नहीं सुधरी है स्थिति बाढ़ अनुमंडल अस्पताल की

बाढ़ (अखिलेश कु सिन्हा – The Bihar Now रिपोर्ट)| इस हॉस्पिटल की कहानी दुःखभरी है. विशेष रूप से यहां के महिला प्रसूति वार्ड की स्थिति काफी दयनीय है. इस वार्ड में वैसे तो महिला डॉक्टर की नियुक्ति है, लेकिन वो लगभग हमेशा नदारद ही रहती हैं.
जी हाँ, हम बात कर रहे हैं, बाढ़ अनुमंडल के सरकारी अस्पताल के महिला प्रसूति वार्ड की. यहां पर प्रतिनियुक्त महिला डॉक्टरों की उपस्थिति लगभग नदारद रहती है. महिला डॉक्टर की अनुपस्थिति में इस वार्ड में पुरुष डॉक्टर इलाज करते हैं, वो भी रात के समय में. इस वार्ड में महिला मरीज की भर्ती, उनके खान-पान के साथ सफाई भी भगवान के भरोसे ही है.
महिला प्रसूति वार्ड के हालत पर डीएम के आदेश के बाद एसडीएम ने संज्ञान लिया था और पिछले 14 दिसम्बर को यहां का औचक निरीक्षण किया था. इस निरीक्षण के दौरान काफी अनियमितता पाई गई थी (पढ़ें वह खबर – बाढ़ अनुमंडल अस्पताल का औचक निरीक्षण, कई डॉक्टर मिले नदारद). उसके बाद एसडीएम ने वहां फैली गंदगी, बेड पर चादरों की हालत तथा मरीजों को खाना नहीं मिलने की बात का पता कहने पर एजेंसी पर कार्रवाई की बात कही. उन्होंने यह भी कहा था कि इस अस्पताल की स्थिति के बारे में पटना के जिलाधिकारी को पत्र भेज दिया गया है. लेकिन उसके बावजूद अभी तक इस अस्पताल के प्रसूति वार्ड की स्थिति जस-की-तस बनी हुई है.
शनिवार रात लगभग 10 बजे जब मीडियाकर्मी अस्पताल के इस वार्ड में पहुंचे तो वहां उनलोगों ने महिला डॉक्टर के बदले पुरुष डॉक्टर, जिनका नाम विनय कुमार चौधरी है, को उपस्थित पाया.
अस्पताल की स्थिति है दयनीय
बाढ़ अनुमंडल का यह अस्पताल अंग्रेजों के समय में बनाया गया था जो यहां का एकमात्र अस्पताल है. लेकिन बाढ़ के इस अस्पताल पर किसी की नजर नहीं जाती है. हर बार स्वास्थ्य मंत्री द्वारा यह घोषणा की जाती है कि स्वास्थ्य सेवा को दुरुस्त करना पहला लक्ष्य होगा लेकिन होता कुछ नहीं है. बाढ़ अनुमंडल के इस अस्पताल की हालत देखकर तो, कम-से-कम यही लगता है. अस्पताल के भवन को तो अच्छा बना दिया गया है लेकिन यहां मरीजों को मिल रहे अच्छे इलाज की तो बात में दम नहीं दिखता है. यहां आउटडोर में मरीजों को देखा जाता है लेकिन इनडोर लगभग खुलता ही नहीं है. इस अस्पताल के पुराने कंपाउंडर, ड्रेसर आदि के रिटायर होने के बाद आज तक नये कंपाउंडर, ड्रेसर की बहाली नहीं हो पाई है. किसी तरह चतुर्थ श्रेणी के कर्मियों द्वारा यह काम किया जा रहा है. यहां किसी दुर्घटना में साधारण रूप घायल अवस्था में आए मरीजों का भी इलाज ढंग से नहीं हो पाता और उन्हें पटना रेफ़र कर दिया जाता है क्योंकि उन घायल मरीजों के ठीक से देखभाल के लिए आज कंपाउंडर ड्रेसर उपलब्ध नहीं हैं.
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अब देखना यह है कि ब्रिटिश राज के समय का यह अस्पताल सरकार की आँखों का तारा बन पाता है या नहीं. या फिर यहां आने वाले मरीज, खासकर प्रसूति विभाग में महिला मरीजों को एक स्वच्छ और उपयुक्त सेवा मिल पाती है या नहीं.