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चम्पारण का विरोधाभास : गुलामी ने गांधी को महात्मा बनाया और आजादी ने विनोवा भावे को किनारे लगा दिया

रामगढ़वा / पूर्वी चंपारण (TBN – अनुभव सिन्हा)|चम्पारण का महत्व ऐतिहासिक है. दो बड़ी विभूतियों ने अपने महत्वपूर्ण प्रयास यहीं से शुरू किए थे. यहीं से शुरू महात्मा गांधी के आन्दोलन से देश को आजादी मिली! दूसरा महत्वपूर्ण प्रयास भी यहीं से शुरू हुआ था विनोवा भावे की अगुवाई में. वह भी कामयाब था. भू-दान आन्दोलन का उद्देश्य भी अत्यंत मानवीय एवं लोक कल्याणकारी था. भू-पतियों द्वारा स्वेच्छा से दी गई जमीन पर भूमिहीनों को बसाना भू-दान आन्दोलन का प्रमुख उद्देश्य था. अपने पश्चिमी चम्पारण की पदयात्रा में प्रशांत किशोर को उन 1.25 लाख भू-पट्टाधारियों की जानकारी मिली जिन्हें भू-दान की जमीन का पट्टा तो मिल गया पर अभी तक जमीन का वह टुकड़ा उन्हें नसीब नहीं हुआ! ये भूमिहीन कहां जाएं…सरकार चलकर उनके पास आती नहीं, अधिकारियों के सामने उनकी खड़े होने की हिम्मत नहीं, किससे कहें और दो जून की रोटी की रोज व्यवस्था करने की जरूरत भी इतनी बड़ी कि दो-दो पीढियां गुजर गईं गुहार लगाते-लगाते, पर भूमि का पट्टा लिए भूमिहीनों की स्थिति में आजतक कोई बदलाव नहीं आया. न मजदूरी करने की उनकी स्थिति में कोई बदलाव आया न ही जमीन मिली!! गुलामी और आजादी का यह फर्क भले चम्पारण का विरोधाभास हो पर इस फर्क को देखने- समझने का आमंत्रण आज भी चम्पारण देता है !!