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भाजपा नेता की मौत की सीबीआई या एसआईटी जांच की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर

नई दिल्ली / पटना (TBN – The Bihar Now डेस्क)| बिहार सरकार की शिक्षक भर्ती नीति के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी के 13 जुलाई को पटना में हुए विरोध मार्च के दौरान जहानाबाद के एक भाजपा नेता की मौत के मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation) से जांच कराने या शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल (Special Investigating Team) के गठन की मांग को लेकर शनिवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) में एक याचिका दायर की गई है.

बता दें, जहानाबाद के एक भाजपा नेता की कथित तौर पर पुलिस लाठीचार्ज के दौरान मौत हो गई, जब वह बिहार सरकार की शिक्षक भर्ती नीति के खिलाफ अपनी पार्टी के विरोध मार्च में भाग ले रहे थे. बता दें, नई शिक्षक भर्ती नीति में शिक्षकों की भर्ती के लिए अधिवास की आवश्यकता को खत्म कर दिया गया है.

अधिवक्ता बरुण सिन्हा के माध्यम से भूपेश नारायण द्वारा दायर जनहित याचिका में 13 जुलाई को हुए अपराध की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जांच की मांग की गई, जो पटना के गांधी मैदान से शुरू हुई थी. बीजेपी के जहानाबाद जिले के महासचिव विजय कुमार सिंह की पार्टी के विरोध मार्च के दौरान मौत हो गई. सिंह विरोध स्थल से बमुश्किल 500 मीटर की दूरी पर छज्जू बाग में बेहोश पाए गए थे.

जनहित याचिका में घटना के संबंध में पटना की स्थानीय पुलिस द्वारा दर्ज की गई सभी प्राथमिकियों को अपने कब्जे में लेने के लिए जांच एजेंसी को निर्देश देने की मांग की गई. इसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, पुलिस महानिदेशक, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, पटना के जिला मजिस्ट्रेट (प्रतिवादी संख्या 1 से 6) और किसी भी अन्य अधिकारी की भूमिका की जांच करने की मांग की गई है. याचिका के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी द्वारा आयोजित शांतिपूर्ण जुलूस के दौरान घटना के असली अपराधियों को बचाने में नीतीश सरकार लगी हुई है.

बड़ी संख्या में शिक्षकों ने राज्य कैबिनेट द्वारा आवेदक शिक्षकों के लिए अधिवास खंड (domicile clause) को हटाने के फैसले का विरोध किया, जिस कारण देश भर के आवेदक बिहार में शिक्षक भर्ती के लिए आवेदन कर सकेंगे. भाजपा ने इस विरोध का समर्थन किया है और अधिवास खंड (domicile clause) को बहाल करने की मांग की है और एक कथित घोटाले में आरोप पत्र दायर होने के बाद तेजस्वी का इस्तीफा भी मांगा है.

याचिका में कहा गया है कि भारतीय नागरिकों के खिलाफ सत्ता का दुरुपयोग व्यक्तिगत मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन और सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा है. इसमें कहा गया है कि याचिका में वर्णित उत्तरदाताओं (Respondents) का यह सुनिश्चित करना कर्तव्य है कि जनता को अपराधियों, इन आपराधिक कार्यों के पैमाने और प्रभाव और मौलिक अधिकारों के उल्लंघन और ऐसी आगे की घटनाओं को रोकने के लिए किए गए उपायों के बारे में सूचित किया जाए.

याचिका में कहा गया है, “लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में व्यक्तियों की भागीदारी इसकी निष्पक्षता और अखंडता पर निर्भर करती है. यदि नागरिकों को यह विश्वास करने के लिए छोड़ दिया जाता है कि सत्ता में बैठे व्यक्तियों द्वारा अंधाधुंध अवैध निगरानी के कारण लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सफलतापूर्वक शामिल होने की संभावना शुरू से ही बर्बाद हो जाती है, राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों सहित, इसका लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और संस्थानों में सार्वजनिक भागीदारी पर एक मजबूत निवारक प्रभाव पड़ेगा.”

(इनपुट-न्यूज)