SC द्वारा पटना हाईकोर्ट को मुंगेर हत्या मामले की जल्द सुनवाई का आदेश
नई दिल्ली / पटना (TBN – The Bihar Now डेस्क)| पिछले साल बिहार के मुंगेर में 18 वर्षीय अनुराग पोद्दार की निर्मम हत्या के मामले में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में पटना हाईकोर्ट से अनुरोध किया है कि आपराधिक रिट याचिका (Cr Writ Petition) की जल्द से जल्द, अधिमानतः दो महीने के भीतर सुनवाई की जाए.
शीर्ष अदालत के न्यायमूर्ति मोहन एम शांतनगौदर और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की अगुवाई वाली दो-न्यायाधीशों की बेंच, अनुराग पोद्दार की मां, उनके वकील अलख आलोक श्रीवास्तव के माध्यम से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
इससे पहले, पटना हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई का जल्द मौका मिलने की उम्मीद की कोई किरण नहीं देख अनुराग की मां ने अपने मृतक बेटे के लिए तत्काल सुनवाई और न्याय की मांग के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा, “रिट वापस लेने की याचिकाकर्ता की मांग पर रिट याचिका को डिसमिस किया जाता है.” अनुराग की मां ने आपराधिक रिट याचिका (Criminal Writ Petition) दायर की थी और सुप्रीम कोर्ट में मामले में तत्काल सुनवाई की मांग की थी.
वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने कहा कि पिछले साल 26 अक्टूबर को मुंगेर में देवी दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान पुलिस गोलीबारी में अनुराग की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी. दो महीने से अधिक होने के बावजूद, इस संबंध में दायर की गई प्राथमिकी में एक भी गिरफ्तारी नहीं की गई और न ही एक भी व्यक्ति को नामजद किया गया.
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दिसंबर 2020 के अंतिम सप्ताह में, अनुराग के पिता ने पटना उच्च न्यायालय में एक आपराधिक रिट याचिका दायर (Criminal Writ Petition) की थी, जिसमें नृशंस हत्या की सीबीआई जांच की मांग की गई थी. उसके बाद उनके वकील ने पटना HC के समक्ष तत्काल लिस्टिंग के लिए दो बार इसका उल्लेख (Mention) किया. लेकिन उनके तत्काल सुनवाई के अनुरोध को पटना उच्च न्यायालय ने यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि यह अर्जेन्ट नहीं है.
मामले की निकट भविष्य में पटना उच्च न्यायालय में सुनवाई हेतु सूचीबद्ध नहीं होने की संभावना से अनुराग की माँ ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की और मामले में तत्काल सुनवाई की मांग की.
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि चश्मदीद गवाहों के अनुसार, उसके निर्दोष और निहत्थे बेटे को बिहार पुलिस कर्मियों द्वारा पिछले साल 26 अक्टूबर को बिना किसी उकसावे या चेतावनी के पुलिस की गोलीबारी में बेरहमी से मार दिया गया था.
वकील श्रीवास्तव ने पीड़ित की मां के लिए कहा कि इससे यह स्पष्ट है कि बिहार पुलिस द्वारा की जा रही जांच केवल एक शर्मनाक जांच है और इसमें याचिकाकर्ता को न्याय देने की संभावना नहीं है.
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“चूंकि आरोप प्रत्यक्ष रूप से स्थानीय पुलिस कर्मियों के खिलाफ हैं, इसलिए सीबीआई जैसे स्वतंत्र एजेंसी को उक्त जांच सौंपना न्याय के हित में है, ताकि मृतक के परिजनों सहित सभी संबंधित आश्वस्त होकर यह महसूस कर सकें कि एक स्वतंत्र एजेंसी इस मामले को देख रही है और उसके द्वारा की गई जांच में अंतिम परिणाम पर विश्वास किया जा सकेगा.” वकील ने कहा.
याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि यदि सीबीआई की जांच, जैसा कि याचिका में प्रार्थना की गई है, का आदेश नहीं दिया जाता है, तो आरोपी पुलिस कर्मियों द्वारा सबूतों को नष्ट किया जा सकता है, जिससे इस मामले में अंततः न्याय मिलना मुश्किल हो जाएगा.
याचिका में कहा गया है कि बिहार पुलिस ने याचिकाकर्ता के बेटे और माँ दुर्गा के निर्दोष और निहत्थे भक्तों पर क्रूरतापूर्ण फायरिंग की है. यह धर्म की स्वतंत्रता के अपने संवैधानिक अधिकार (Right to Freedom of Religion) का पूरी तरह से उल्लंघन है.
याचिका में कहा गया है कि इस तरह के घातक हमले का सहारा लेने से पहले, याचिकाकर्ता के बेटे या अन्य भक्तों को मुंगेर पुलिस द्वारा कोई चेतावनी नहीं दी गई थी. याचिका में दावा किया गया कि अगर मौके पर अव्यवस्था या गड़बड़ी थी, तो पुलिस द्वारा बल का कम से कम इस्तेमाल किया जा सकता था.
वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने बताया कि सीबीआई जांच की मांग करने वाले पटना हाईकोर्ट के समक्ष लंबित अपनी मूल याचिका पर शीघ्र सुनवाई हेतु आदेश के लिए हम बहुत खुश हैं और SC के बहुत शुक्रगुजार हैं.