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लॉकडाउन में मानसिक फिटनेस के लिए टीवी व सोशल मीडिया बना बिहारी युवाओं का सहारा

पटना (TBN – The Bihar Now डेस्क) | निष्कर्ष राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (PFI) द्वारा मई में किशोरों पर कोविड-19 और कोविड-19 में लगे लॉकडाउन के प्रभाव का अध्ययन किया गया था जिससे यह सामने आया कि खुद को मानसिक तौर पर स्‍वस्‍थ रखने के लिए बिहार के ज्‍यादातर युवाओं ने टीवी और सोशल मीडिया का सहारा लिया. इस आकलन के लिए किए गए अध्ययन के बारे में पीएफआई की कार्यकारी निदेशक, पूनम मुत्तरेजा ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान खुद को मानसिक रूप से स्वस्थ बनाए रखने और मनोरंजन के लिए बिहार के हर 10 किशोर में से लगभग पांच (48%) ने टेलीविजन का सहारा लिया. वहीं हर 10 युवा में से 3 (36%) ने इसके लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की मदद ली.

उन्‍होंने कहा कि देशभर में लगे लॉकडाउन में किशोरों पर इस मानसिक प्रभाव के यह अध्ययन के लिए राष्ट्रीय एनजीओ द्वारा 3-राज्यों में कराए गए सर्वे का हिस्सा हैं. अध्ययन के मुताबिक, स्कूलों में व शैक्षणिक सत्र में ही छात्रों से जुड़े रहने की अक्षमता की ओर इशारा करता है. बतादें कि आधे से अधिक किशोरों ने किसी न किसी रूप में मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली. उनमें से लगभग आधे ने कहा कि उन्होंने किसी न किसी रूप में मेंटल हेल्थ सर्विस (मानसिक स्वास्थ्य सेवा) या रिसोर्स (संसाधन) का सहारा लिया.

इन दिनों देश के युवाओं के बीच अपनी शिक्षा को लेकर अनिश्चितता (स्कूलों और कॉलेजों के बंद होने और डिजिटल लर्निंग तक खराब पहुंच), कहीं आने-जाने, आजादी और समाजीकरण पर प्रतिबंध, घरेलू काम में उनके वर्कलोड में बढ़ोतरी, घरेलू विवाद और अपने रोजगार की संभावनाओं पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंता है. इस पर पूनम मुत्तरेजा ने कहा कि युवा हमारी आबादी का लगभोग पांचवां हिस्सा हैं उनपर पड़ने वाले इसके प्रभाव की गंभीर पड़ताल की जानी चाहिए. साथ ही उन्होंने बताया की स्वास्थ्य संबंधी सूचनाएं हासिल करने के लिए अनौपचारिक चैनल्स, मसलन दोस्त या टीवी शोज, आदर्श प्लेटफॉर्म नहीं हैं क्योंकि उनके द्वारा दी गई जानकारी सटीक नहीं होती और साथ ही वे इस काम के लिए प्रशिक्षित नहीं हैं.

भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, प्रजनन और बाल स्वास्थ्य के संयुक्त सचिव डॉ. मनोहर अगनानी ने युवाओं पर पड़ रहे इन चिंताजनक मेंटल प्रेशर को हल्का करने क लिए उठाए जा रहे कदमों के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने कहा “मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे को ध्यान में रखते हुए हमारे राज्य कार्यक्रम अधिकारियों को जानकारी मुहैया कराने के लिए वेबिनार आयोजित किए गए हैं जो कोविड-19 के किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर को देख रहे हैं. किशोरों और युवाओं को मनोवैज्ञानिक मदद प्रदान करने को लेकर मंत्रालय ने किशोर स्वास्थ्य परामर्शदाताओं के कौशल निर्माण के लिए प्रासंगिक संगठनों के साथ भी हाथ मिलाया है. मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को लेकर सकारात्मक वातावरण बनाने के लिए हम समुदाय-आधारित यूथ चैंपियंस और नेटवर्क्स से कनेक्ट होने के लिए यूथ नेटवर्क के साथ भी जुड़ रहे हैं.”

बिहार के अध्ययन के प्रमुख निष्कर्षों में शामिल है –

बिहार में आधे से अधिक उत्तरदाताओं (55%) ने महसूस किया कि उनकी सैनिटरी नैपकिन की जरूरतें पूरी नहीं हो सकीं. लगभग 64% उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्होंने लॉकडाउन के दौरान कहीं आने-जाने में प्रतिबंध की वजह से अधिक टेलीविजन देखा. जबकि अन्य 36% ने कहा कि उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर समय बिताया। 26% उत्तरदाताओं (सभी महिलाएं) ने कहा कि उन्होंने अधिक घरेलू कार्यों का बोझ महसूस किया. बिहार में 28% लड़कियों (किशोरियों) और 17% पुरुष उत्तरदाताओं ने लॉकडाउन के दौरान खुद को डिप्रेसन में महसूस किया. लगभग 100% लोगों ने माना कि एहतियात के तौर पर उन्होंने बार-बार हाथ धाए. लगभग 91% ने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो वे कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग में मदद करेंगे.