अपनी बदनामी को बिहार के मत्थे थोपना चाहता है राजद ?
पटना (वरिष्ठ पत्रकार अनुभव कु सिन्हा की खास रिपोर्ट) | भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे होने के बीच क्या राजद अपनी बदनामी बिहार के मत्थे थोपना चाहता है?
एक पूर्व वित्त मंत्री ने सीएम बनने की चाहत में अपने कैबिनेट की पहली बैठक में 10 लाख नौकरी देने की सियासी घोषणा कर डाली. संजोग से इस घोषणा के पूर्व ही नीतीश राज द्वारा नौकरी के लाखों आवेदन जमा कराए जा चुके हैं, जिनका नियोजन चुनाव प्रक्रिया के कारण रुका हुआ है.
बिहार में चुनाव के मद्देनजर बड़ी-बड़ी बिना सिर पैर की बातों की घोषणा की जा रही है. ताजा मामला राजद राज में आतंकियों को पनाह लेने संबंधी सुर्खियों में आए केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के बयान से है जिस पर राजद के सीएम कैंडिडेट तेजस्वी यादव ने बिहार की बेरोजगारी को आतंकवाद बताया है.
बागी उम्मीदवारों को टिकट देने के औचित्य पर राजद ने चुनाव आयोग को कारण बताते हुए अपना स्टैंड पास किया है. राजद को अपराध और अपराधी से परहेज नहीं है. अपराधियों से तो बिल्कुल नहीं क्योंकि उनके चुनाव जीतने की संभावना 3 गुना ज्यादा रहती है. लेकिन 2005 में यदि नीतीश कुमार ने राजद को सत्ता से बेदखल नहीं किया होता और राजद राज जारी रहता, तो संभव है बिहार की बेरोजगारी आतंकवाद जैसी समस्या बन सकती थी. सत्ता मिलने पर नियोजित शिक्षकों को समान वेतन का प्रलोभन एक पूर्व वित्त मंत्री का ऐसा बयान है जिससे जाहिर होता है कि संसाधन जुटाने और बढ़ाने की उनकी समझ कितनी गैर जिम्मेदाराना है. लेकिन चुनाव प्रचार में यह सब चलता है और शायद उसी तर्ज पर यह प्रलोभन भी दिया गया है.
वामदलों और कांग्रेस से मिलकर बने महागठबंधन के सीएम फेस तेजस्वी यादव भय, भूख और भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर चुनावी माहौल को अपने पक्ष में करने में दिन रात लगे हैं. लेकिन उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि भ्रष्टाचार मामलों में लिप्त रहने के कारण ही लालू यादव जेल में हैं.
वैसे एक और दिलचस्प मैसेज दिया जा रहा है. केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के बयान को 2015 में अमित शाह के दिए बयान से जोड़कर यह मैसेज दिया जा रहा है कि इस बयान के बाद भाजपा महज 53 सीटों पर सिमट गई थी. अब नित्यानंद राय के बयान के बाद चुनाव परिणाम दिलचस्प होंगे. परंतु सच तो यह भी है कि उस समय राजद को जदयू का मजबूत सहारा मिला हुआ था, जो अब एनडीए का ही हिस्सा है.
लेकिन जैसा कहा जाता है लक्षण जल्दी दूर नहीं होते और वहीं वजह है कि दो साल पूरे भी नहीं हो पाए थे जब बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने लालू परिवार पर जमीन घोटाले के आरोपों की झड़ी लगा दी. इन आरोपों के छींटें तेजस्वी यादव पर भी पद रहे थे. वैसी सूरत में नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को तब चार-पांच दिनों की मोहलत दी थी ताकि अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के जमीन घोटाले मामले पर तेजस्वी यादव अपनी सफाई पेश करें. लेकिन तेजस्वी यादव ने फिर भी कुछ नहीं कहा तब नीतीश कुमार ने राजद से पल्ला झाड़ लिया था.