बेटी का धर्म तो निभाया पर जनप्रतिनिधि का धर्म निभाना मुश्किल होगा रोहिणी के लिए
पटना (TBN – The Bihar Now डेस्क की खास रिपोर्ट)| लालू परिवार (Lalu family) गदगद है. यह पहली बार है जब इस परिवार की दो बेटियां लोकसभा का चुनाव लड़ेंगी. हालांकि तीसरी बार चुनाव लड़ रही मीसा भारती (Misa Bharti) अभी तक लोकसभा नहीं जा पायीं हैं. लेकिन, लालू की चार संतानों की बात की जाये जिनका प्रत्यक्ष तौर पर राजनीतिक रुझान सामने है तो तेज़ प्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) और मीसा भारती की लोकतान्त्रिक समझ तथा तेज़स्वी यादव (Tejashwi Yadav) और रोहिणी आचार्य (Rohini Acharya) की समझ में अंतर साफ दिखाई देता है.
पर अभी बात हो रही है रोहिणी आचार्य की. विवाहित हैं और इनका एक ठिकाना सिंगापूर (Singapore) भी है जहां उनके पति का व्यवसाय है. पिछले लम्बे समय से रोहिणी भारत (Bharat) में हैं और अब लोकसभा की सारण संसदीय सीट (Saran parliamentary seat) से चुनाव लड़ने के क्रम में 2 अप्रैल को उन्होंने रोड शो किया. रोड शो की सामने आई तस्वीरों से यह साफ पता चलता है कि इस सीट पर युवा उम्मीदवार और वह भी यदि लालू परिवार से हो, तो शायद ही कोई राजद समर्थक होगा जिसने अपनी उपस्थिति न दिखाई हो.
इस परिवार के लिए सारण संसदीय सीट ने बराबर का हिसाब किया है. लालू यहां से जितनी बार जीते हैं, उतनी ही बार उनको और उनकी श्रीमती जी (Rabri Devi) को हार का भी मुंह देखना पड़ा है. इससे यह वहम तो नहीं रहता कि यह सीट लालू यादव का गढ़ है और जीत की पूरी गारंटी है. लेकिन रोहिणी के समर्थन में राजद कार्यकर्ताओं का उत्साह यही बताता है कि रोहिणी के रूप में युवा राजद उम्मीदवार का समर्थकों ने दिल खोलकर स्वागत किया है.
रोहिणी की भावनात्मक अपील
इस रोड शो में खुद को लांच करते हुए रोहिणी ने जिस तरह से डेब्यू किया और जो कहा उसपर ध्यान देने की जरूरत है. रोहिणी ने कहा कि अपने पिता के जीवन की रक्षा के लिए उन्होंने अपनी एक किडनी दी और सारण के लोगों के लिए वह अपनी जान भी दे सकती हैं. यह अपने पिता और अपने संसदीय जीवन की सम्भावना को देखते हुए उनकी भावनात्मक अपील थी.
लालू प्रसाद की कोशिश सारण संसदीय सीट को हॉट सीट बनाने की है. रोहिणी अपने ट्वीट को लेकर चर्चा में रहीं हैं. पर अब वह लोगों के बीच हैं. उनकी यह पृष्ठभूमि उस सीट के लिए मायने रखती है जहां से वह चुनावी समर में भाजपा के कद्दावर नेता राजीव प्रताप रूडी (Rajiv Pratap Rudy) के मुकाबले में हैं.
