यहां बंदियों के लिए बनाए जा रहे कुर्ता-पैजामा की बिहार के जेलों में बढ़ी मांग
मुजफ्फरपुर (The Bihar Now डेस्क)| शहीद खुदीराम बोस सेंट्रल जेल (Khudiram Bose Central Jail) में कैदियों के लिए तैयार किए जा रहे कुर्ता-पैजामा की बिहार की कई जेलों में काफी मांग है. इस जेल के अधीन आने वाले सभी मंडल और उप-जेलों में बंदियों के लिए कुर्ता, पैजामा, जांघिया, गमछा, चादर, हाजती कुर्ता-पैजामा, टोपी और गंजी की आपूर्ति की जाती है.
पहले, सेंट्रल जेल के हस्तकरघा उद्योग में केवल एक शिफ्ट में काम होता था, लेकिन बढ़ती मांग को देखते हुए अब दो शिफ्ट में काम किया जा रहा है. वर्तमान में 100 से 110 बंदी हर दिन 300 मीटर कपड़ा तैयार कर 60-70 कुर्ता-पैजामा बनाते हैं. कपड़े की पूरी प्रक्रिया—सूत से धागा बनाने, कटिंग, सिलाई और फिनिशिंग तक—बंदियों के बीच विभाजित की गई है.
स्टॉक में मौजूद कपड़े
सेंट्रल जेल में 440 कैदी कुर्ता-पैजामा, 433 जांघिया, 260 गमछे, 90 चादर, 925 हाजती कुर्ता-पैजामा, 110 हाजती जांघिया, 148 हाजती गंजी, 310 हाजती गमछा और 570 हाजती चादर का स्टॉक मौजूद है. इनकी आपूर्ति मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल और अन्य जेलों में भी की जाती है.
हस्तकरघा उद्योग का विस्तार
सेंट्रल जेल के अधीक्षक बृजेश सिंह मेहता ने बताया कि जेल में बंद सजायाफ्ता और विचाराधीन कैदियों के लिए उनके दैनिक जरूरतों के सभी वस्त्र तैयार किए जाते हैं. उनकी मांग के अनुसार सामान की आपूर्ति की जाती है.
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जेल में फर्नीचर उद्योग भी सक्रिय
साल 2024 में जज और अधीक्षक की कुर्सी की सबसे ज्यादा मांग आई. इस फर्नीचर निर्माण कार्य का नेतृत्व सजायाफ्ता कैदी इंद्र कुमार शर्मा उर्फ इंदल ठाकुर कर रहा है, जो 2013 से जेल में हेड मिस्त्री के रूप में काम कर रहा है. पुणे में फर्नीचर का काम करने वाले इंदल ठाकुर को हत्या के मामले में सजा मिली थी, जिसके बाद से वह जेल में ही यह काम संभाल रहा है.
जेल प्रशासन के अनुसार, कोर्ट और अन्य जेलों से मॉडल डिज़ाइन के अनुसार फर्नीचर की मांग भेजी जाती है, और उसी के अनुसार फर्नीचर तैयार कर आपूर्ति की जाती है.
अन्य वस्तुओं का भी उत्पादन
सेंट्रल जेल में कपड़े धोने के लिए साबुन, फिनाइल, सरसों तेल, मसाले और सत्तू भी तैयार किया जाता है. इन सभी वस्तुओं का निर्माण बंदियों के द्वारा किया जा रहा है, जिससे उन्हें काम सीखने और अपने कौशल को निखारने का अवसर मिल रहा है.