बंगलूरू की महागठबंधन बैठक के पहले बिहार क्या दिखायेगा ?
पटना (TBN – वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की रिपोर्ट)| सही बिन्दू पर विमर्श के लिए राजनीति न हो, तब अतीत में झांकना व्यर्थ होता है. इसी दौर से गुजर रही भारतीय राजनीति अपने तार्किक परिणति की ओर आगे बढ़ रही है. भूकम्प का केन्द्र तो गहराई में है पर सतह पर मचलती तरंगे इसका संकेत दे रही हैं. तीव्रता पर ध्यान देने की जरूरत है. महज दस दिन में दूसरे सबसे ज्यादा लोकसभा सीट वाले राज्य के धुरंधर चित्त हो चुके हैं. वैचारिक खोखलापन देखिए…..उनको चाणक्य कहा जाता है. जबकि चाणक्य हमारे ऐसे रणनीतिकार रहे जिन्होने कभी असफलता को अपने पास फटकने तक नहीं दिया.
महाराष्ट्र की यह तरंग शांत नहीं है. इसका असर पैन इंडिया है और अब बारी बिहार की है जो राजनीतिक दलदल के नए आयाम को पिछले 33 वर्षों से देखता-समझता आ रहा है. मूल में काग्रेस की विद्वेषपूर्ण राजनीति की सीख और उस परम्परा को आगे बढा़ने की ही है जिसने लालू-नीतीश जैसे कोढ़ को बिहार में देखने के लिए विवश किया. अप्रत्याशित रूप से नीतीश कुमार का आचरण बदल गया है जो इस बात का संकेत है कि महागठबंधन की बंगलूरू में होने वाली दूसरी बैठक के पहले बिहार से मिला राजनीतिक संदेश कैसा है जो महागठबंधन के टेक्सचर की माइक्रो एनालिसिस कर देगा. अब कहीं भी कोई पर्दा नहीं है, बस पात्रों को पर्दे से बाहर आने की वह विवशता देखना बाकी है जो छद्म बुद्धिजीवियों तथा षडयंत्र की महारत का दावा करने वालों के चिकने गाल पर करारा तमाचा होगा.
मौजूदा हालात बताते हैं कैसे उनलोगों के हाथों में भी कुछ नहीं होता जो सबकुछ पास होने का पाखंड रचते हैं क्योंकि आचरण की केमेस्ट्री अपने तरीके से काम करती है और चीजों को तार्किक परिणति तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त करती है. यह भी स्मरण रखना होगा कि बिहार की राजनीतिक गतिविधि का प्रभावकारी असर देशव्यापी ही रहा है. चलिए देखते हैं 18-19 जुलाई के पहले बिहार कैसी तस्वीर पेश करता है……जय हो.