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राजीव नगर मामले में पटना हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, कोर्ट ने मांगे सरकार से ये डिटेल्स

पटना (TBN – The Bihar Now डेस्क)| राजधानी पटना के राजीवनगर (Rajiv Nagar, Patna) थानांतर्गत नेपालीनगर (Nepali Nagar) अवैध निर्माण मामले में बुधवार दोपहर पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने जिला प्रशासन की कार्रवाई पर रोक को अगले आदेश तक बरकरार रखा है. साथ ही राज्य सरकार से पिछले 25 सालों के दौरान राजीवनगर थाना में पदस्थापित रहे थानाध्यक्षों तथा बिहार राज्य हाउसिंग बोर्ड (Bihar State Housing Board) के चेयरमैन पद पर पदस्थापित अधिकारियों नाम मांगे हैं.

आवास बोर्ड की जमीन पर अवैध कब्जे को लेकर चल रही जिला प्रशासन की कार्रवाई पर पटना हाईकोर्ट में बुधवार दोपहर सुनवाई हुई. जस्टिस संदीप कुमार (Justice Sandeep Kumar) की खंडपीठ ने बिहार के महाधिवक्ता ललित किशोर से पिछले 25 सालों के दौरान राजीवनगर थाना में पदस्थापित रहे थानाध्यक्षों तथा बिहार हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन पद पर पदस्थापित लोगों के नाम मांगे हैं. कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 14 जुलाई गुरुवार को करेगी.

साथ ही, कोर्ट ने यह कहा है कि जिन घरों को तोड़ा गया है, वहां कोई नया निर्माण नहीं होगा. लेकिन, जिन लोगों के बिजली और पानी का कनेक्शन काटा गया है, उसे बहाल करने का आदेश दिया है.

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा कि जब वहां जमीन बेची जा रही थी और मकान बनाए जा रहे थे, तब क्या कार्रवाई की गयी. कोर्ट ने सरकार से इसका जवाब देने का निर्देश दिया है.

कोर्ट ने फिर पूछा कि आखिर रविवार को ही अतिक्रमण हटाए जाने की कार्रवाई क्यों की गयी. संडे का दिन ही क्यों चुना गया. साथ ही, घर खाली कराने से पहले लोगों को समय क्यों नहीं दिया गया. कोर्ट ने कहा कि आवास बोर्ड के मैनेजिंग डायरेक्टर के नाक के नीचे यह सब होता रहा लेकिन उन्होंने कोई एक्शन नहीं लिया. जिस समय कंस्ट्रक्शन हो रहा था तब क्यों नहीं रोका गया.

याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता वकील शेखर सिंह के अनुसार लापरवाही बरतने वाले अफसरों और पुलिस वाले के खिलाफ आगे चलकर कोर्ट एक्शन भी ले सकती है.

बता दें, गत रविवार 3 जुलाई को राज्य सरकार ने अवैध निर्माण के नाम पर इलाके के मकानों को बुलडोजर से तोड़ डाला था. इसके विरोध में पीड़ित लोगों ने पटना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. कोर्ट ने 4 जुलाई को आवास बोर्ड की 40 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जे को लेकर चल रही जिला प्रशासन की कार्रवाई पर पटना हाईकोर्ट ने अगले दो दिनों के लिए रोक लगा दिया था.

पिछली सुनवाई में क्या हुआ था

इससे पहले 4 जुलाई सोमवार को याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया था कि बिना बताए उनके मकानों को ध्वस्त करने का आदेश दिया गया. प्रशासन की ओर एक सामान्य नोटिस देने के बाद एक आदेश पारित किया गया जिसमें विवादित मकानों को गिराने के आदेश थे. जबकि प्रशासन को हरेक मकान मालिक को व्यक्तिगत नोटिस देना चाहिए था.

याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया था कि प्रशासन के द्वारा दीघा के प्रावधान अधिग्रहित भूमि बंदोबस्त अधिनियम, 2010 (Digha Acquired Land Settlement Act, 2010) का पालन नहीं किया गया है.

अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया था कि मकानों को ध्वस्त करने की कार्यवाही भूमि के मालिक यानी बिहार राज्य आवास बोर्ड द्वारा न करके अंचल अधिकारी द्वारा की गई. अंचल अधिकारी द्वारा यह कार्यवाही सार्वजनिक भूमि अतिक्रमण कानून (Public Land Encroachment Act) के अंतर्गत की गई है. वैसे तो अंचल अधिकारी के इस आदेश के खिलाफ कलेक्टर के समक्ष अपील की जा सकती थी, लेकिन कलेक्टर इस कार्यवाई की निगरानी खुद कर रहे थे, इसलिए मामले को पटना हाईकोर्ट के समक्ष लाया गया.

अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया था कि याचिकाकर्ताओं के अनुसार बिना बताए व याचिकाकर्ताओं को अपील दायर करने का मौका दिए बिना तोड़फोड़ की जा रही है.

कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता की बातें सुनकर कहा कि मामले में सुनवाई के समय पटना जिलाधिकारी एवं बिहार राज्य आवास बोर्ड के प्रबंध निदेशक की उपस्थिति चाहिए. कोर्ट ने इन दोनों अफसरों का शाम 4:40 बजे तक इंतजार किया. लेकिन उनदोनों के कोर्ट में न पहुँच पाने के कारण सुनवाई शुरू की. सारे तर्कों को सुनने के बाद जिला प्रशासन की कार्रवाई पर पटना हाईकोर्ट ने अगले दो दिनों के लिए रोक लगा दिया. मामले की सुनवाई के लिए आज यानि बुधवार 6 जुलाई की तारीख फिक्स किया था.