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एक साथ चुनाव जरूरी, पर राष्ट्र विरोधी दलों का क्या ?

पटना (TBN – वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की रिपोर्ट)| लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने के लिए बनी कमिटी और विधि आयोग की बुधवार 25 अक्टूबर को हुई. इस बैठक में, दोनों चुनाव एक साथ कराए जाने पर काम कैसे हो सकता है, उसका रोडमैप पेश किया गया. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कमिटी के अध्यक्ष हैं.

बैठक में रोड मैप के प्रजेंटेशन में सुझाव यह है कि राजनीतिक तौर पर अस्थिरता की स्थिति में केन्द्र या किसी राज्य की सरकार गिर जाए तब क्या किया जाना चाहिए. शेष बचे समय के लिए सरकार के गठन की जो दो व्यवस्था बताई गई, उससे यह साफ होता है कि रोडमैप में राजनीतिक प्रतिद्वन्द्विता का पूरा ध्यान रखा गया है. हालांकि, इस प्रतिद्वन्द्विता की प्रवृति के लिए उत्तरदायी राजनीतिक समझदारी की कमी और उसे दूर करने के किसी उपाय को विचार योग्य नहीं समझा गया. यानि देश के विकासात्मक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए स्थिर और मजबूत सरकार या सरकारों का होना तो जरुरी है, इस बात पर ध्यान देना जरुरी नहीं समझा गया कि गठित सरकार या सरकारों में शामिल राजनीतिक दलों का राजनीतिक चरित्र कैसा हो.

उदाहरण के लिए कांग्रेस पार्टी को सबसे पहले लिया जाना चाहिए. सबसे पुरानी पार्टी जरूर है पर, अपने कारनामों की वजह से आज जिस स्थिति में पहुंच गई है, और उसका नजरिया जैसा सामने आता रहा है, उसे देखते हुए वह यथास्थितिवाद की पोषक ज्यादा दिखाई पड़ती है. इसके खिलाफ राष्ट्र विरोधी ताकतों को शह देने के कई दृष्टांत सामने हैं. मुस्लिम तुष्टीकरण से कई कदम आगे आतंकवादियों का समर्थन करने में कांग्रेस कोई गुरेज नहीं करती. दूसरी तरफ, देश की मनोदशा में जो बदलाव आया है, इसकी शुरुआत 2014 से समझी जा रही है. 2014 महज एक साल नहीं है, यह प्रस्थान बिन्दू है कई धारणाओं के टूटने की, झूठ और साजिश (हिडेन एजेण्डा) के बेपर्द होने की, गर्व और सम्मान के अनुभूति की और उन शक्तियों के कलई खुलने की जिन्होंने इस अनुभूति को पनपने नहीं दिया. आज 2023 में जब इस पर देश गौर कर रहा है तब ‘एक देश एक चुनाव’ को वास्तविक रुप में देखने के पूर्व इस बात पर गौर करना जरुरी है कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के पूर्व देश का राजनीतिक माहौल कैसा है. लोकतांत्रिक व्यवस्था की सफलता में पक्ष-विपक्ष दोनों के समान रुप से मजबूत होने की अपेक्षा की जाती है. सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों हमारे सामने हैं. पर, क्या यह कहा जा सकता है कि हमारा विपक्ष भी उतना ही मजबूत है जितना सत्ता पक्ष ? खासकर कांग्रेस, जो अपने हिडेन एजेंडा के दबाव में लगातार बौनी होती गई है.

विपक्ष का जो चरित्र आज देश के सामने है वह किसी भी स्तर पर एक मजबूत विपक्ष की छवि पेश कर पाने में असमर्थ है. विपक्ष प्रतिगामी राजनीति से प्रेरित लगता है. आकण्ठ भ्रष्टाचार में डूबे होने का उनपर सिर्फ आरोप ही नहीं है, सभी कानूनी जद में भी हैं. यह हाल है उन दलों का जिनपर सत्ता में होने पर विधायी कार्य करने की जिम्मेदारी होती है. लोकतांत्रिक मूल्यों से परे भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबे विपक्षी राजनीतिक दल मजबूत विपक्ष की भूमिका में भले नजर न आएं, हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में उनकी स्वीकार्यता है और इसलिए उनका कोई विकल्प भी नहीं है.

इसलिए, कांग्रेस का जैसा राजनीतिक चरित्र सामने आया है उसे देखते हुए सुधारात्मक उपायों के लिए यह आवश्यक है कि अब पुरानी गलतियों को दोहराये जाने की स्थिति पैदा न हो और न ही कोई भी दल ऐसी हिमाकत करे.ऐसी ही फुल प्रूव व्यवस्था करनी होगी ताकि देश और समाज की उन्नति स्वार्थ लोलुप राजनीतिक दलों के हितों की भेंट न चढ़ जाएं. चूंकि ‘एक देश एक चुनाव’ की व्यवस्था बदली हुई परिस्थितियों में लायी जाने वाली है इसलिए यह जरुरी है कि नियम देश और समाज के हितों को ध्यान में रखकर बनें.