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बाबरी के विवादित ढांचे को गिराए जाने के मामले में आज आएगा फैसला

लखनऊ (TBN – The Bihar Now डेस्क) | 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में बाबरी के विवादित ढांचे को गिराए जाने के मामले में आज बुधवार को सीबीआई की स्पेशल कोर्ट (अयोध्या प्रकरण) अपना फैसला सुनाने वाली है. यह फैसला लखनऊ स्थित सीबीआई की विशेष अदालत (अयोध्या प्रकरण) में 11 बजे सुनाया जाएगा जिसे स्पेशल सीबीआई जज एसके यादव सुनाएंगे.

इस मामले के कुल 49 आरोपियों में 17 आरोपियों की मौत हो चुकी है. बाक़ी बचे सभी 32 मुख्य आरोपियों पर फ़ैसला आएगा. कोर्ट ने सभी 32 आरोपियों को फैसले कि दिन व्यक्तिगत तौर पर शामिल होने को कहा है.

हालांकि कोविड 19 की वजह से उम्रदराज़ और बीमार आरोपियों को व्यक्तिगत पेशी से छूट मिलने की संभावना है. इस मामले में मुख्य आरोपियों में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह, विनय कटियार, राम विलास वेदांती, ब्रज भूषण शरण सिंह आदि शामिल हैं. इनके अलावा महंत नृत्य गोपाल दास, चम्पत राय, साध्वी ऋतम्भरा, महंत धरमदास भी मुख्य आरोपियों में हैं.

अयोध्या पर ये कौन सा फैसला है

आपको बता दें कि अयोध्या में राम जन्मभूमि को लेकर 2 तरह के मामले दायर हुए थे. पहला मामला टाइटल सूट (सिविल कोर्ट) का था, जिसमें 67 एकड़ के विवादित परिसर के मालिकाना हक़ को लेकर 2 धर्म (हिन्दू और मुस्लिम) के लोगों में विवाद से जुड़ा था. पहला मामला सिविल कोर्ट का था जिसमें ज़मीन का मालिकाना हक़ तय होना था.

वहीं दूसरा मामला क्रिमिनल कोर्ट का है, जिसमें विवादित परिसर में मौजूद ढांचे को (जिसको मुस्लिम पक्ष मस्ज़िद कहता है) गिराने के अपराध का है. पहले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 9 नवंबर 2019 को फ़ैसला देते हुए हिंदुओं के पक्ष में फ़ैसला सुनाया और विवादित परिसर पर हिंदुओं को कब्ज़ा दे दिया गया.

जैसा कि मालूम है, इसी साल 5 अगस्त को देश के पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा मंदिर का शिलान्यास किया गया जिसके बाद उक्त ज़मीन पर मंदिर निर्माण का काम भी शुरू कर दिया है.

वहीं दूसरे मामले में 30 सितंबर यानि आज फ़ैसला आएगा और यह तय होगा कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी का विवादित ढांचा साजिशन गिराया गया था या कारसेवकों के तत्कालीन आवेश में ढांचा तोड़ा गया था.

क्या है पूरा मामला

साल 1992 में 6 दिसंबर के दिन रामजन्मभूमि परिसर में कारसेवा करने की अनुमति सुप्रीम कोर्ट से मांगी गई थी। कहा ये गया कि रामभक्त अयोध्या में सरयू का जल और एक मुट्ठी मिट्टी राम चबूतरे पर चढ़ाएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से कहा कि वो हलफ़नामा देकर यह सुनिश्चित करे कि कारसेवा के अलावा विवादित परिसर में कुछ भी ऐसा नहीं होगा जिससे माहौल ख़राब हो.

यूपी में कल्याण सिंह की तत्कालीन बीजेपी सरकार ने कोर्ट में हलफ़नामा देकर दावा किया था कि सिर्फ कारसेवक कारसेवा करके लौट जाएंगे. लेकिन लाखों की संख्या में अयोध्या में इकट्ठा हुए रामभक्तों ने बाबरी के विवादित ढांचे को ध्वस्त कर दिया. ढांचा गिराए जाने के बाद कल्याण सिंह की तत्कालीन सरकार ने घटना की ज़िम्मेदारी लेते हुए इस्तीफ़ा दे दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने विवादित परिसर में यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दे दिया. बाद में सरकार ने बाबरी का ढांचा गिराए जाने के मामले में जांच का आदेश दिया. सबसे पहले सीबी-सीआईडी ने जांच शुरू की लेकिन बाद में यह पूरा मामला सीबीआई को सौंप दिया गया. अब सीबीआई की चार्जशीट के आधार पर आरोपी बनाए गए लोगों से पूछताछ और गवाही के आधार पर कोर्ट आज फ़ैसला सुनायेगा.