रोहिणी के लिए यह बन सकता है परेशानी का सबब
लेकिन उनके सामने एक बड़ी समस्या और भी है. और, यह उनके लिए बड़ा अन्तर पैदा कर सकता है. छपरा में उनके बड़े भाई तेज प्रताप यादव की ससुराल भी है. जहां उनका ससुराल है, वह एक प्रतिष्ठित राजनीतिक घराना है. लालू यादव को जब कोई जानता तक नहीं था, इस परिवार के दरोगा प्रसाद राय (Daroga Prasad Rai) 1970 में बिहार के मुख्यमंत्री (Chief minister of Bihar) थे. उनके पांच में से दूसरे पुत्र चंद्रिका राय की बेटी ऐश्वर्या राय (Chandrika Rai’s daughter Aishwarya Rai) से तेज प्रताप यादव का विवाह जल्द ही विवादों में घिर गया और स्थिति तलाक तक पहुंच गई लेकिन प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है. सारण की उस बेटी के साथ लालू परिवार के रिश्ते तनावपूर्ण हैं. फौरी तौर पर यह लगता है कि लालू यादव ने लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) के लिहाज से इस रिश्ते पर पड़ी बर्फ को पिघलाना भले ही जरुरी न समझा हो, लेकिन यह भावनात्मक मुद्दा है. इसमें दिलचस्प यह भी है ऐश्वर्या राय के पिता चंद्रिका राय की ओर से इस चुनाव को लेकर कुछ भी नहीं कहा गया है, पर भाजपा ने ऐश्वर्या के बहाने लालू यादव पर जो निशाना साधा है, वह चुनाव नजदीक आते-आते रोहिणी के लिए परेशानी का सबब बन सकता है. भाजपा ने सारण के लोगों को तेज प्रताप-ऐश्वर्या राय की बेमेल शादी की याद दिला दी है. तथ्य इसकी पुष्टि करते हैं कि दरोगा प्रसाद राय के परिवार से लालू यादव के परिवार की तुलना नहीं हो सकती. पांच भाइयों में चंद्रिका राय दूसरे नंबर हैं. वह बिहार सरकार में मंत्री रह चुके हैं. उनके बड़े भाई व्यवसायी हैं, एक भाई सेना से रिटायर्ड कर्नल हैं, एक भाई टिस्को में चीफ इंजीनियर के पद से रिटायर्ड हैं और एक भाई सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं. इनकी तुलना में लालू यादव परिवार में सबसे ज्यादा शिक्षित मीसा भारती ही हैं जिन्होंने एमबीबीएस की डिग्री ले रखी है लेकिन कभी आला पकड़े हुए देखी नहीं गयी. दूसरे तेजस्वी यादव हैं जिन्होंने शिक्षा ली (9वीं फेल) ही नहीं लेकिन राजद की बागडोर उनके ही हाथ में है. ऐश्वर्या राय के पति तेज प्रताप यादव की शिक्षा इंटर (फेल) तक की है जबकि ऐश्वर्या ने उच्च शिक्षा हासिल कर रखी है. दो परिवारों के बीच के इस गुणात्मक अंतर का असर राजनीति पर भी दिखाई देने लगा है. लालू प्रसाद ने जिस तरीके से रोहिणी आचार्य को राजनीति में लांच किया और सारण से चुनाव लड़ने का एलान किया, उससे यह स्पष्ट है कि ऐसा करते समय उन्होंने सिर्फ अपने परिवार का ही ध्यान रखा. लेकिन जब चुनाव हो तो जनाधार की बात भी सामने आती ही है और भले चन्द्रिका राय ने किसी भी तरह की राजनीतिक सक्रियता से परहेज किया हो, सारण के लोगों के मन में यह कुलबुलाहट तो है ही.
रीत लाल के समर्थन को लेकर भाई-बहन का नाटक
रोहिणी की उम्मीदवारी को लालू की राजनीति से अलग करके देखा नहीं जा सकता. उनकी सक्रियता तब सामने आयेगी जब वह सांसद बन जाएं. लालू की बड़ी बेटी मीसा भारती तीसरी बार पाटलिपुत्र से चुनाव लड़ेंगी. लेकिन उनकी उम्मीदवारी के पहले कुख्यात रीत लाल यादव के चुनाव लड़ने की चर्चा थी. रीत लाल ने बजाप्ता बयान दिया था कि उनकी उम्मीदवारी पर राजद सुप्रीमो सहमत हैं. इसका क्लाईमेक्स तब सामने आया जब भाई-बहन (रीत लाल-मीसा भारती) के ऊपर ही तय करने के लिए छोड़ दिया गया कि किसे लड़ना चाहिए. लेकिन जब मीसा भारती के ही लड़ने पर मुहर लग गयी तब जाकर यह स्पष्ट हुआ कि भाई-बहन का नाटक सिर्फ रीत लाल के समर्थन को लेकर ही था.
