मोबाइल के टार्च से सदर अस्पताल में मरीजों का हो रहा इलाज

मोतिहारी (TBN – The Bihar Now डेस्क)| वाह रे सिस्टम.. स्वास्थ्य विभाग की आमलोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा देने की राज्य सरकार के दावों का पोल खोल रहा ये पूर्वी चम्पारण ज़िले के मोतिहारी का सदर अस्पताल (Sadar Hospital of Motihari in East Champaran district).
जिला सदर अस्पताल होने के बावजूद यहाँ मोबाइल की रोशनी में सड़क दुर्घटना में आये मरीजों का इलाज किया जाता है. अस्पताल में भर्ती मरीजों की माने तो दिनभर वे गर्मी से बेड पर छटपटाते रहते हैं लेकिन अस्पताल प्रबंधन की तरफ से कोई भी उनकी सुधि लेने तक नहीं आता है.
वहीं, रविवार शाम इस अस्पताल के इमरजेंसी में दो मरीज आयें. इन मरीजों के इलाज में उनके परिजनों का मोबाइल ही सहारा बना रहा. मरीज व परिजन यह कहते नहीं थक रहे कि सरकारी अस्पताल में बेहतर सुविधा का लाख दावा बिहार सरकार या स्वास्थ्य विभाग कर ले, लेकिन धरातल की स्थिति बिल्कुल अलग है. इसका अंदाजा अस्पताल में आने वाले गरीब मरीज व उनके परिजन ही समझते हैं.
जी हां, मामला मोतिहारी सदर अस्पताल का है. मोतिहारी सदर अस्पताल की हालत इतना बदतर है कि इमरजेंसी में आने वाले मरीजों को अपने इलाज के साथ-साथ मोबाइल भी लाना अनिवार्य है. अस्पताल में मरीजों के रहने के लिए रोशनी की कोई व्यवस्था नहीं है.
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अस्पताल में भर्ती मरीजों की माने तो रविवार सुबह से ही अस्पताल में बिजली नहीं थी. इस भीषण गर्मी में बिजली के बिना यहाँ भर्ती मरीजों ने करवट बदल-बदल कर दिन बिताए. वहीं शाम होने के साथ ही पूरा अस्पताल अंधेरे में लिपट गया.
मोबाईल फोन के टॉर्च की रोशनी में इलाज
इतना ही नहीं, शाम में एक ट्रेन दुर्घटना में जख्मी मरीज अस्पताल पहुंचा तो मोबाईल फोन के टॉर्च की रोशनी के सहारे उसका इलाज किया गया. वहीं पर दो अन्य मरीजों को मोबाईल के टॉर्च की ही रोशनी में सलाईन चढ़ाया जा रहा था.
इस बावत पूछने पर अस्पतालकर्मी यह कहकर अपना पाला झाड़ दिया कि बिजली की सप्लाई बंद है. अस्पताल प्रबंधन को इसकी व्यवस्था करनी चाहिए. लेकिन इसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है.
विद्युत विभाग ने दे दी थी जानकारी
इधर पता चला कि विद्युत विभाग द्वारा दो दिन मेन्टेन्स को लेकर अस्पताल सहित सभी विभागों को बिजली सप्लाई में कटौती करने की सूचना दी गई थी. लेकिन सदर अस्पताल प्रबंधन ने इस पर ध्यान न देते हुए बिजली की कोई वैकल्पिक व्यवस्था करना उचित नहीं समझा. इसके कारण यहाँ मरीजों को मोबाइल की रौशनी का सहारा लेकर इलाज कराने की मजबूरी बन गई.