32 वर्षों में लालू-नीतीश ने बिहार को कहां पहुंचाया ?
पटना (TBN – वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की रिपोर्ट)|पिछले तीन दशक से बिहार समाजवादी सरकारों का साक्षी बना हुआ है. लालू यादव और नीतीश कुमार का जो समाजवाद बिहार ने देखा, आज यह प्रश्न सामने है कि दोनों ने अपने-अपने तरीके से बिहार को कहां पहुंचा दिया और विकास के पैमाने पर बिहार कहां खड़ा है ?
यह सवाल इसलिए मौजूं है क्योंकि बीते 10 अगस्त को ही नीतीश कुमार ने आठवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी.
विकास के किसी भी मानक से अलग पिछले 32 सालों में बिहार ने राजनीतिक तौर पर ही सुर्खियां बटोरीं. 1990 में मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू यादव ने बिहार की गरीबी दूर करने के कई प्रयोग किए. गरीबी तो आज भी वहीं की वहीं है, लेकिन देखते ही देखते 25 साल पहले वह गरीबों के मसीहा जरूर बन बैठे. अपने समर्थकों को ऐसा पाठ पढ़ाया जिसका कोई बजट नहीं था लेकिन समर्थकों का वह समूह आज भी लालू का पालिटिकल एसेट है. राजनीतिक संरक्षण का कुछ ऐसा कल्चर लालू ने विकसित किया जो अब तेज प्रताप और तेजस्वी यादव तक ट्रांसफ़र हो चुका है.
अपनी गरीबी का दिन देख चुके लालू ने जब चारे की चोरी कर ली तब मुकदमे में फंसे लेकिन तरकीब ऐसी लगाई कि राजपाट बना रहा. समर्थकों के बीच सीनाजोरी का तगड़ा मैसेज गया. यह तब भी कायम है जब लालू सजायाफ्ता हो गए. अब यह तेज-तेजस्वी के काम आ रहा है.
जेल का चक्कर और मुकदमा चलने के बीच 2005 में लालू-राबड़ी की सरकार चली गई और नीतीश कुमार सीएम बने. तबसे थोड़ा सा समय छोड़कर आज तक सीएम वही हैं. लालू की तरह नीतीश अपनी बदौलत सीएम नहीं बने. पर, प्रयोग उन्होने भी किया. पहले भाजपा, फिर राजद, फिर भाजपा और अब फिर से राजद के साथ सीएम बनकर सरकार चला रहे हैं.
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हालांकि अन्तर है. समय और समझ दोनों का. अब बिहार इस बात को ज्यादा साफ-साफ समझ पा रहा है लालू और नीतीश में कोई फर्क नहीं है. दोनों ने जिस तरह से समाज को टुकड़े-टुकड़े में बांटा, उससे परम्परागत रुप से वामपंथी दलों और कांग्रेस की राजनीतिक जमीन छीन ली. अब ये दल हाशिए पर हैं और नीतीश-लालू के पिछलग्गू हैं.
चारा घोटाले को अंजाम देकर अकूत दौलत बनाना शुद्ध रुप से लालू का व्यक्तिगत कारण था. उसी तरह अपने अंतिम प्रयोग में भाजपा का साथ छोड़ राजद के साथ सरकार बनाने के पीछे भी नीतीश कुमार का व्यक्तिगत कारण है. नरेन्द्र मोदी की वजह से उन्होने भाजपा का साथ छोड़ा. यह नरेन्द्र मोदी से उनका व्यक्तिगत खुन्नस ही है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए किंग मेकर की भूमिका में सक्रिय हो गए हैं.
अपनी फटेहाली दूर कर लालू ने बिहार को फटेहाल बना दिया था. भाजपा के साथ 2005-10 तक ही नीतीश कुमार की सरकार ने बिहार के हित मे काम किया. उसके बाद से नरेन्द्र मोदी फैक्टर से वह परेशान रहने लगे. अब तो उनसे सीधे मुकाबले में हैं. तब यह सवाल बड़ा हो जाता है कि बिहार को वह किस स्थिति मे छोड़ेंगे ?
सीएम की कुर्सी पर काबिज होने के लिए लालू-तेजस्वी की बेचैनी और धैर्य दोनों पर नजर डालने पर आने वाले समय में नीतीश कुमार की तस्वीर धुंधली ही नजर आती है. वैसे भी किंग मेकर बनना उनकी अपनी चाहत है जिसमें राजद को सीएम की कुर्सी नजर आती है.
वैसे, विधानसभा की तीन सीटों पर उपचुनाव भी होने वाले हैं. राजद की अपनी गणना है कि यदि वह दो सीटें जीत जाए तो सीएम का उसका दावा पुख्ता हो जायेगा. यह बताता है कि नीतीश कुमार का भविष्य कैसा है !!!???
(उपरोक्त लेखक के निजी विचार हैं)