लॉकडाउन में फंसे पिता, माँ की मौत के बाद बच्चियों ने दी मुखाग्नि

छपरा (TBN रिपोर्ट) | लॉकडाउन ने गरीबों पर चौतरफा हमला किया है. भले ही सरकार द्वारा कोरोना से बचाव के लिए देशभर में लॉकडाउन घोषित किया गया हो लेकिन इसकी वजह से अभी भी बढ़ी संख्या में बिहार के अनगिनत मजदूर बाहरी राज्यों में फसे हुए हैं और घर वापसी की राह ताक रहे हैं.
यहाँ तक कि अन्य राज्यों में फंसे लोग अपने गृह राज्य में अपनों को खोने के बाद भी उनके अंतिम दर्शन को तरस गए हैं. ऐसी ही एक हृदयविदारक खबर माँझी प्रखंड के फतेहपुर सरैया से सामने आ रही है.

खबर के अनुसार फतेहपुर सरैया में एक महिला राजमुनी देवी चार दिन पहले कमर और पैर में दर्द से पीड़ित थी जिसके बाद उनको स्थानीय चिकित्सक से दिखाया गया लेकिन रविवार की रात्रि खाना खाने के बाद बेहोश हुई और उनका देहावसान हो गया.
घर के मुखिया और मृतक महिला के पति राजबलम सिंह कुशवाहा लॉकडाउन के चलते गुजरात के सूरत में फंसे हुए थे. घर में बस बेटियां थी और फूटी कौड़ी पास में नही थी. पिता के लौटने की कोई उम्मीद ना देखते हुए बेटियों ने गुल्लक को तोड़ दाह संस्कार का इंतज़ाम किया .
माँ की मौत के बाद घर मे मौजूद बच्चियों की चीत्कार सुनकर स्थानीय लोग मौके पर पहुंचे. रविवार की सुबह माँ की शवयात्रा निकाली गई जिसको पूनम , काजल और नेहा ने कंधा दिया. शमशान घाट पर मुखाग्नि देने की बारी आई तो लोग अपनी अपनी राय जाहिर करने लगे लेकिन मृतिका की पांचवी पुत्री नेहा ने साहस का परिचय देते हुए स्वयं मुखाग्नि देने का निर्णय लिया. ग्रामीणों ने भी बच्ची के साहस को स्वीकारते हुए उसका आग्रह स्वीकार कर लिया और बच्ची ने चिता को मुखाग्नि दी.
मृतक महिला की खराब आर्थिक स्तिथि को देखते हुए अंतिम संस्कार से लौटने के बाद जीविका दीदियों ने मृतिका के घर साढ़े आठ हजार रुपये की तत्कालीन मदद की. वहीँ समाज़सेवी पूर्व जिलापार्षद धर्मेंद्र सिंह समाज और स्थानीय मुखिया संजीत कुमार साह ने पाँच पाँच हज़ार रुपये और खाद्य सामग्री की मदद मुहैया कराया है.
धर्मेंद्र सिंह समाज ने बहादुर बेटियों की जिम्मेवारी लेने का वचन दिया है. इस तरह गाँव वालों ने ऐसे मुश्किल समय में गरीब, असहाय और जरूरमंद बच्चियों के काम आकर मानवता की मिशाल पेश की है.