कोरोना : सरकार AIIMS पटना में प्लाज्मा थेरेपी पर कर रही है विचार
Last Updated on 3 years by Nikhil
पटना (TBN रिपोर्ट) | जैसे जैसे दिन गुजर रहे हैं, बिहार में कोरोना वायरस (COVID-19) से संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है. इसने सरकार को परेशानी में डाल रखा है. शुक्रवार 24 अप्रैल को पूरे प्रदेश में पहली बार एक दिन में सबसे ज्यादा 53 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए.

सरकार ने कोरोना वायरस के संक्रमण से निजात हेतु मरीजों के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी को अपनाने पर विचार कर रही है. स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार ने बताया है कि बिहार में प्रयोगात्मक आधार पर पटना के एम्स में COVID-19 रोगियों के लिए प्लाज्मा थेरेपी का उपयोग करने की योजना सरकार बना रही है.

क्या है प्लाज्मा थेरेपी
शोधकर्ता और वैज्ञानिक नोवेल कोरोनावायरस (COVID-19) से लड़ने हेतु एक कारगर इलाज खोजने के लिए विभिन्न तरीकों की जांच कर रहे हैं. ऐसा ही एक संभावित उपचार है कंवलसेंट प्लाज्मा थेरेपी (Convalescent Plasma Therapy).
यह थेरेपी एक वायरस से ठीक हुए रोगी के रक्त से एंटीबॉडी निकाल कर किसी दूसरे संक्रमित मरीज में इसी एंटीबॉडी को इन्जेक्ट करके ठीक करने का एक इलाज है. इसी प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना वायरस से संक्रमित रोगियों का इलाज किया जाता है. इस प्रक्रिया का उपयोग उन लोगों के टीकाकरण के लिए किया जा सकता है, जिनमें कॉरोनोवायरस से संक्रमित होने की ज्यादा संभावना पर हैं, जैसे, COVID-19 रोगियों के परिवार के सदस्य, स्वास्थ्य सेवा पेशेवर, सफाई कर्मी, पुलिस कर्मी और क्वॉरन्टीन किए गए लोग.
इस थेरेपी में, जब एक कोरोना संक्रमित मरीज खुद से ठीक हो जाता है, तब वह अपने ब्लड को डोनेट करता है ताकि उसमें मौजूद एंटीबॉडी दूसरे कोविद -19 पाज़िटिव मरीजों के इलाज करने में मददगार साबित हो सके. प्लाज्मा डोनेशन ब्लड डोनेशन जैसा नहीं है. इसके डोनेशन से कमजोरी नहीं आती है.
जब संक्रमण से रिकवर हुआ व्यक्ति अपना ब्लड डोनेट करता है, तो दान किए गए रक्त की हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी और एचआईवी जैसी बीमारियों के लिए जाँच की जाती है. यदि इन परीक्षणों में उसका ब्लड ठीक निकलता है तो उस ब्लड को ‘प्लाज्मा निकालने की मशीन से प्लाज्मा (रक्त का वह तरल हिस्सा जिसमें एंटीबॉडी होते हैं) निकाला जाता है. उसके बाद एंटीबॉडी से भरे उस प्लाज्मा को उपचार के तहत कोरोना पाज़िटिव मरीज के शरीर में ट्रांसफर किया जाता है. इससे मरीज के खून में वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बन जाते हैं. ये एंटीबॉडी वायरस से लड़कर उन्हें मार देते हैं या कमजोर कर देते हैं. लेकिन बड़ी बात ये है कि प्लाज्मा किसी मरीज के ठीक होने के 2 हफ्ते बाद ही लिया जा सकता है.
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने प्रयोगात्मक आधार पर पटना एम्स में COVID-19 रोगियों के लिए प्लाज्मा थेरेपी का अभ्यास करने की अनुमति दी है. बिहार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार ने यह जानकारी दी.