“आप उस संस्कृति की प्रशंसा कर रहे हैं जिसको जी-जान से खत्म करने में मैं लगा हुआ हूं” – नेहरू
पटना (TBN – वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा)| जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) भारत को ब्रिटेन जैसा एक आधुनिक देश बनाना चाहते थे. उनको भारतीय इतिहास, परम्परा और संस्कृति में कोई रूचि नहीं थी. 1953 में फ्रांस का एक 25 सदस्यीय प्रतिनिधिमण्डल भारत आया था. यहां आकर उसने देश के विभिन्न इलाकों का दौरा किया और उस दौरान भारत की विविधता और संस्कृति से अवगत हुआ. भ्रमण ने प्रतिनिधिमण्डल को आश्चर्यचकित कर दिया था.
फ्रांस लौटने के पूर्व उस प्रतिनिधिमण्डल ने प्रधानमंत्री नेहरू से मुलाकात की और भारतीय संस्कृति, विरासत, सामाजिक सौहार्द्र और परम्पराओं की प्रशंसा की. नेहरू का मूड बिगड़ गया. और तब उनकी बातें सुनने के बाद एक पंक्ति कहकर मुलाकात खत्म कर दी. नेहरू ने कहा था कि आप जिन बातों की प्रशंसा कर रहे हैं, मैं उन्हें खत्म करने में लगा हूं.
ऐसे थे देश के पहले प्रधानमंत्री! कांग्रेस उनको भारत का आर्किटेक्ट बताती है और ऐसा करने में उसे अब संघर्ष करना पड़ता है. क्योंकि जिस परम्परा की शुरुआत नेहरू ने की, उसमें कांग्रेस को शुरूआती बढ़त तो मिली पर सोनिया (Sonia Gandhi), राहुल – प्रियंका का दौर आते-आते सबकुछ साफ हो चुका था. यह त्रिमूर्ति भारतीय संस्कृति, ज्ञान परम्परा और विरासत के प्रति नेहरू की उपेक्षात्मक नीतियों का वजन बर्दाश्त नहीं कर पाई और बिखरते-बिखरते आज कृशकाय हो चुकी है.
नेहरू के रास्ते का सबसे बडा़ कांटा सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabh Bhai Patel) थे जिनका अवसान दिसम्बर 1950 में हुआ था. नेहरू के विचारों को पंख उसके बाद ही लगे.
अपने बारे में नेहरू ने कहा था कि वह जन्म से हिन्दू, संस्कृति के लिहाज से मुसलमान और विचार से अंग्रेज हैं. यानि नेहरू की अपनी मौलिकता शुन्य थी. यही कारण रहा कि नेहरू की शख्सियत न सिर्फ सीमित हो गई बल्कि उनके विचारों का दूरगामी परिणाम देश के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ, जिससे देश आज जूझ रहा है.
इसलिए यह हैरत की बात नहीं कि देश विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने, देश के गद्दारों के साथ खडा़ होने, साम्प्रदायिक आधार पर देश को विभाजित करने, बहुसंख्यक आबादी (हिन्दू) को नीचा दिखाने और तुष्टीकरण की पराकाष्ठा को पार कर जाने के बाद भी कांग्रेस पार्टी खुद को राष्ट्रभक्त बताती है. नेहरू भारत को वैसा आधुनिक राष्ट्र बनाना चाहते थे जिसमें भारतीयता का अंश मात्र भी न हो जबकि नेहरू के गुजर जाने के दशकों बाद आज का वैश्विक विज्ञान भारतीय ज्ञान परम्परा में अपनी जडे़ं तलाशता है. इस प्रकार, जिसकी शुरूआत ही नेहरू ने नहीं की, आज के कांग्रेसी उसे कैसे समझ पायेंगे ? यही वजह है कि आज वह सबसे पुरानी पार्टी होने के बोझ से दबती जा रही है.
कांग्रेस ने देश पर राज किया. लेकिन उसकी राजनीति की परतें 2014 के बाद खुलनी शुरू हुईं कि भारतीय इतिहास, परम्परा और संस्कृति से उसका कोई वास्ता ही नहीं है (क्योंकि नेहरू ने यही सिखाया) तो देश के लिए भी वह आवश्यक नहीं रह गई है.
(उपरोक्त लेखक के निजी विचार हैं)