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‘जनता राज’ कहने से आखिर सीएम का मतलब क्या है ?

पटना (TBN – वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की रिपोर्ट)| प्रचारतंत्र पर कब्जा का आरोप आखिरकार सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने लगा ही दिया. हालांकि उनकी कही हुई सारी बातें भी मीडिया में आईं पर उनका आशय शायद उन मीडिया घरानों की कम संख्या से है, जिनके पास संसाधन है न श्रोता !

पहले दिन (9 अगस्त) से नीतीश कुमार ने अपनी रणनीति स्पष्ट कर रखी है. उनकी बातों को याद कीजिए. अत्यंत चुनौतीपूर्ण और आक्रामक. तीन दिवसीय दिल्ली प्रवास से भाया गया पटना लौटे सीएम का यह तेवर फिर सामने आया, “कहां जंगलराज आ गया है?” यहां जनता राज है.

बात सिर्फ इसकी नहीं है कि गृह विभाग उनके पास है और जंगलराज का मतलब विधि-व्यवस्था का लालू राज में पहुंच जाना है. बात उनके उस दावे की है कि न्यूनतम रुप से सूबे की विधि-व्यवस्था नियंत्रण में है. और अगर ऐसा है तो जनता का राज है.

हो सकता है सीएम ने इस बात पर ध्यान न दिया हो पर, उनके पटना लौटने के पहले, सुबह से ही एनआईए सूबे के नौ जिलों में छापेमारी करती रही और महत्वपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस उसके हाथ भी लगे. यह छापेमारी फुलवारीशरीफ टेरर माड्यूल की जांच से जुड़ी थी जिसके तार तमिलनाडु के शिवमोगा और कर्नाटक के दक्षिणी जिले से जुड़े पाए गए हैं.

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फुलवारीशरीफ टेरर माड्यूल सक्रिय है, बिहार सरकार को इसकी भनक तक नहीं थी. देश को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की साजिश से बेपरवाह राज्य सरकार की नींद आईबी इनपुट के बाद खुली और 11 जुलाई को फुलवारी में पटना पुलिस ने दबिश दी तब यह राज खुला.

यह भी महत्वपूर्ण है कि पीएफआई कनेक्शन से जुड़े जिन नौ जिलों में एनआईए ने गुरुवार को छापेमारी की उसमें बिहारशरीफ का नालंदा भी शामिल है. नालंदा वह जगह है जहां मुस्लिम आक्रमणकारियों ने हमारे ज्ञान के धरोहर को नष्ट कर दिया था.

पर बात जंगलराज बनाम जनता राज की है. यह मान लिया जाय कि लालू राज के स्केल पर आज बिहार में अपहरण, फिरौती, हत्या, लूट जैसी घटनाएं नहीं होती तो राष्ट्र विरोधी घटनाओं से सूबे की विधि-व्यवस्था पर कोई फर्क नहीं पड़ता ? ऐसी घटनाओं को लेकर चौकस रहने की जरुरत बिहार पुलिस को नहीं है ? गृह मंत्री के तौर पर सीएम के ऐसे नजरिए को किस तरह से देखा जाना चाहिए ताकि बिहार के लोग किसी बड़ी साजिश से सुरक्षित रहें !

खबर तो यह भी है कि प्रतिबंधित संगठन भाकपा-माओवादी फिर से सक्रिय है तथा मगध जोन को अपने प्रभाव में लाने की लगातार कोशिश कर रहा है. यह भी तो विधि-व्यवस्था से ही जुड़ा मसला है, पर बिहार पुलिस की सक्रियता शुन्य है.

दरअसल, अपने लगभग 17 वर्षों के मुख्यमंत्रीत्व काल में नीतीश कुमार ने अपनी छवि एक सौम्य नेता की बनाई जो अपने समाजवादी सिद्धान्तों का कुशलतापूर्वक पालन करने में विश्वास रखता है. क्राइम, करप्शन और कम्यूनलिज्म से समझौता न करना एक बेहतर समाजवादी विशेषता हो सकती है, पर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों से बेपरवाह रहना किस तरह के समाजवाद का हिस्सा हो सकता है ?

(उपरोक्त लेखक के निजी विचार हैं)