भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) बिकने के कगार पर
भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) “जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी”। LIC मतलब भरोसा। भरोसा 60 सालों का। भारत की सबसे बड़ी जीवन बीमा कंपनी जिसके नाम से ही लोग पॉलिसी खरीदते थे। जो कभी खुद दूसरी कंपनियों को खरीदती थी आज खुद के बिकने की कगार पर है। सरकार के भारत पेट्रोलियम और एयर इंडिया को बेचने की घोषणा करने के बाद, संसद में LIC को बेचने का प्रस्ताव लाना आश्चर्यजनक था।
भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) की स्थापना सन 1956 को हुई थी। सरकारी बीमा कम्पनी होने की वजह से भारत के बीमा बाजार में LIC की अलग ही पहचान है। सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियाँ जब भी डूबने के कगार पर होती हैं और कंपनियों को पैसे की ज़रूरत पड़ती है या सरकार के मुश्किल वक्त में LIC हमेशा सहारा देती आ रही है। 2015 में ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (ओएनजीसी) के आईपीओ के वक़्त भारतीय जीवन बीमा निगम ने 1 .4 अरब डॉलर की रक़म लगाई थी।
सरकार LIC में सौ फीसदी की अपनी हिस्सेदारी को कम करना चाहती है। सरकार हिस्सेदारी बेचने के लिए आईपीओ का रास्ता अपनाने जा रही है। अभी शेयर और हिस्सेदारी के बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं की गई है कि सरकार कितने फ़ीसदी शेयर आईपीओ के ज़रिए बाज़ार के हवाले करेगी।
LIC की 2018-19 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक़ 31 मार्च 2019 को कंपनी के सकल एनपीए 24 हज़ार 777 करोड़ रुपए थे जबकि कंपनी पर कुल देनदारी यानी कर्ज़ चार लाख करोड़ रुपए से अधिक का था। LIC की कुल परिसंपत्तियाँ 36 लाख करोड़ रुपए की हैं। LIC की इस हालात की ज़िम्मेदार खुद LIC है क्योंकि LIC ने जितनी भी कंपनियों में निवेश किया था सबकी आर्थिक स्तिथि बहुत ख़राब हो चुकी है दीवान हाउसिंग, रिलायंस कैपिटल, इंडियाबुल्स हाउसिंग फ़ाइनेंस, पीरामल कैपिटल और यस बैंक जैसी कंपनियों में LIC ने निवेश कर रखा था आज के समय में ये सारी कम्पनियाँ दिवालिया होने की कगार पर पहुँच चुकी हैं
भारतीय जीवन बीमा निगम के कर्मचारी संघ ने आईपीओ लाने के केंद्र सरकार के फ़ैसले का कड़ा विरोध किया है। कर्मचारी यूनियन का विरोध जगह जगह देखने को मिल रहा है।