जातीय जनगणना पर नीतीश सरकार को लगा सर्वोच्च झटका
नई दिल्ली / पटना (TBN – The Bihar Now डेस्क)| नीतीश सरकार को जातीय जनगणना पर सबसे बड़ा झटका लगा है. देश के सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण पर पटना उच्च न्यायालय (Patna High Court) द्वारा निर्देशित अंतरिम रोक को तुरंत हटाने से इनकार (SC refuses to intervene against HC stay on Bihar caste-based survey) कर दिया है.
जस्टिस अभय एस ओका (Justice Abhay S. Oka) और राजेश बिंदल (Justice Rajesh Bindal) की खंडपीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने 3 जुलाई को मुख्य मामले की सुनवाई निर्धारित की है और शीर्ष अदालत को इस बिंदु पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.
अदालत ने अंतरिम रोक के खिलाफ बिहार सरकार की अपील को 14 जुलाई को सूचीबद्ध किया. खंडपीठ ने कहा कि अगर उच्च न्यायालय इस मामले पर 3 जुलाई को सुनवाई नहीं करता है तो वह अंतरिम राहत की याचिका पर विचार करेगी.
न्यायमूर्ति ओका ने बिहार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान को संबोधित करते हुए कहा, ‘अगर उच्च न्यायालय मामले की सुनवाई नहीं करता है, तो हम इसे अंतरिम राहत के बिंदु पर सुनेंगे.’
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खंडपीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने अभ्यास के बारे में प्रथम दृष्टया कुछ टिप्पणियां की हैं और यह निर्धारित करने के लिए निर्धारित किया गया था कि यह ‘जनगणना’ थी या केवल ‘सर्वेक्षण’ थी.
बिहार सरकार के अधिवक्ता श्याम दीवान ने जातीय सर्वेक्षण की सत्यनिष्ठा की पुष्टि करते हुए कहा कि स्थगन आदेश से सरकारी खजाने को अपूरणीय क्षति हुई है. उन्होंने अदालत से इस हद तक हस्तक्षेप करने का आग्रह किया कि राज्य इस कवायद को पूरा कर सके.
दीवान ने तर्क दिया कि राज्य में पहले ही इस सर्वेक्षण कार्य का 80% से अधिक पूरा हो चुका है. कुछ जिलों में 10 फीसदी से भी कम काम बाकी है. पूरी मशीनरी जमीनी स्तर पर है. उन्होंने कहा कि तीन लाख से अधिक शिक्षक और सरकारी कर्मचारी सर्वेक्षण में लगे थे.
राज्य की ओर से दीवान ने कहा कि इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए केवल 10 दिनों की आवश्यकता है. उन्होंने यह भी कहा कि सर्वेक्षण 100% जनगणना की तरह नहीं बल्कि लोगों के लिए स्वैच्छिक था. उन्होंने यह भी साफ किया कि किसी भी डेटा को साझा करने का कोई सवाल ही नहीं है. वकील ने दावा किया कि राज्य को आंकड़े एकत्र करने के लिए विधायी शक्ति प्राप्त है.
राज्य सरकार ने तर्क दिया कि उसे समवर्ती सूची के तहत और संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 द्वारा बिहार में पिछड़े वर्गों के लिए कल्याणकारी उपाय शुरू करने के लिए मात्रात्मक जाति-आधारित डेटा एकत्र करने का अधिकार दिया गया था.
बता दें, ‘यूथ फॉर इक्वैलिटी’ (Youth for Equality) और अन्य द्वारा दायर रिट याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने 4 मई को बिहार सरकार को जाति आधारित सर्वेक्षण को तुरंत रोकने का निर्देश दिया था. हाईकोर्ट ने अपने 4 मई के आदेश में प्रथम दृष्टया पाया था कि राज्य सरकार के पास ऐसी गणना करने की कोई शक्ति नहीं है. कोर्ट ने कहा था, “जाति आधारित सर्वेक्षण एक सर्वेक्षण की आड़ में एक जनगणना है, जिसे करने की शक्ति विशेष रूप से केंद्रीय संसद में है. साथ ही, इससे राजनीतिक दलों को सर्वेक्षण के आंकड़ों के प्रस्तावित प्रसार से नागरिकों के निजता के मौलिक अधिकार पर असर पड़ेगा”. कोर्ट ने सरकार को यह भी सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि पहले से एकत्र किए गए डेटा सुरक्षित हैं और अंतिम आदेश तक किसी के साथ साझा नहीं किए गए हैं.
बताते चलें, बिहार में जाति सर्वेक्षण का पहला दौर 7 से 21 जनवरी के बीच आयोजित किया गया था. दूसरा दौर 15 अप्रैल को शुरू हुआ था और 15 मई तक जारी रहने वाला था.