भाजपा को पहली बार मिली धोबी पछाड़
पटना (TBN – The Bihar Now डेस्क)| इन बातों पर गौर करें. 2014 में भाजपा ने नरेंद्र मोदी को चेहरा बनाया तो नीतीश (Nitish Kumar) ने भाजपा (BJP) से 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया. 2015 में जदयू-राजद-कांग्रेस ने महागठबंधन (grand alliance) बनाया. चुनाव लड़ा और सरकार बना ली. 26 जुलाई 2017 को नीतीश ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर महागठबंधन (Mahagathbandhan) का साथ छोड़ दिया. भाजपा के साथ हो लिए. तंज कसा गया- ‘भाजपा सरकार में सिम ही नहीं, सीएम पोर्टेबिलिटी की भी सुविधा है.’
जोड़तोड़ से सरकार बनाने का सिर्फ बिहार (Bihar) का ही उदाहरण नहीं है. 2014 के बाद तो मानो भाजपा ने देश विजय करने के लिए अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा ही छोड़ दिया हो. जहां चुनाव में जीते तो सही, नहीं तो जोड़तोड़ से एक के बाद एक राज्यों में भाजपा सरकारें बनतीं चली गईं. ऐसे ही राज्यों में हरियाणा, कर्नाटक, गोवा, मध्य प्रदेश, पूर्वोत्तर के राज्य और ताजा उदाहरण महाराष्ट्र का है.
वर्तमान समय में अजेय माने जाने वाली भाजपा के कई दिग्गज दो दिन पहले तक कहते रहे कि ‘राज्यपाल हमारा – विधानसभा अध्यक्ष हमारा, फिर क्या ये संभव है कि नीतीश अलग होकर सरकार बना लें ?’
लेकिन शायद उन्होंने भी नहीं सोचा हो कि माइनस भाजपा सारे (164) विधायक नीतीश के साथ हो लेंगे. नीतीश ने यहां भाजपा के साथ वही धोबी पछाड़ दांव खेला, जो वह अन्य राज्यों में खेलती आई है.
अब आगे क्या …..
क्या फैसला जल्दबाजी में हुआ?
नहीं. कई महीनों से मंथन चल रहा था. भाजपा-जदयू के दिग्गजों ने ऑफ द रिकॉर्ड कई तिथियां भी बताई. जैसे- 11 जून भी ऐसी ही एक तिथि थी, जिसके पहले ही लालू-राबड़ी-तेजस्वी के कई ठिकानों पर एकसाथ सीबीआई के छापे पड़ गए. खैर, 11 जून शांतिपूर्वक निकल गया. पिछले 15 दिनों से 11 अगस्त की तारीख दी जा रही थी.
क्या नीतीश ने आरसीपी के कारण भाजपा छोड़ी?
सिर्फ यही कारण नहीं. राजनीति में किसी भी फैसले का सबसे बड़ा कारण वोटबैंक है. भाजपा और जदयू दोनों का वोटबैंक व एजेंडा बिलकुल अलग है. जिस तरह भाजपा अपने एजेंडे को आगे बढ़ा रही थी, उसमें नीतीश के लिए अपने वोटरों को जवाब देना मुश्किल होता जा रहा था. दूसरा कारण, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से दूरी है. मोदी, शाह या नड्डा से उन्हें अपेक्षित रिस्पांस नहीं मिल रहा था. तीसरा बड़ा कारण – आसीपी सिंह (RCP Singh) हैं. वह नीतीश के गढ़ नालंदा (Nalanda) में बैठकर भाजपा की जमीन तैयार करने में लगे थे.
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क्या भाजपा चुप रहेगी?
कभी नहीं. शिव सेना (Shiv Sena), तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress), झारखंड मुक्ति मोर्चा (Jharkhand Mukti Morcha) के नेताओं के साथ जो हो रहा है उसी से अंदाज लगाया जा सकता है. लालू परिवार तो तमाम केसों में पहले से घिरा है. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो नीतीश को कब-कहां-किस तरह से घेरा जाएगा, ये तो समय बताएगा, लेकिन ये तय है कि इसकी कोशिश जरूर होगी.
सबसे अधिक फायदा किसको?
वर्तमान में, नीतीश को. देश को बड़ा संदेश कि वह भाजपा से सरकार छीन सकते हैं. पीएम पद के लिए दावेदारी मजबूत होगी. – भविष्य में, तेजस्वी को. क्योंकि पिछले चुनाव में जिस तरह जंगलराज का डर दिखाकर उन्हें हराया गया, नीतीश के साथ से वो खत्म हो जाएगा.
सबसे अधिक घाटा ?
भाजपा को. लोकसभा चुनाव में भी यही महागठबंधन रहा तो राजनीतिक पंडितों के मुताबिक बिहार में भाजपा को दहाई का आंकड़ा पार करने में दिक्कत होगी. अभी 40 में 39 सीटें (भाजपा 20 – जदयू 19) हैं.
(आभार – सतीश सिंह, डीबी)