जाति सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिका पर 18 अगस्त को सुनवाई करेगा SC
नई दिल्ली (TBN – The Bihar Now डेस्क)| सोमवार को उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने कहा कि वह बिहार सरकार द्वारा जाति सर्वेक्षण (caste survey) के आदेश को बरकरार रखने के पटना उच्च न्यायालय (Patna High Court) के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर 18 अगस्त को सुनवाई करेगा. न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की पीठ (bench of Justice Sanjiv Khanna and Justice SVN Bhatti) ने मामले को 18 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दिया.
अदालत ‘एक सोच एक प्रयास’ नामक एक संस्था (“Ek Soch Ek Prayas”) की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. अदालत ने कहा कि वह उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अन्य याचिकाओं के साथ याचिका पर सुनवाई करेगी. बता दें, बिहार सरकार द्वारा आदेशित जाति सर्वेक्षण को बरकरार रखने वाले पटना उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में विभिन्न याचिकाएँ दायर की गईं हैं.
पटना हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि एक अगस्त को पटना हाईकोर्ट के आदेश के दिन नीतीश सरकार ने देर रात अधिसूचना जारी करके जातिगत सर्वेक्षण को तीन दिनों के भीतर पूरा करने को कहा था. इस पर न्यायालय की पीठ ने कहा कि वह हर मुद्दे पर 18 अगस्त को विचार करेगी.
याचिकाकर्ताओं की है ये मांग
इस मामले में अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से कोर्ट में उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी (Senior Advocate Mukul Rohatgi) ने भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका लंबित रहने तक जातिगत सर्वेक्षण के रिपोर्ट को प्रकाशित नहीं करने का राज्य सरकार को निर्देश जारी किया जा सकता है. जस्टिस खन्ना ने कहा कि ऐसा करना दूसरे पक्ष को सुने बिना सर्वेक्षण पर परोक्ष तौर पर रोक लगाने जैसा होगा.
वहीं, संस्था की याचिका में लिखा गया है कि बिहार सरकार द्वारा जाति जनगणना करने की पूरी प्रक्रिया बिना अधिकार और विधायी क्षमता के है और दुर्भावनापूर्ण है. याचिका में कहा गया है कि 6 जून, 2022 की अधिसूचना संविधान की अनुसूची VII के साथ पढ़े गए संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत निहित राज्य और केंद्र विधायिका के बीच शक्तियों के वितरण के संवैधानिक आदेश के खिलाफ है और जनगणना नियमों का उल्लंघन करती है.
याचिका में कहा गया है, ‘चूंकि 6 जून, 2022 की अधिसूचना भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 246 का उल्लंघन करती है और ‘इसलिए यह रद्द किए जाने योग्य है.” याचिकाकर्ता ने दावा किया कि केंद्र के पास भारत में जनगणना करने का अधिकार है और राज्य सरकार के पास बिहार राज्य में जाति आधारित सर्वेक्षण के संचालन पर निर्णय लेने और अधिसूचित करने का कोई अधिकार नहीं है और 6 जून, 2022 की अधिसूचना अशक्त और शून्य (null and void) है.
बता दें, पिछले हफ्ते बिहार सरकार ने राज्य सरकार द्वारा आदेशित जाति सर्वेक्षण को बरकरार रखने वाले पटना उच्च न्यायालय के फैसले से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक कैविएट दायर की थी. एक वादी द्वारा कैविएट आवेदन यह सुनिश्चित करने के लिए दायर किया जाता है कि बिना सुने उनके खिलाफ कोई प्रतिकूल आदेश पारित न किया जाए.
बताते चलें, जाति जनगणना का निर्णय बिहार कैबिनेट ने पिछले साल 2 जून को लिया था, जिसके महीनों बाद केंद्र ने जनगणना में इस तरह की कवायद को खारिज कर दिया था. इस सर्वेक्षण में 38 जिलों के अनुमानित 2.58 करोड़ घरों में 12.70 करोड़ की अनुमानित आबादी को कवर किया जाएगा, जिसमें 534 ब्लॉक और 261 शहरी स्थानीय निकाय हैं.