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‘दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय’

पटना (वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की खास रिपोर्ट)| कांग्रेस मुक्त भारत से उधार लिए गए भाजपा मुक्त भारत की तैयारियों के बीच भाजपा ने अपनी विश्वसनीयता बढ़ाई है तो क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस से यह जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है. क्षेत्रीय दलों ने अपनी आक्रामकता से कांग्रेस को बौना बना दिया है.

भ्रष्टाचार ने कांग्रेस को इस स्थिति तक पहुंचाया है तो उसे चुनौती देने वाले क्षेत्रीय दल भी भ्रष्टाचार में उससे पीछे नहीं हैं. अन्तर सिर्फ इतना है कि कांग्रेस अकेली होती जा रही है और भ्रष्ट विपक्षी दल एक होकर भाजपा का मुकाबला करना चाहते हैं.

इसलिए कोच्ची में गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि देश में भ्रष्टाचारी व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई के कारण राष्ट्रीय राजनीति में नया ध्रुवीकरण हुआ है और कुछ राजनीतिक समूह भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे लोगों को बचाने के लिए खुलेआम एक गुट में संगठित होने का प्रयास कर रहे हैं.

देश के कांग्रेसी भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को आयरन लेडी मानते थे. उस आयरन लेडी ने भ्रष्टाचार को इंटरनेशनल फेनोमेंनन बताया था. कांग्रेसियों को मिला यह मोरल सपोर्ट सिर्फ लूट तक ही सीमित नहीं रहा, अपने शासन तंत्र के जरिए कांग्रेस ने भ्रष्टाचार को वहां तक आयामित किया जहां तक सोशल कैमिस्ट्री को छिन्न-भिन्न किया जा सकता था. हालांकि इसमें कामयाबी तो नहीं मिली, लेकिन यह भ्रष्टाचार ही अब उसे कुतर रहा है.

आठ साल ही बीते हैं और आज यह कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं है. इसकी विश्वसनीयता कुछ इस तरह से खत्म होती गई है. राष्ट्रीय स्तर पर एक तरफ भाजपा की बढ़ती विश्वसनीयता है तो क्षेत्रीय स्तर पर विभिन्न दलों की मजबूती ने इसके अस्तित्व को ही संकट में डाल दिया है.

2024 के अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनावों की यही पृष्ठभूमि है जिसमें इस पार्टी की स्थिति कैसी होगी, यह भी सामने आयेगा.

देश के स्तर पर विभिन्न क्षेत्रीय दल ताल ठोक रहे हैं और कोई भी कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. और यह तब है जब लगभग सारे क्षेत्रीय दल भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और प्रधानमंत्री बनने का सपना पाले हुए हैं.

इनमें बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी शामिल हैं, हालांकि अंदाज थोड़ा अलग है. उनपर या उनके दल जदयू पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप तो नहीं है, पर भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबे राजद एवं अन्य पांच दलों के समर्थन से बनी सरकार के मुख्यमंत्री हैं.

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हाल तक (8 अगस्त) नीतीश कुमार एनडीए में थे. अगले दिन भाजपा से नाता तोड़ लिया और राजद के साथ सरकार बना ली. इस नए महागठबंधन की सरकार में कांग्रेस और वामदल भी शामिल हैं. भ्रष्ट दलों की इस सरकार के मुखिया नीतीश कुमार ने स्वयंभू बनकर देश भर के विपक्ष को एकजुट करने का बीड़ा उठाया है.

इस समय एक पुराना किस्सा भी हवा में तैर रहा है. बात 2015 से जुलाई 2017 के बीच की है जब नीतीश कुमार ने लालू से नाता तोड़ भाजपा के साथ सरकार बना ली थी. उस बीच लालू ने अरुण जेटली से चारा घोटाले के सभी मामलों को क्लब करने की गुहार लगाई थी. लालू चाहते थे कि अलग-अलग मामलों को एक कर दिया जाये ताकि एक ही मुकदमा हो और फैसला भी एक ही बार आए.

चूंकि नीतीश उस समय भाजपा से अलग थे और भाजपा बिहार में विपक्ष में थी, अपनी तरफ से लालू ने जेटली को आश्वस्त करना चाहा था कि वह नीतीश कुमार को निपटा देंगे. लेकिन भाजपा ने लालू की कोई चाहत पूरी नहीं की, बल्कि इसकी जानकारी नीतीश को दे दी. नीतीश ने खतरा भांपा और लालू से अलग हो गए.

लेकिन नीतीश कुमार ने भाजपा को भी गच्चा दे दिया. नीतीश कुमार की छवि बेदाग है और वह भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व के लिए विपक्ष का चेहरा बन सकते थे, इसे रोकने के लिए भाजपा ने लालू की योजना नीतीश को बताई थी, पर नरेन्द्र मोदी से व्यक्तिगत खुन्नस और भ्रष्टाचार में लिप्त विपक्षी दलों को ध्यान में रखते हुए उनको अपना रास्ता नजर आया और भाजपा को गच्चा दे दिया.

अब भ्रष्टाचार के चक्रव्यूह को भ्रष्टाचारियों के सहारे भेदने निकले नीतीश कुमार दो पाट के बीच में हैं. एक तरफ नरेन्द्र मोदी हैं जिन्हें वह ललकारना चाहते हैं और चूंकि उनकी ताकत बिहार में ही है, इसलिए दूसरी तरफ लालू यादव, जो सिर्फ यह चाहते हैं कि उनका बेटा मुख्यमंत्री बन जाए, भले उसके लिए नीतीश कुमार का राजनीतिक अहित ही क्यों न करना पड़े.

(उपरोक्त लेखक के निजी विचार हैं)