पीढ़ियों को प्रभावित करते हैं नेतृत्वकर्ता के निर्णय – जीयर स्वामी

बडहरा / भोजपुर (अश्विनी कुमार पिंटू – The Bihar Now रिपोर्ट)| बड़े लोगों की भूल परिवार, समाज एवं राष्ट्र को क्षति पहुँचाता है. परिवार व समाज के अभिभावक तथा राष्ट्र के नेतृत्वकर्ता को कोई भी निर्णय सूझ-बूझ और बुद्धि-विवेक से लेना चाहिए. निर्णय के पूर्व, भावी परिणामों पर विचार अवश्य करना चाहिए, अन्यथा कालांतर में स्वयं एवं पीढ़ियों को आपत्ति-विपत्ति का सामना करना पड़ता है. ये बातें श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने चंदवा चातुर्मास्य ज्ञान यज्ञ के दरम्यान प्रवचन करते हुए कहीं.
जीयर स्वामी ने कहा कि कार्य के परिणाम से कार्य का स्वरूप निर्धारित होता है. ठग तो मीठी-मीठी बातें करते हैं. वे आपके ऊपर कुछ खर्च कर देते हैं लेकिन अन्ततः उनके कार्यों का रिजल्ट बुरा ही होता है. दुर्जनों की पहचान उनके कुकृत्यों के परिणाम से करनी चाहिए.
जीयर स्वामी ने आगे कहा कि परिवार कुछ लोगों का एक छोटा समूह होता है, जिसके अभिभावक का निर्णय व दिशा-निर्देश उस परिवार के अर्थ और प्रतिष्ठा को प्रभावित करता है. ठीक यही बात देश के नेतृत्वकर्ता पर भी लागू होती है. राजा परीक्षित द्वारा की गयी भूल अक्षम्य था. इसलिये विवेकी पुरूष को निर्णय के वक्त उसका तत्कालिक क्रिया और भावी परिणाम पर अवश्य विचार करनी चाहिए.
स्वामी ने युधिष्ठर का जुआ खेलने तथा द्रौपदी द्वारा दुर्योधन का मजाक उड़ाने सहित कई घटनाओं का उदाहरण दिया. जीयर स्वामी ने कहा कि शास्त्र की मर्यादा है कि स्वप्न का प्रभाव होता है. स्वप्न में मल-मूत्र, वमन, सोना दिखे तो एक साल के अन्दर अनिष्ठ समझे. सोने के रंग का वृक्ष देखना, वानर, भालू या गदहा पर बैठकर दक्षिण दिशा की ओर गीत गाते यात्रा करना, सिर से पैर तक अपने को कीचड़ में डुबा देखना आदि अशुभ माना जाता है.
इसी तरह यदि रोग मुक्त आँख से रात में ध्रुवतारा नजर नहीं आये तो व्यक्ति एक वर्ष के अन्दर खुद की या किसी निकटतम व्यक्ति की मृत्यु निश्चित जाने. भोजन और जल ग्रहण के बाद पुनः भूख और प्यास महसूस करना, दांत कटकटाना, मुख लाल एवं नाभि ठंडा होना, गिद्ध, उल्लू या कौआ का बार-बार सर से टकराना अशुभ के संकेत माने गये हैं.
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स्वामी जी ने कहा कि राजा परीक्षित ने अपने साथ बार-बार हुए अपशकुन के संकेत पर ध्यान नहीं दिया था. राजा परीक्षित ने राज्य में भ्रमण करने के दौरान एक काले-कलूटे विकराल वेशधारी आदमी को देखा, जो गाय को डंडे से पीट रहा था और बैल को पैरों से मार रहा था. राजा ने डांटते हुए उसपर वाण चलाने को तैयार हो गये. तब उस आदमी ने अपनी पगड़ी राजा के चरणों में रखते हुए कलियुग के रूप में अपना परिचय दिया. उसने अपने लिए शरण माँगी. राजा परीक्षित ने उसे पाँच जगह शराब, वेश्यावृत्ति, जुआ, हिंसा और स्वर्ण में स्थान दिया. स्वर्ण में कृष्ण का वास है. इसलिए अनीति और अन्याय से अर्जित स्वर्ण में कलियुग को स्थान मिला.