इस मामले का क्या है पूरा इतिहास

बाबरी का ढांचा गिराए जाने के बाद रामजन्मभूमि के एसओ प्रियंवदा शुक्ला की तरफ से 6 दिसंबर 1992 की शाम 6.05 बजे पहला मामला दर्ज किया गया. इसके तुरंत बाद शाम 6.15 बजे रामजन्मभूमि के चौकी इंचार्ज दुर्गा प्रसाद तिवारी की तरफ से दूसरा मामला दर्ज किया गया. इसके बाद स्थानीय लोगों, पत्रकारों और प्रशासन की तरफ से कुल 49 मामले दर्ज हुए. जब मामला सीबीआई को दिया गया तब सीबीआई ने बाबरी विध्वंस को लेकर सभी मामलों को इकट्ठा कर जांच शुरू की. स्थानीय लोगों ने हंगामा, माहौल ख़राब करने की शिकायत दी तो पत्रकारों ने उनके साथ हाथापाई और कैमरा तोड़ने का मामला दर्ज कराया.

प्रशासन ने गैरकानूनी ढंग से बाबरी का ढांचा गिराए जाने को लेकर मामला दर्ज किया. सीबीआई की जांच में धार्मिक स्थल को नुकसान पहुंचाने, धर्म के आधार पर विवादित बयानबाज़ी करने, अफ़वाह फैलाने, शांति भंग करने, अवैध तरीक़े से भीड़ इकट्ठा करने, उन्मादी भाषण देने, राष्ट्रीय सद्भाव को बिगाड़ने, साक्ष्य मिटाने, आपराधिक षड्यंत्र और डकैती करने जैसे आरोपों की जांच की है. डकैती की धारा इसलिए लगाई गई है क्योंकि घटना के बाद विवादित स्थल से शिलापट्ट, मूर्ति और अन्य वस्तुओं को लेकर कारसेवकों के भागने का गम्भीर आरोप लगा था.

इस मामले की पहली चार्जशीट सीबी-सीआईडी ने 25 फरवरी 1993 को सौंपी थी. इसमें कुल 8 मुख्य लोगों को आरोपी बनाया गया था. इनमें लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतम्भरा, विष्णु हरि डालमिया, अशोक सिंघल और गिरिराज किशोर को शामिल किया गया. बाद में 5 अक्टूबर 1993 को सीबीआई ने दूसरी चार्जशीट दाख़िल की जिसमें 40 लोगों को आरोपी बनाया गया. क्राइम नम्बर 197/92 और 198/92 में मामले की सुनवाई शुरू हुई.

हालांकि जांच आगे बढ़ी तो क्राइम नंबर 197/92 में 9 नामों को जोड़ा गया और इस तरह कुल आरोपी 49 हो गए. 1993 से सीबीआई की स्पेशल कोर्ट इस मामले की सुनवाई कर रही है. अलग अलग मामलों की अलग अलग जगहों पर सुनवाई होती रही. कुछ मामलों की सुनवाई ललितपुर कोर्ट में तो कुछ की रायबरेली कोर्ट में सुनवाई हुई. बाद में सभी मामलों को मिलाकर एक कोर्ट में सुनवाई होने लगी. 2011 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर लखनऊ में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने सभी मामलों को सुनना शुरू किया.

इस मामले के मुख्य आरोपी

बाबरी के विवादित ढांचे को गिराए जाने को लेकर कुल 49 आरोपी बनाए गए हैं. इनमें वर्तमान में कुल 32 लोग ज़िंदा हैं, जिनपर आज 30 सितंबर को फैसला आना है. जिनपर फ़ैसला आने वाला है वो हैं –

1- लाल कृष्ण आडवाणी
2- मुरली मनोहर जोशी
3- कल्याण सिंह
4- उमा भारती
5- महंत नृत्य गोपाल दास
6- साध्वी ऋतम्भरा
7- चम्पत राय
8- विनय कटियार
9- राम विलास वेदांती
10- महंत धरम दास
11- पवन पांडेय
12- ब्रज भूषण शरण सिंह
13- साक्षी महाराज
14- सतीश प्रधान
15- आरएन श्रीवास्तव, तत्कालीन डीएम
16- जय भगवान गोयल
17- रामचंद्र खत्री
18- सुधीर कक्कड़
19- अमरनाथ गोयल
20- संतोष दुबे
21- प्रकाश शर्मा
22- जयभान सिंह पवैया
23- धर्मेंद्र सिंह गुर्जर
24- लल्लू सिंह, वर्तमान सांसद
25- ओम प्रकाश पांडेय
26- विनय कुमार राय
27- कमलेश त्रिपाठी
28- गांधी यादव
29- विजय बहादुर सिंह
30- नवीन शुक्ला
31- आचार्य धर्मेंद्र
32- रामजी गुप्ता

मामले के इन 17 आरोपियों का निधन हो चुका है – बाल ठाकरे, अशोक सिंघल, आचार्य गिरिराज किशोर, विष्णु हरि डालमिया, महंत अवैद्यनाथ, महंत परमहंस दास, महामंडलेश्वर जगदीश मुनि, बैकुंठ लाल शर्मा प्रेम, डॉ सतीश नागर, मोरेश्वर साल्वे (शिवसेना नेता), डीवी रे (तत्कालीन एसपी), विनोद कुमार वत्स (हरियाणा निवासी), रामनारायण दास, हरगोबिंद सिंह, लक्ष्मी नारायण दास महात्यागी, रमेश प्रताप सिंह, और विजयराजे सिंधिया.

