पीएम के बयान से तिलमिलाया आरजेडी

पटना (वरिष्ठ पत्रकार अनुभव सिन्हा की खास रिपोर्ट)| कैप्टन की कुशलता सही दिशा देने और अपनी टीम को उर्जान्वित बनाए रखने की होती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सबसे बड़ा समाजवादी नेता (Prime Minister Narendra Modi named Chief Minister Nitish Kumar as the biggest socialist leader) कहकर यही किया है. इससे जो दो बातें साफ-साफ नजर आ रही हैं उनमें नीतीश कुमार के एनडीए (NDA) में असहज होने का प्रोपेगैंडा फैलाने वालों के अरमानों पर पानी फिर गया और दूसरे लालू यादव (Lalu Prasad Yadav) की तिलमिलाहट बढ़ गई.
“इंदिरा इज इंडिया” (India is India) की तर्ज पर “लालू इज राजद” (Lalu is RJD) की कल्पना को पंख न लगते देख राजद की हताशा उसके बड़बोलेपन की गवाह है. बहुत कम ही लोग थे जिन्हें राजद के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से कुछ “खास” निकलने की उम्मीद थी. चूंकि उनकी संख्या ही कम थी और बैठक से कुछ भी नहीं निकला, इसलिए एकदिनी बैठक की चर्चा आई-गई हो गई. इसी बीज नरेन्द्र मोदी का बयान लालू यादव को दिन में तारे दिखा गया.
यह “आन द रिकार्ड है”, “आफिशियल” है कि लालू यादव एक भ्रष्टतम व्यक्ति है. 27 साल की सजा काट रहे इस “आर्थिक अपराधी” की सजा जल्द ही और बढ़ भी सकती है. यह राजद के सर्वाइवल पर बड़ा सवाल है. ऐसे में कहने के लिए उसके पास कुछ नहीं, लेकिन राजनीति में “बेशर्मी” की हद पार कर जाना उसका वह संस्कार है जिसे वह अपनी राजनैतिक शैली बताता आया है.
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इसलिए नरेन्द्र मोदी का नीतीश कुमार को सबसे बड़ा समाजवादी नेता बताना लालू को “हिट” कर गया. यह स्वाभाविक भी इसलिए है कि सार्वजनिक जीवन में प्रतिष्ठा वह अनमोल रत्न है जो विरासत बन सकती है और पीढियों को प्रेरित कर सकती है. लेकिन लालू और उनका परिवार इससे वंचित है. गरीबों को धोखा देना, स्वार्थ की राजनीति करना, राजनीति में परिवारवाद को बढ़ावा देना और आर्थिक अपराध में लिप्त रहना ही लालू यादव की असलियत है. काली कमाई का साम्राज्य खड़ा करने के बाद उसे बचाए रखने की फिक्र ही राजद की सियासत की धुरी है, लेकिन वही लालू यादव कानून के कठोर शिकंजे में भी है.
इसलिए किसी को कोई शक और सुबहा नहीं है कि लालू और राजद का वजूद बिहार की गरीबी है. लेकिन आज का बिहार भी 1990 वाला बिहार नहीं है. बिहार को उद्योगविहिन बनाने वाले लालू ने तो अपने शासनकाल में व्यवसाय को भी काफी क्षति पहुंचाई थी, नीतीश कुमार ने भी अपने तीन टर्म तक उद्योग स्थापना की दिशा में शायद ही कुछ किया, फिर भी, ऐसा माहौल सूखे को जरूर दिया जहां व्यवसाय फल-फूल सके और लोगों को रोजगार प्राप्त हो.
इसलिए मीडिया से मुखातिब हुए लालू यादव और तेजस्वी यादव की बातों का खोखलापन भी छिपाए नहीं छिप सका. लालू को “गरीबों का मसीहा” बताना बिहार के लिए अभी तक की सबसे बड़ी लोकतान्त्रिक मक्कारी है. सार्वजनिक जीवन में व्यक्तिगत आक्षेप को लालू ने हमेंशा ही अपना कौशल माना लेकिन ऐसा करके भी वह अपनी आपराधिक प्रवृति को छुपा नहीं पाए और इसलिए राजद की राजनीति एक दायरे से आगे निकल नहीं पाई.
लालू ने प्रधानमंत्री के कुछ पार्टियों पर परिवारवाद को बढ़ावा देने वाले बयान पर पलटवार करते हुए जब यह कहा कि उनका कोई बेटा नहीं है,यहां तक कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का एक बेटा है लेकिन वह राजनीति में आना नहीं चाहता, यह कहना लालू के लिए जरूरी था क्योंकि अभी भी वह अपने पुत्रों के राजनीतिक भविष्य के प्रति निश्चिंत नहीं हैं.
(उपरोक्त लेखक के निजी विचार हैं)