प्रकृति की एक बड़ी खुशखबरी, लॉकडाउन ने किया ये कमाल
पटना (TBN रिपोर्ट) | विश्वभर में लॉकडाउन ने पूरे इंसान नामक प्राणी को परेशान कर रखा है. लेकिन आप यह भी जानते होंगे कि इसी लॉकडाउन ने जीव-जंतु, पेड़-पौधे और प्रकृति, सबको असीम राहत दी है. इसका सबूत हम सब महसूस कर भी रहे हैं.
इस राहत भरी खबर में सबसे बड़ी खुशखबरी नॉर्थ पोल के ऊपर स्थित ओजोन लेयर के बारे में आ रही हैं. इस साल अप्रैल माह की शुरुआत में वैज्ञानिकों को उत्तरी ध्रुव यानी नॉर्थ पोल के ऊपर स्थित ओजोन लेयर में एक 10 लाख वर्ग किमी का छेद दिखा था. जानकारों के मुताबिक, यह इतिहास का सबसे बड़ा छेद था जो पृथ्वी पर फैले प्रदूषण से हो गया था. लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण पूरे विश्व में हुए लॉकडाउन ने इस छेद को भर दिया है. ये एक बहुत बड़ी खुशखबरी है.
जैसा कि हम जानते हैं, धरती के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के ऊपर ओजोन लेयर है. इससे पहले भी लॉकडाउन ने दक्षिणी ध्रुव के ओजोन लेयर के छेद को कम किया था. अप्रैल महीने की शुरुआत में उत्तरी ध्रुव के ओजोन लेयर पर एक बड़ा छेद देखा गया था. वैज्ञानिकों का दावा था कि यह अब तक के इतिहास का सबसे बड़ा छेद है जो 10 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला था.
नॉर्थ पोल यानि उत्तरी ध्रुव, धरती का आर्कटिक वाला क्षेत्र है. इस क्षेत्र के ऊपर एक ताकतवर पोलर वर्टेक्स बना हुआ था जो अब खत्म हो गया है. नॉर्थ पोल के ऊपर बहुत ऊंचाई पर स्थित स्ट्रेटोस्फेयर पर बन रहे बादलों की वजह से ओजोन लेयर पतली हो रही थी.
क्यों हुआ था ओज़ोन लेयर में छेद
ओजोन लेयर के छेद के पीछे मुख्यतः तीन सबसे बड़े कारण थे – बादल, क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स और हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन्स. इन तीनों की मात्रा स्ट्रेटोस्फेयर में बढ़ गई थी. इनकी वजह से स्ट्रेटोस्फेयर में जब सूरज की अल्ट्रवायलेट किरणें टकराती हैं तो उनसे क्लोरीन और ब्रोमीन के एटम निकल रहे थे. यही एटम ओजोन लेयर को पतला कर रहे थे. जिसके उसका छेद बड़ा होता जा रहा था. वैज्ञानिकों के मुताबिक, यदि लॉकडाउन नहीं हुआ होता तो यह छेद औऱ बढ़ जाता. लेकिन लॉकडाउन के कारण ऐसा नहीं हुआ.
नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार ऐसी स्थिति आमतौर पर दक्षिणी ध्रुव यानी साउथ पोल यानी अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन लेयर में देखने को मिलता है. लेकिन इस बार उत्तरी ध्रुव के ऊपर ओजोन लेयर में ऐसा देखने को मिल रहा है.
बताते चलें कि स्ट्रेटोस्फेयर की परत धरती के ऊपर 10 से लेकर 50 किलोमीटर तक होती है. इसी के बीच में रहती है ओजोन लेयर जो धरती पर मौजूद जीवन को सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाती है.