क्या है कुढ़नी सीट पर हुई महागठबंधन की राजनीति का सच ?
पटना (TBN – अनुभव सिन्हा)|अपनी सीटिंग सीट जदयू को देकर राजद ने एक बार फिर भाजपा को नया मौका दिया है. तीन नवम्बर को हुए दो उपचुनाव परिणाम राजद के ठस्से पर मुहर लगाने वाले साबित नहीं हुए. न तो वोट ट्रांसफ़र हुए और न ही राजद इस बात से आश्वस्त हो पाया कि कुढ़नी चुनाव का परिणाम भी वैसा ही नहीं होगा !
गोपालगंज उपचुनाव में राजद को वैश्यों का मिला 70% प्रतिशत वोट राजद उम्मीदवार के वैश्य समुदाय से होने के कारण था. वैसे राजद के शीर्ष नेतृत्व तक मोहन गुप्ता की सीधी पहुंच नहीं है. वह सुभाष यादव के करीबी हैं. इस तरह यह राजद के पारिवारिक कोर ग्रुप की बात है. तो दूसरी तरफ मोकामा को लेकर भी राजद उतना मुतमईन नहीं हो सकता क्योंकि वहां की जीत का सारा श्रेय व्यक्तिगत रुप से अनंत सिंह को जाता है. लेकिन भाजपा का प्रदर्शन यह बताता है कि जदयू अपना वोट राजद को ट्रांसफ़र नहीं करा पाया.
दोनों उपचुनावों पर प्रेक्षकों की गहरी नजर इसलिए भी थी कि नीतीश कुमार ने प्रचार से दूरी बना ली ऐन वक्त पर. मीडिया से भले उन्होने दोनों सीट जीतने की बात कही हो पर अपने वोटर्स तक उनका संदेश पहुंच गया था. उसका नतीजा यह है कि एक सीट पर जीत तो मिली, पर राजद उस जीत का जश्न मनाने की स्थिति में नहीं था.
इसी बीच कुढ़नी सीट पर जब प्रत्याशी देने की बात सामने आई तब जाकर यह स्पष्ट हुआ कि महागठबंधन की एकता पर जोर क्यों दिया गया. पहला मसला तो यह है कि महागठबंधन में शामिल अन्य दलों के लिए उपचुनावों में कोई अवसर नहीं है. यह पेचीदा न हो जाए, इसका भी ख्याल रखना था और एक और उपचुनाव में राजद सीट न गंवाए, इससे निश्चिंतता भी जरुरी थी.
हालांकि जदयू खेमा लगातार इस बात की दुहाई देता आया है कि महागठबंधन की पूरी ताकत नीतीश कुमार के साथ है और लोकसभा चुनावों में वह प्रधानमंत्री को सीधी चुनौती देंगे, पर हालात यही हैं कि नीतीश कुमार को बिहार के अलावा और कहीं से भी समर्थन मिलने की उम्मीद बहुत ही कम है. पर, उससे ज्यादा उन चर्चाओं को भी खारिज करना था कि दोनों उपचुनाव जीत जाने की स्थिति में राजद सीएम की कुर्सी से नीतीश कुमार को उठा देता.
कुल मिलाकर कुढ़नी की सीट जदयू को देकर राजद ने खुद को बचाया है. हालांकि, कुढ़नी उपचुनाव का पेंच कुछ ज्यादा टाइट है. बिन बुलाए मेहमान की भूमिका में रहे मुकेश सहनी महागठबंधन में अपनी जगह तलाश रहे थे, पर वह नहीं मिली. इसलिए वीआईपी और एआईएमआईएम दोनों अपने उम्मीदवार उतारेंगे और इनकी चुनौती का सामना जदयू को ही करना पड़ेगा.
बसावन भगत अथवा केदार कुशवाहा को भाजपा अपना उम्मीदवार बना सकती है. राजद और भाजपा के बीच टक्कर में वीआईपी और एआईएमआईएम दोनों में से किसी एक का खेल बिगाड़ेंगे और दूसरे का बनायेंगे.