सिद्दारमैया तो सम्भाल लेंगे खुद को, नीतीश कुमार क्या करेंगे ?
पटना (TBN – वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा खास की रिपोर्ट)| फजीहत के बावजूद जातिगत गणना का काम बिहार सरकार ने पूरा कर लिया. सरकार जितना बडा़ दावा कर रही है, उसको सच मानें तब सूबे के हर परिवार की आर्थिक स्थिति से संबंधित आंकडे़ सरकार के पास हैं. सरकार कह रही है कि विभिन्न जातियों की आर्थिक स्थिति के आधार पर वह योजनाएं बनायेगी, जिससे सब लाभान्वित होंगे. मतलब यह कि सरकार आंकड़ों का उपयोग करेगी. यहीं पर पेंच है. आंकड़ों का उपयोग सरकार योजना बनाने के लिए करेगी या अपने राजनीतिक लाभ के लिए, इस सवाल को भविष्य के लिए छोड़ना ठीक नहीं है क्योंकि हमारे पास 2011 में बने सवर्ण आयोग (Savarna Commission) की सिफारिशों का हश्र मौजूद है.
एक सरसरी नजर डालें तब सरकार ने फरवरी 2019 में जातिगत गणना (Caste Based Census) कराए जाने की पहल की. कई चरणों को पार करने के बाद 2023 में उसका यह काम पूरा हुआ. यह माना जा सकता है कि गणना कराने में जब चार साल लगे तब योजनाओं को बनाने और कार्यान्वित कराने में भी कम-से-कम चार साल तो लग ही जायेंगे. यह तब होगा जब सरकार मुस्तैदी से लगी रहे. लेकिन सवाल यही है कि अगर योजनाएं बनाने में सरकार लगी रहेगी, तब सियासत कब करेगी ?
सवर्ण आयोग की सिफारिशें धूल फांक रही
इस बिन्दू पर जातिगत और आर्थिक स्थिति से जुडे़ आंकड़ों के इस्तेमाल की बात ज्यादा मौंजू हो जाती है. 2011 में बने सवर्ण आयोग की सिफारिशें धूल फांक रही हैं. क्या इसलिए कि बिहार में सवर्णों की संख्या महज 16% प्रतिशत है ? यह संख्या सरकार को सियासी नजरिए से सूट नहीं करती. और संख्या के लिहाज से ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत एवं कायस्थ जाति के अलावा जो जातियां हैं वह पिछडी़ जाति की श्रेणी में हैं जिनकी संख्या 84% है.
सिद्दारमैया के लिए बना सरदर्द
इसलिए सवर्ण आयोग की सिफारिशों की चर्चा बेमानी है क्योंकि इनसे सरकार को चारा नहीं मिलता. लेकिन पिछडी़ जातियों को भी मुगालते में रहने की जरूरत नहीं होनी चाहिए क्योंकि 2013 में कर्नाटक में की गई जातिगत गणना आज मुख्यमंत्री सिद्दारमैया (Karnataka Chief Minister Siddaramaiah) के लिए सरदर्द बन गया है. उन आंकड़ों के आधार पर सरकार किस तरह से पिछडो़ं को फायदा पहुंचा सकती है, इसे सार्वजनिक करने के विचार से ही सिद्दारमैया के हाथ-पांव फूलने लगते हैं.
नीतीश चारों तरफ से घिरते जा रहे हैं
इसलिए, बिहार में जातिगत गणना के आधार पर बनने वाली योजनाओं की चर्चा करने के पहले यह चर्चा होनी चाहिए कि इन आंकड़ों का इस्तेमाल सरकार किस तरह करेगी. जाहिर है कि माहौल चुनाव का है जिसे नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) नजरअंदाज नहीं कर सकते. और, पूरे देश के विपक्ष के सामने जो स्थिति है उसमें बिहार की स्थिति थोडी़ ज्यादा नाजुक और अलग है. इसलिए वह जातिगत आंकड़ों का राजनीतिक इस्तेमाल (Political use of caste data) करेंगे जिससे पिछडा़ वर्ग उनकी तरफ लामबंद हो सके. लेकिन कठिनाईयां दूसरी भी हैं. इन कठिनाईयों में नीतीश कुमार चारों तरफ से घिरते जा रहे हैं.
इसलिए फौरी तौर पर यही नजर आता है कि जातिगत गणना का हश्र भी सवर्ण आयोग की सिफारिशों जैसा ही होगा. सवर्ण आयोग ने जिन तथ्यों के आलोक में अपनी सिफारिशें दी थीं, वो तथ्य डरावने हैं. सिफारिशें लागू होतीं तो सवर्णों की स्थिति में सुधार दिखाई पड़ सकता था. इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि चाहे वह सवर्ण हों या पिछडे़, सरकार का रवैया दोनो को झांसा देने का ही है.