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बेगूसराय फायरिंग मामले का राजनीतिक इस्तेमाल करने की फिराक में है सरकार ?

पटना (TBN – वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की रिपोर्ट)| बिहार पुलिस ने बेगूसराय फायरिंग मामले की आधी सच्चाई का पता लगा लिया है. बाकी आधी सच्चाई पर वह मौन है.आधी सच्चाई यह है कि चार लोग गिरफ्तार किए गए हैं. उन्होने अपना गुनाह यह कहते हुए कुबूल किया है कि ऐसा करने के लिए उनसे कहा गया था.

एडीजी (मुख्यालय) जीतेन्द्र सिंह गंगवार ने इस सिलसिले में सिर्फ इतना ही कहा कि चारों अपराधियों के हैण्डलर की जानकारी इकट्ठा की जा रही है.

दूसरी तरफ भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने इन गिरफ्तारियों को फर्जी बताया है. मोदी के मुताबिक मुख्यालय एडीजी और बेगूसराय एसपी की बातों में अंतर है. लोगों के दबाव में आकर की गई इन गिरफ्तारियों से असली गुनाहगार बचे रह जायेंगे और घटना के मक़सद की जानकारी दफ्न हो जायेगी.

उन्होने कहा कि सीबीआई जांच होनी चाहिए. मोदी के साथ ही केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी इसकी सीबीआई जांच की मांग करते हुए बेगूसराय की घटना को आतंकी हमला बताया है. लेकिन सीएम नीतीश कुमार ने इस मांग को खारिज कर दिया. मालूम हो की सीबीआई जांच के लिए राज्य सरकार की अनुशंसा जरुरी है.

जदयू प्रवक्ता रणवीर नंदन ने सीबीआई जांच की मांग को ठंढे बस्ते में डालने वाला बताया है. 48 घंटे में मामले का पर्दाफ़ाश करने के लिए जदयू ने पुलिस सक्रियता की प्रशंसा की.

सरकार पर दबाव बनाने के लिए विपक्ष आरोप लगाता है जिसे सरकार राजनीति से प्रेरित बताती है. पर, इस मामले में तो राजनीति की शुरुआत स्वंय मुख्यमंत्री ने की जब उन्होंने पिछड़ों और मुसलमानों को टारगेट करने की बात कही थी. भाकपा(माले) ने भाजपा पर सीधा आरोप लगाया था. जबकि भाजपा बेगूसराय फायरिंग की घटना को जंगल राज से जोड़ना चाहती है और बिहार सरकार इस घटना के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराना चाहती है. पिछड़ों और मुसलमानों को टारगेट करने वाला सीएम का बयान इस जांच के केन्द्र में है क्योंकि उससे भाजपा विरोधी जो धारा निकलेगी वह दूर तक जायेगी.

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इसलिए सीबीआई और बिहार पुलिस की जांच का फर्क इसमें छिपा हो सकता है. सीबीआई जांच की अनुशंसा अगर सरकार कर दे तो उसका इरादा पूरा नहीं होगा और बिहार पुलिस पर अकुशलता का अलग से आरोप लग जायेगा.

लेकिन बिहार पुलिस की जो आधी कामयाबी है वह सवाल भी खड़े करती है. क्योंकि अपराधियों से पुलिस को मिली जानकारी संवेदनशील है. अपराधी यह कबूल करे कि किसी के कहने पर उसने अपराध किया लेकिन कहने वाले के बारे में पुलिस को कुछ न बताए, यह मुमकिन है ? इसका सीधा मतलब यह हो सकता है कि इसमें पुलिस सीएम के बयान की पुष्टि के दबाव में है और अपने राजनीतिक आकाओं के निर्देश का इंतजार कर रही हो.