कौन कौन सी धाराएं लगाई गईं

अयोध्या में विवादित परिसर में मौजूद बाबरी के ढांचे को गिराए जाने को लेकर आईपीसी की धारा 395, 147, 149, 253, 153ए, 153बी, 295, 505, 147, 120बी के तहत जांच शुरू हुई थी. बाद में 332, 338 और 201 को जोड़ा गया. क्राइम नम्बर 198 और 197 में लगी इन धाराओं में 395 डकैती की धारा है, जिसमें अधिकतम 5 साल तक कि सज़ा का प्रावधान है. इसके अलावा 147 के तहत भीड़ इकट्ठा करके अपराध करना, 149 के तहत अवैध तरीक़े से भीड़ इकट्ठा करना, 253 के तहत भड़काऊ भाषण देना, 153ए के तहत धार्मिक आधार पर जनमानस को उकसाना, 153बी के तहत राष्ट्रीय सद्भाव बिगाड़ने का प्रयास करना, 295ए के तहत जानबूझकर धार्मिक भावनाएं भड़काने का प्रयास करना, 505 के तहत जनमानस को उकसाना, 201 के तहत साक्ष्य मिटाना और 120बी के तहत आपराधिक षड्यंत्र करना शामिल है.

इनमें डकैती को छोड़कर अन्य सभी धाराओं में अधिकतम 3 साल तक की ही सज़ा का प्रावधान है. यानी अगर आरोपियों को डकैती के अलावा अन्य मामलों में सज़ा होती भी है तो तत्काल ज़मानत अर्ज़ी डालकर ज़मानत मिल सकती है. जितने भी बड़े चेहरे हैं, उनमें किसी पर भी डकैती का आरोप नहीं है. ऐसे में जो चर्चित बड़े नाम हैं, अगर उन्हें दोषी माना भी जाता है तो भी फ़ैसले के तुरंत बाद कोर्ट से जमानत मिल जाएगी और वो 3 महीने के भीतर ऊपर की अदालत में फ़ैसले को चुनौती दे सकते हैं.

ख़ास बात ये है कि पूरी जांच में आरोपियों के ख़िलाफ़ प्रत्यक्ष तौर पर कोई सबूत नहीं मिला है. सूत्रों के मुताबिक़ फैसले के दिन लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, महंत नृत्य गोपाल दास और सतीश प्रधान को छोड़ अन्य सभी आरोपी कोर्ट में पेश होंगे. ये 5 आरोपी उम्र और बीमारी की वजह से कोर्ट आने में असमर्थता ज़ाहिर कर रहे हैं. ऐसे में कुल 32 में से 27 आरोपी फैसले के दिन कोर्ट में मौजूद रहे सकते हैं.

एक ख़ास बात यह भी है कि इस मामले की सुनवाई करने वाले सीबीआई कोर्ट के जज सुरेंद्र कुमार यादव 30 अप्रैल को सेवानिवृत्त हो चुके थे. लेकिन 2011 से इस मामले की सुनवाई करने की वजह से सरकार ने उन्हें एक्सटेंशन दे दिया था. ये एन्स्टेंशन आज 30 सितंबर तक के लिए है. ऐसे में फ़ैसला सुनाने के बाद जज सुरेंद्र कुमार यादव का कार्यकाल पूरा हो जाएगा.

इस मामले में बचाव पक्ष की तरफ से कोर्ट में पेश होने वाले अधिवक्ता आईबी सिंह और मनीष त्रिपाठी ने दावा किया कि अबतक हुई सुनवाई में किसी भी आरोपी के ख़िलाफ़ प्रत्यक्ष तौर पर साजिश करने के कोई सबूत नहीं मिले हैं. आईबी सिंह का कहना है कि बताया कि डकैती की धारा को छोड़कर अन्य सभी धाराओं में 3 साल तक की ही सज़ा का प्रावधान है, ऐसे में अगर उनके क्लाइंट को दोषी मान भी लिया जाता है तो भी तत्काल ज़मानत मिल सकती है.

मनीष त्रिपाठी ने भी यही दुहराया कि किसी के ख़िलाफ़ कोई ठोस सबूत सीबीआई को नहीं मिला है. उन्होंने बताया कि कोर्ट ने सभी आरोपियों को व्यक्तिगत तौर पर फ़ैसले के दिन कोर्ट में रहने को कहा है. हालांकि कोविड प्रोटोकॉल की वजह से कुछ उमदराज़ और बीमार आरोपी सम्भव है वर्चुयल मीडियम से कोर्ट में पेश हों.