर्याप्त है. जिन पूर्वजों की पुण्यतिथि ज्ञात नहीं है, उनका श्राद्ध भी अमावस्या तिथि पर किया जा सकता है. इसीलिये अमावस्या श्राद्ध को सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है.
श्राद्ध करने की विधि
चूंकि पितृ पक्ष में पितरों को तर्पण दिया जाता है इसलिए इसे किसी जानकार ब्राह्मण से ही श्राद्ध कर्म (पिंडदान, तर्पण) करवाना चाहिए. श्राद्ध का मतलब श्रद्धा है, इसलिए पूरी श्रद्धा से किए गए श्राद्ध कर्म से बहुत पुण्य तथा पितरों का आशीर्वाद मिलता है.
पितृ पक्ष में पूरी श्रद्धा से ब्राह्मणों को दान तथा गरीब, जरूरतमंदों की सहायता करना चाहिए. साथ ही गाय, कुत्ते, कौवे आदि पशु-पक्षियों के लिए भी भोजन का एक अंश जरूर डालना चाहिए. इन्हें भोजन देते समय अपने पितरों का स्मरण करते हुए मन ही मन उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करना चाहिए.
यदि संभव हो तो गंगा नदी के किनारे पर अन्यथा घर पर श्राद्ध कर्म करवाना चाहिए. श्राद्ध पूजा दोपहर के समय शुरू करनी चाहिए. जिस दिन श्राद्ध हो उस दिन ब्राह्मणों को भोज करवाना चाहिए. भोजन के बाद दान दक्षिणा देकर उन्हें संतुष्ट करन चाहिए.
(सौ: द्रिक/एबीपी)