बिहार सरकार से सुप्रीम कोर्ट ने पूछा सवाल – ‘ह’त्या के कितने दोषी आनंद मोहन के साथ हुए रिहा’
नई दिल्ली / पटना (TBN – The Bihar Now डेस्क)| सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) ने शुक्रवार को बिहार सरकार (Bihar Government) से पूछा कि आनंद मोहन (Anand Mohan) की तरह हत्या के आरोपों का सामना कर रहे कितने दोषियों को छूट पर रिहा (released on remission) किया गया, जो छूट पर जेल से बाहर आए. आनंद मोहन की समय से पहले रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति सूर्यकांत (Justice Suryakant) और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता (Justice Dipankar Dutta) की पीठ ने बिहार सरकार से यह सवाल पूछा.
बिहार सरकार ने पीठ को सूचित किया कि वर्ष 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या (murder of the then District Magistrate of Gopalganj G Krishnaiah) के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे आनंद मोहन सहित कुल 97 दोषियों को एक ही समय में वक्त से पहले रिहा कर दिया गया था.
अगली सुनवाई 26 सितंबर को
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने मोहन को दी गई छूट को चुनौती देने वाली याचिका पर अंतिम सुनवाई 26 सितंबर तक के लिए टाल दी. यह याचिका मारे गए आईएएस अधिकारी की पत्नी ने दाखिल की है. शीर्ष अदालत ने बिहार सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार को एक अतिरिक्त हलफनामा दायर करने की अनुमति दी, जिसमें रिहा किए गए उन दोषियों का विवरण देने के लिए कहा गया है, जिन्हें एक लोक सेवक की हत्या का दोषी ठहराया गया था.
मूल रिकॉर्ड की मांग
वहीं, मारे गए अधिकारी की पत्नी उमा कृष्णैया की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा (Senior Advocate Siddharth Luthra) ने अनुरोध किया कि राज्य से आनंद मोहन को दी गई छूट के मूल रिकॉर्ड उन्हें देने के लिए कहा जाए, ताकि वे अपनी प्रतिक्रिया तैयार कर सकें.
लेकिन बिहार सरकार के वकील रंजीत कुमार (Bihar government’s advocate Ranjit Kumar) ने लूथरा के इस अनुरोध पर आपत्ति जताई और कहा कि यदि लूथरा की मुवक्किल छूट दिए जाने से संबंधित मूल रिकॉर्ड चाहती हैं, तो वह सूचना के अधिकार (RTI) कानून के तहत आवेदन दाखिल कर सकती हैं. रंजीत कुमार ने कहा कि बिना किसी गड़बड़ी के आनंद मोहन समेत कुल 97 कैदियों को रिहा किया गया था.
इस प्रर न्यायमूर्ति दत्ता ने पूछा कि क्या उन सभी 97 लोगों को, जिन्हें छूट दी गई थी, एक लोक सेवक की हत्या का दोषी ठहराया गया था और यदि नहीं, तो कितने लोग इस अपराध के दोषी थे. कुमार ने कहा कि उनके पास ऐसा कोई डेटा नहीं है और उन सभी दोषियों के विवरण पर और निर्देशन की आवश्यकता है, जिन्हें छूट दी गई और समय से पहले रिहा कर दिया गया.
शीर्ष न्यायालय की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता का मामला यह है कि आनंद मोहन को लाभ पहुंचाने के लिए छूट नीति में बदलाव किया गया था. न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा कि आप (रंजीत कुमार) उन लोगों का ब्योरा प्रदान करें, जिन्हें लोक सेवक की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था और उन्हें सजा में छूट दी गई.
सिद्धार्थ लूथरा ने कोर्ट में दलील दी कि राज्य सरकार ने नीति को पूर्वव्यापी रूप से बदल दिया और मोहन को रिहा कर दिया. राज्य सरकार द्वारा बिहार जेल नियमों में संशोधन के बाद 14 साल की सजा काट चुके मोहन को 24 अप्रैल को सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया था. निचली अदालत ने आनंद मोहन को पांच अक्टूबर 2007 को मौत की सजा सुनाई थी, जिसे पटना उच्च न्यायालय ने 10 दिसंबर 2008 को सश्रम आजीवन कारावास में बदल दिया था. इस फैसले पर उच्चतम न्यायालय ने भी 10 जुलाई 2012 को मुहर लगा दी थी.
(इनपुट- न्यूज)