रोहिणी का क्रेज मीसा भारती से ज्यादा !
लालू यादव को यह तसल्ली हो सकती है कि रोहिणी चूंकि पहली बार चुनाव मैदान में हैं इसलिए उनका क्रेज मीसा भारती के मुकाबले ज्यादा होगा, तब भी क्या इतना ही काफी है चुनाव जीतने लिए ? अपनी विशिष्ट राजनीति की बदौलत लालू यादव ने अपनी गरीबी को असाधारण तरीके से बदल दिया. लेकिन दिलचस्प यह है कि लालू के समर्थकों की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ. जैसे 30 साल पहले लालू यादव की सभाओं में पहुंचने वाला युवा आमतौर पर नंगे पांव होता था, उनकी उम्र अब 60 साल की हो गयी होगी. अब उनके 25-30 साल के बेटे तेजस्वी यादव की सभाओं में उनका हौसला बढ़ाते हैं पर, उनके पांव भी नंगे ही होते हैं.
चारा घोटाले में सीबीआई की अदालत (CBI court) से आदतन अपराधी और एमपी-एमएलए कोर्ट ग्वालियर (MP-MLA Court Gwalior) से फरार घोषित लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य की उम्मीदवारी की सफलता और असफलता उनके पिता की छवि से ही निर्धारित होगी. राजद ने अपना एक विशिष्ट वोट बैंक तैयार किया हुआ है. इस वोट बैंक का भ्रम यह है कि राज्य स्तरीय बताया जाता है. एकीकृत और विभाजित बिहार में कभी भी लालू यादव का नेतृत्व सिंपल मेजॉरिटी की संख्या प्राप्त नहीं कर पाया. जोड़-तोड़ लालू यादव की राजनीति का अभिन्न हिस्सा रहा है. इसमें खुद को केंद्र में बनाये रखने के लिए राजद सुप्रीमो ने जितना नुकसान कांग्रेस और वाम दलों को पहुंचाया, उससे कहीं ज्यादा नुकसान बिहार को पहुंचाया है. लेकिन सुखद यह है कि राजनीतिक दलों की मजबूरी, बिहार की मजबूरी उस तरह से नहीं बन पाई जैसा लालू यादव ने चाहा होगा या अब जैसा तेजस्वी यादव चाहते होंगे.
महागठबंधन की कमान लालू यादव के हाथ में
अभी लोकसभा चुनाव होने हैं. 2014 के बाद यह तीसरा चुनाव है और इस चुनाव की विशेषता यह है कि अकेले नरेन्द्र मोदी ने सारे भ्रष्टाचारियों को महागठबंधन के नाम पर गोलबंद कर दिया है. बिहार सहित जहां भी महागठबंधन है उसमें दरार भी है पर, बिहार में इसकी कमान लालू यादव के हाथ में है. एक और तथ्य है जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए. 2019 के लोकसभा चुनावों में राजद एक भी सीट जीत नहीं पाया था और पिछले पांच वर्षों में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जो राजद के खाते में उपलब्धि के तौर पर शामिल हुआ हो. इसके उलट आगामी लोकसभा चुनावों में बिहार की 40 सीटों का बंटवारा जिस तरह से लालू यादव ने किया उससे महागठबंधन अपनी हकमारी से नाखुश भी है. बावजूद इसके महागठबंधन की लगाम लालू यादव के हाथ में है, वैसी स्थिति में नजर तो लालू यादव पर ही है और उन सीटों पर खासकर ज्यादा है जिनपर राजद के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. इन्ही में से एक सीट छपरा भी है.