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सभी जिलों में अब जलवायु के अनुसार होंगे कृषि कार्य – मंत्री

फाइल फ़ोटो

पटना (TBN – The Bihar Now डेस्क) |अब राज्य के हर जिले में जलवायु के अनुसार कृषि कार्य किए जाएंगे. यह बात रविवार को कृषि मंत्री डॉ प्रेम कुमार ने बताई. उन्होंने बताया कि पिछले वित्तीय वर्ष (2019-20) से 5 वर्षों के लिए 6065.50 लाख रूपये की सहायता से 8 जिलों में जलवायु के अनुकूल कृषि कार्य शुरू किया गया. इसका परिणाम काफी उत्साहजनक रहा है. इसी को देखते हुए अब राज्य के शेष सभी जिलों में इस योजना को लागू करने हेतु वित्तीय वर्ष 2019-20 से वित्तीय वर्ष 2023-24 तक 5 वर्षों के लिए कुल 23,848.86 लाख रूपये की स्वीकृति प्रदान की गई है.

मंत्री ने बताया कि कृषि विभाग ने इस योजना की शुरुआत राज्य के चार संस्थानों – बोरलॉग इंस्टीच्यूट फॉर साउथ एशिया, डॉ राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय (पूसा, समस्तीपुर), बिहार कृषि विश्वविद्यालय (सबौर, भागलपुर) तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (पूर्वी क्षेत्र, पटना) के साथ मिलकर किया जा रहा है. इस योजना के तहत किसानों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के वैज्ञानिकों के अनुभव का लाभ दिया जा रहा है.

8 जिलों में हुआ यह प्रयोग

उन्होंने कहा कि इस योजना के अंतर्गत किसानों द्वारा पूरे वर्ष के लिए फसल योजना बनाकर काम किया जाता है. ‘जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम’ के पहले फेज में राज्य के आठ जिलों – मधुबनी, खगड़िया, भागलपुर, बांका, मुंगेर, नवादा, गया तथा नालन्दा जिलों में इस योजना को शुरू किया गया, जिसके बहुत अच्छे परिणाम सामने आये हैं.

उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, मनीला एवं अंतर्राष्ट्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, पेरू के वैज्ञानिकों के साथ हुए विचार-विमर्श के आलोक में फसल अवशेष प्रबंधन, धान एवं आलू से संबंधित तकनीकी हस्तक्षेपों को इस योजना में शामिल किया गया है. इन अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की विशेषज्ञता का उपयोग जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम में करने हेतु इन कार्यान्वयन एजेन्सियों के द्वारा उक्त अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों से वैज्ञानिक एडवाईजरी एवं सहयोग प्राप्त किया जायेगा. इन संस्थानों द्वारा स्थानीय कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से इस योजना का कार्यान्वयन किया जायेगा. बोरलॉग इंस्टीच्यूट फॉर साउथ एशिया नोडल एजेन्सी के रूप में कार्य करेगी.

उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन एक विश्वव्यापी समस्या है क्योंकि इसके कारण मौसम की अनियमितता हर जगह पिछले कुछ वर्षो में स्पष्ट रूप से दिख रहा है. जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा में कमी आयी है और जिससे फसलों का उत्पादन प्रभावित हो रहा है. सबसे बड़ी बात कि इससे किसानों को आर्थिक नुकसान भी हो रहा है.

यहां एक साल में तीन फसलें ली जा रही हैं

मंत्री ने बताया कि बोरलॉग इंस्टीच्यूट फॉर साउथ एशिया (बीसा) में सालभर में अलग-अलग फसल चक्र अपनाकर एक साल में तीन फसलें ली जा रही है. यह काम इंस्टीच्यूट के 150 एकड़ के फार्म में हो रहा है. जलवायु के अनुकूल फसल तथा फसल प्रभेद के व्यवहार, लेजर लैण्ड लेवलिंग, हैप्पी सीडर, जीरो टिलेज, धान की सीधी बुवाई, रेज-बेड प्लाटिंग, संरक्षित खेती, फसल अवशेष प्रबंधन/मल्चिंग तकनीक को प्रदर्शित किया जाता है जिसे किसान देखकर सीखते हैं. इस योजना में जलवायु परिवर्तन से संबंधित अनुसंधान कार्य भी किये जायेंगे. खेत को बिना जोते गेंहूँ की बुआई जीरो टिलेज अथवा हैप्पी सीडर से करते हैं.

डॉ कुमार ने कहा कि पूरे सुबे में जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम लागू होने से न केवल जलवायु परिवर्तन के प्रति खेती को ढ़ालने, बल्कि यह किसानों की आमदनी बढ़ाने में लाभदायक सिद्ध होगा.